कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह बहुत निराशाजनक है कि अदालतों में ज़मानत के मामलों को बग़ैर फैसला सुनाए दो साल से अधिक समय तक लंबित रखा जा रहा है.
बीते 28 जून को बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में छात्र कार्यकर्ताओं- नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की अगुवाई में 'यूएपीए, जेल और आपराधिक न्याय प्रणाली' पर चर्चा को अंतिम समय पर रद्द कर दिया गया.
2020 के दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ़्तार हुए पिंजरा तोड़ के तीन कार्यकर्ताओं- जेएनयू की नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और जामिया मिलिया इस्लामिया के आसिफ़ इकबाल तन्हा को जून 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट से ज़मानत मिली थी. दिल्ली पुलिस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के पूर्व जज वाली फैक्ट-फाइंडिंग समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गृह मंत्रालय की लापरवाह प्रतिक्रिया, हिंसा में दिल्ली पुलिस की मिलीभगत, मीडिया की विभाजनकारी रिपोर्टिंग और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ भाजपा का घृणा अभियान दिल्ली दंगों के लिए ज़िम्मेदार थे.
यूएपीए के तहत अक्टूबर 2020 में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार किया था. यूएपीए के साथ ही इस मामले में उनके ख़िलाफ़ दंगा करने और आपराधिक साजिश रचने के भी आरोप लगाए गए हैं. जून 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस संबंध में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और इक़बाल आसिफ़ तन्हा को ज़मानत दे दी थी.
छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने दिल्ली दंगे के आरोपों को लेकर दिल्ली पुलिस द्वारा ज़ब्त की गए उनसे संबंधित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मुहैया कराने की मांग की थी.
सरकार को सवाल पूछने, अधिकारों की बात करने और उसके लिए संघर्ष करने वाले हर इंसान से डर लगता है. इसलिए वो मौक़ा देखते ही हमें फ़र्ज़ी आरोपों में फंसाकर जेलों में डाल देती है.
दिल्ली दंगों संबंधी मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं की ज़मानत रद्द करने की दिल्ली पुलिस की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया है कि वह इस पहलू पर विचार करने को तैयार नहीं है.
किसी भी आम नागरिक के लिए जेल एक ख़ौफ़नाक जगह है, पर देवांगना, नताशा और आसिफ़ ने बहुत मज़बूती और हौसले से जेल के अंदर एक साल काटा. उनके अनुभव आज़ादी के संघर्ष के सिपाहियों- नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जेल वृतांतों की याद दिलाते हैं.
फरवरी 2020 में मौजपुर में सीएए समर्थन रैली में भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने विवादित भाषण दिया था. इस दौरान उत्तरपूर्वी दिल्ली के तत्कालीन डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या मिश्रा के साथ मंच पर मौजूद थे. अब सूर्या के सहयोगियों सहित क़रीब 25 पुलिस अधिकारियों ने दिल्ली दंगों में उनके प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए वीरता पुरस्कार के लिए नामांकन भेजा है.
वीडियो: बीते 15 जून को दिल्ली ने दिल्ली दंगों के संबंध में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत पिछले साल मई में गिरफ़्तार नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को ज़मानत मिलने के बाद उन्हें रिहा नहीं किया गया था. दिल्ली की एक अन्य अदालत में तीनों छात्र कार्यकर्ताओं के अपील करने के बाद बीते 17 जून को उन्हें तिहाड़ जेल से रिहा किया गया.
दिल्ली हाईकोर्ट के तीन छात्र कार्यकर्ताओं को यूएपीए के मामले में ज़मानत देने के निर्णय को अन्य न्यायालयों द्वारा नज़ीर के तौर पर इस्तेमाल न करने का आदेश देकर शीर्ष अदालत ने फिर बता दिया कि व्यक्ति की आज़ादी और राज्य की इच्छा में वह अब भी राज्य को तरजीह देती है.
दिल्ली दंगे मामले में गिरफ़्तार छात्र कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तन्हा को हाईकोर्ट से मिली ज़मानत को दिल्ली पुलिस ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले पर रोक लगाने से मना करते हुए स्पष्ट किया कि देश की अन्य अदालतें इस निर्णय को मिसाल के तौर पर दूसरे मामलों में इस्तेमाल नहीं करेंगी.
रिहा होने के बाद देवांगना कलीता ने कहा कि हम ऐसी महिलाएं हैं, जो सरकार नहीं डरती हैं. सरकार लोगों की आवाज़ और असहमति को दबाने की कोशिश कर रही है. नताशा नरवाल ने कहा कि हमें जेल के अंदर ज़बरदस्त समर्थन मिला है और हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे. आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने कहा कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रहेगी.
बीते 15 जून को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा ज़मानत मिलने के लगभग 48 घंटे बाद भी छात्र कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा जेल में हैं. इस बीच पुलिस ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाकर दिल्ली हाईकोर्ट के ज़मानत आदेश पर तत्काल रोक लगाने का अनुरोध किया है.