सुप्रीम कोर्ट ने पीएम-केयर्स फंड के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से इसका ऑडिट कराने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 31 अगस्त, 2020 के फैसले को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जनता के पैसे की अकल्पनीय और अथाह राशि कोष के ख़जाने में हर रोज़ बेरोकटोक डाली जाती है.
दिल्ली हाईकोर्ट में एक बार फिर इस बात को लेकर दलील दी गई कि पीएम केयर्स फंड ट्रस्ट में उच्च स्तर के पदाधिकारियों का शामिल होना, राजकीय चिह्न का उपयोग, आधिकारिक डोमेन नेम का इस्तेमाल आदि तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार की ही संस्था है.
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यह जवाब अदालत में दायर उन याचिकाओं को लेकर आया है, जिसमें पीएम केयर्स फंड को सरकारी घोषित करने की मांग की गई है.
एक आरटीआई आवेदन में पूछा गया था कि केवल सरकारी विभागों को मिल सकने वाला जीओवी डॉट इन डोमेन पीएम केयर्स को कैसे आवंटित हुआ. केंद्रीय सूचना आयोग में हुई सुनवाई में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस बात का ख़ुलासा करने से रोका गया था.
केंद्र सरकार ने क़रीब एक साल पहले कहा था कि भारत में निर्मित 50,000 वेंटिलेटर के लिए पीएम केयर्स फंड से 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. हालांकि वेंटिलेटर्स ख़रीदने एवं इसके वितरण के संबंध में सिर्फ़ 1,532 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि निजी निर्माताओं द्वारा बनाए 16,000 वेंटिलेटर कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद भी अभी तक अस्पतालों में नहीं लगाए गए हैं.
सेनाओं की ओर से पीएम केयर्स फंड में दी गई राशि में सर्वाधिक भारतीय सेना की ओर से 157.71 करोड़ रुपये दिया गया है, वहीं वायुसेना ने 29.18 करोड़ रुपये और नौसेना ने 16.77 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है.
हाल ही में सार्वजनिक किए गए पीएम केयर्स ट्रस्ट के दस्तावेज़ में जहां एक तरफ इसे ‘कॉरपोरेट चंदा प्राप्त करने के लिए सरकारी ट्रस्ट के रूप में परिभाषित’ किया गया हैं, वहीं एक क्लॉज में इसे प्राइवेट ट्रस्ट बताया गया है.
यह राशि सार्वजनिक क्षेत्र की 101 कंपनियों द्वारा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड्स के तहत दान किए गए 2,400 करोड़ रुपये के अतिरिक्त थी. कर्मचारियों के वेतन से ओएनजीसी ने सबसे अधिक 29.06 करोड़ रुपये दिए, वहीं बीएसएनएल ने भी कर्मचारियों के वेतन से 11.43 करोड़ रुपये इस फंड में दिए.
यह आंकड़ा केंद्र सरकार के 50 विभागों का है. 157.23 करोड़ रुपये के इस अनुदान में से 93 प्रतिशत से अधिक की धनराशि यानी क़रीब 146 करोड़ रुपये अकेले रेलवे के कर्मचारियों के वेतन से दान किए गए हैं.
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, आरबीआई सहित 15 सरकारी बैंकों और संस्थाओं ने आरटीआई के माध्यम से बताया है कि उन्होंने कुल मिलाकर 349.25 करोड़ रुपये पीएम केयर्स फंड में दान किए. एलआईसी ने विभिन्न श्रेणियों के तहत अकेले सबसे अधिक 113.63 करोड़ रुपये दान में दिए हैं.
लोकसभा में विपक्षी सांसदों द्वारा पीएम केयर्स फंड पर लगातार सवाल उठाने पर भाजपा के नेता कांग्रेस पर हमलावर होते रहे, साथ ही कहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष गांधी परिवार की निजी संपत्ति की तरह काम करता है. हालांकि पीएम केयर्स फंड की जवाबदेही को लेकर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
कोविड-19 से लड़ाई में जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए बना पीएम केयर्स फंड पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है, जो पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत पंजीकृत है. यह किसी केंद्रीय या राज्य एक्ट के माध्यम से स्थापित नहीं किया गया है, जिससे इसे एफसीआरए के प्रावधानों से छूट मिल सके.
आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कॉरपोरेट मंत्रालय ने अपनी फाइलों में ये लिखा है कि पीएम केयर्स फंड का गठन केंद्र सरकार द्वारा किया गया है. केंद्र सरकार द्वारा गठित कोई भी विभाग आरटीआई एक्ट के दायरे में आता है.
सूचना के अधिकार क़ानून से मिली जानकारी के अनुसार, ओएनजीसी ने सबसे ज़्यादा 300 करोड़ रुपये, एनटीपीसी ने 250 करोड़ रुपये, इंडियन ऑयल ने 225 करोड़ रुपये कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) का पैसा अनुदान के रूप में पीएम केयर्स फंड में दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया था कि चूंकि पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली काफ़ी गोपनीय है, इसलिए इसमें प्राप्त राशि एनडीआरएफ में ट्रांसफर की जाए, जो कि संसद से पारित किए गए क़ानून के तहत बनाया गया है और एक पारदर्शी व्यवस्था है.