धार्मिक पर्यटन के बोझ तले खंड-खंड होता उत्तराखंड

पहाड़ काट कर हो रहे निर्माण और पनबिजली संयंत्र लगाने के धमाकों से पहाड़ का सीना फट रहा है. तलहटी के हरिद्वार, देहरादून सरीखे शहर बजबजाते स्लम बन चुके हैं. गोमुख से हरिद्वार तक सभ्यता का ज़हरीला कचरा फैल गया है.

छंटनी के ख़तरे के बीच आईटी सेक्टर के कर्मचारी बनाएंगे यूनियन

फोरम फॉर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एम्प्लायइज की अध्यक्ष वासुमति का आरोप है कि आईटी कम्पनियां मुनाफा कमाने के उद्देश्य से अप्रैज़ल प्रक्रिया में ‘खराब परफॉरमेंस’ का बहाना बनाकर कर्मचारियों को निकाल रही हैं.

जन गण मन की बात, एपिसोड 57: हाशिमपुरा नरसंहार के 30 साल और स्वच्छ भारत अभियान

जन गण मन की बात की 57वीं कड़ी में विनोद दुआ हाशिमपुरा नरसंहार और स्वच्छ भारत अभियान की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.

आशीष खेतान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांगी सुरक्षा

आप नेता ने कहा, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी जैसे लोगों को भी ऐसे ही दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से लगातार धमकी मिली थी और फिर उनकी हत्या कर दी गई.

सोलह साल जेल में गुज़ारने वाले गुलज़ार को मुआवज़ा दे यूपी सरकार : अदालत

अदालत ने कहा, अधिकारियों ने आरोपी पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी नहीं ली और आरोप-पत्र दायर कर गुलज़ार की भौतिक आज़ादी का उल्लंघन किया.

विक्टोरिया घोड़ागाड़ी के संचालकों का पुनर्वास करेगी महाराष्ट्र सरकार

1870 के दशक में ये बग्घियां ब्रिटेन से भारत पहुंची थीं. तब ये विक्टोरिया टर्मिनस से लोगों को लाने-ले जाने में काम आया करती थीं.

राजीव गांधी हत्याकांड में कथित भूमिका समेत तमाम विवादों से घिरे रहे तांत्रिक चंद्रास्वामी

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के अध्यात्मिक गुरु माने जाने वाले चंद्रास्वामी के भक्तों में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रही मार्ग्रेट थैचर तक का नाम शामिल था.

गाय के लिए एम्बुलेंस के दौर में क़रीब 3,700 बच्चे रोज़ डायरिया और कुपोषण से मरते हैं

वर्तमान सरकार गाय को लेकर आवश्यकता से ज़्यादा चिंतित होने का दिखावा कर रही है, लेकिन वहीं हर साल डायरिया-कुपोषण से मरने वाले लाखों बच्चों को लेकर सरकार आपराधिक रूप से निष्क्रिय है.

सत्ता का विरोध देशद्रोह घोषित किया जा चुका है

पहले भी सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या की जाती थी. इनकी हत्या में सत्ताधारी सांसद और पुलिस अधिकारी भी शामिल होते थे. लेकिन पहले यह सब चुपचाप होता था. अब नया राजनीतिक माहौल ऐसा है कि अपराधी अपनी मंशाएं खुलेआम ज़ाहिर कर सकते हैं.

विधायिका में मुसलमानों की घटती नुमाइंदगी लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत नहीं है

आंकड़े बताते हैं कि देश में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत तेज़ी से गिरता जा रहा है, जिसका मतलब होगा कि वह पूरी तरह से हाशिये पर चले जाएंगे.