जब दारा शुकोह ने लिखा, स्‍वर्ग वहीं जहां मुल्‍ला न रहते हों

पुस्तक अंश: दारा ने इस्लाम का गहरा अध्‍ययन किया था. उनकी किताबें अल्लाह और मुहम्मद साहब का उल्लेख करती हैं, लेकिन उन्हें विधर्मी और काफ़‍िर घोषित कर उनकी हत्या कर दी गई.

सारे मुग़ल मुस्लिम थे, लेकिन हर मुसलमान मुग़ल नहीं है

मुग़ल भारत के अंतिम और सबसे लंबे वक्त तक शासन करने वाले मुस्लिम राजवंश का नाम है, जबकि मुसलमान इस्लाम धर्म के अनुयायियों का. हर मुद्दे को ‘हिंदू-मुस्लिम’ के चश्मे से देखने वालों द्वारा इस तथ्य की उपेक्षा इसलिए की जाती है, क्योंकि इसके बगैर वे मुसलमानों पर निशाने साधने के लिए मुग़लों को उनका असंदिग्ध प्रतिनिधि या विश्वासपात्र शासक साबित नहीं कर सकते.

इतिहास को लेकर सांप्रदायिक दृष्टिकोण प्रगतिशील समाज के विचार के विपरीत: हिस्ट्री कांग्रेस

इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस ने एनसीईआरटी द्वारा स्कूली पाठ्यपुस्तकों से मुग़ल इतिहास, महात्मा गांधी से संबंधित सामग्री समेत कई अन्य अंश हटाए जाने को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि जो शिक्षाविद तार्किक वैज्ञानिक ज्ञान का महत्व समझते हैं, उन्हें यह ग़लत और अस्वीकार्य लगेगा.

इतिहास उन्हें क्यों आतंकित करता है?

अमेरिका हो या भारत, पाठ्यपुस्तकों को बैन करने, उन्हें संशोधित करने या उन्हें चुनौती देने की प्रक्रिया स्वतःस्फूर्त नहीं होती. इसके पीछे रूढ़िवादी, संकीर्ण नज़रिया रखने वाले संगठन; समुदाय या आस्था के आधार पर एक दूसरे को दुश्मन साबित करने वाली तंज़ीमें साफ़ दिखती हैं.

सिलेबस से सड़क तक संहार की राजनीति

वीडियो: स्कूली किताबों से मुग़ल इतिहास, महात्मा गांधी, उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे और आरएसएस से संबंधित सामग्री को हटाए जाने के मसले पर चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद.

क्या आईसीएचआर के ज़रिये मोदी सरकार नए इतिहास का आविष्कार कर रही है?

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) द्वारा बीते महीने मध्यकालीन भारत के राजवंशों पर आयोजित प्रदर्शनी में किसी भी मुस्लिम शासक को जगह नहीं दी गई. इसे इतिहास की अवहेलना बताते हुए जानकारों ने परिषद के इरादों पर सवाल खड़े किए हैं.

भाजपा और हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए मुग़ल नए खलनायक हैं

मुग़ल शब्द को भारतीय मुसलमानों को इंगित करने वाला प्रॉक्सी बना दिया गया है. पिछले आठ सालों में, इस समुदाय को- आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि शारीरिक तौर पर- निशाना बनाना न सिर्फ उन्मादी गिरोहबंद भीड़, बल्कि सरकारों की भी शीर्ष प्राथमिकता बन गई है.