मामला उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले का है. एक दलित युवती ने फेसबुक पर जान-पहचान बढ़ाकर कथित रूप से बलात्कार करने और धर्म परिवर्तन कराकर निकाह के बाद छोड़ देने का आरोप लगाते हुए एक युवक तथा उसके परिजनों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराया है.
गुजरात के वडोदरा शहर के एक थाने आरोपी 26 वर्षीय समीर क़ुरैशी उनके माता-पिता, बहन चाचा और एक अन्य व्यक्ति के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई है. पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया है. 24 वर्षीय युवती ने आरोप लगाया है कि सोशल मीडिया पर ग़लत पहचान के ज़रिये शादी के नाम पर आरोपी ने उनके साथ कई बार बलात्कार किया और जबरन धर्म परिवर्तन कराया.
राज्य के तीन ज़िलों में अतिक्रमित भूमि से कई परिवारों को हाल में हटाए जाने का संदर्भ देते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने अल्पसंख्यक समुदाय से परिवार नियोजन अपनाने की अपील की थी. विपक्षी कांग्रेस, एआईयूडीएफ तथा अल्पसंख्यक छात्र निकाय ने इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण, तुच्छ व भ्रामक क़रार दिया है.
मामला अलीगढ़ का है, जहां एक हिंदू परिवार ने जलेसर के पीर बाबा में आस्था के चलते अपने घर में दो छोटी मज़ार बनाई हुई थीं. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा 'हिंदुओं के धर्मांतरण की साज़िश रचने' का आरोप लगाने के बाद इन्हें हटा दिया गया.
मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा सिर्फ भारत में नहीं है. यह एक प्रकार की विश्वव्यापी बीमारी है और यह कनाडा में भी पाई जाती है. लेकिन इस हिंसा पर समाज, सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया क्या है, कनाडा और भारत में यही तुलना का संदर्भ है.
यह भारत का सामाजिक स्वभाव बनता जा रहा है कि मुसलमानों को खुलेआम मारा जा सकता है, उनके ख़िलाफ़ हिंसक प्रचार किया जा सकता है और पुलिस-प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों तक कोई भी इसे गंभीर मामला मानने को तैयार नहीं.
गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक के अनुसार, शादी करके या किसी की शादी कराके या शादी में मदद करके जबरन धर्मांतरण कराने पर तीन से पांच साल तक की क़ैद की सज़ा सुनाई जा सकती है और दो लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में इसी तरह के क़ानून पहले से ही प्रभावी हैं.
सुदर्शन न्यूज़ चैनल ने फ़लस्तीन पर इज़रायल के हमले का समर्थन करते हुए अपने एक कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ में सऊदी अरब की एक मस्जिद पर मिसाइल दागते हुए दिखाया था. ऐसा करने के लिए चैनल ने रूपांतरित ग्राफिक का सहारा लिया था. चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हानके ने शो में कहा था कि इज़रायल का समर्थन करें क्योंकि वह अपने दुश्मनों और जिहादियों की सही तरीके से हत्या कर रहा है.
बीते कुछ सालों से बहुसंख्यकवाद पर सामाजिक ऊर्जा और विचार दोनों ख़र्च किए गए, लेकिन आज संकट की इस घड़ी में बहुसंख्यकवादी इंफ्रास्ट्रक्चर कितना काम आ रहा है? महामारी ने यह अवसर दिया है कि अपनी प्राथमिकताएं बदलकर संकुचित, उग्र और छद्म राष्ट्रवाद को त्याग दिया जाए.
बीते महीने बिहार के दरभंगा ज़िले की अदलपुर पंचायत में मुस्लिमों के अत्यंत पिछड़ा वर्ग से आने वाले और अमूमन सामाजिक उपेक्षा का शिकार रहे 'फ़कीर' समुदाय के दो बच्चे हाईस्कूल की दहलीज़ तक पहुंचे, वहीं गांव के ही दो दलित बच्चों ने पहली बार मैट्रिक पास किया है.
क्या हम पहले के मुकाबले भावनात्मक रूप से अधिक असुरक्षित हो गए हैं? क्या हमारा भाव जगत पहले की तुलना में कहीं संकुचित हो गया है? किसी भी अन्य समुदाय के त्योहार में साझेदारी करने में अक्षम या उस दिन को हथिया लेने की जुगत लगाते हुए क्या हम हीन भावना के शिकार होते जा रहे हैं?
पश्चिम बंगाल के चुनाव के नतीजों की कई व्याख्याएं हो सकती हैं, और होनी भी चाहिए. लेकिन हर व्याख्या की शुरुआत यहीं से करनी होगी कि पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की एक नहीं सुनी.
कई सालों से मोदी-शाह की जोड़ी ने चुनाव जीतने की मशीन होने की जो छवि बनाई थी, वह कई हारों के कारण कमज़ोर पड़ रही थी, मगर इस बार की चोट भरने लायक नहीं है. वे एक ऐसे राज्य में लड़खड़ाकर गिरे हैं, जो किसी हिंदीभाषी के मुंह से यह सुनना पसंद नहीं करता कि वे उनके राज्य को कैसे बदलने की योजना रखते हैं.
बंगाल के समाज के सामूहिक विवेक ने भी उस ख़तरे को पहचाना, जिसका नाम भाजपा है. तृणमूल कांग्रेस की यह जीत इसलिए बंगाल में छिछोरेपन, लफंगेपन, गुंडागर्दी, उग्र और हिंसक बहुसंख्यकवाद की हार भी है.
मामला वडोदरा के खासवाड़ी श्मशान घाट का है, जहां कोरोना वायरस की दूसरी लहर शुरू होने के बाद से ही शवों का अंबार लगा है. यह घटना 16 अप्रैल की है. वडोदरा के मेयर ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में समुदायों को साथ मिलकर काम करना चाहिए.