मीडिया बोल, एपिसोड 04: हिंदी मीडिया आज इतना बेदम और ग़ैर-पेशेवर क्यों?

मीडिया बोल की चौथी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, एनडीटीवी के सीनियर एंकर रवीश कुमार और वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रह्मण्यम के साथ हिंदी मीडिया के ग़ैर-पेशेवर रवैये पर चर्चा कर रहे हैं.

‘हिंदू-मुस्लिम दंगे और जाति आधारित संघर्षों को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करना चाहिए’

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के प्रमुख ब्रज बिहारी कुमार ने कहा कि जेएनयू शिक्षा का नहीं बल्कि कार्यकर्ता तैयार करने का स्थान बनता जा रहा है.

रामगढ़ में पीट-पीटकर मार डालने की घटना में स्थानीय भाजपा नेता गिरफ़्तार

जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने गाय और गोरक्षा के नाम पर क़ानून हाथ में न लेने की अपील की थी, उसी दिन झारखंड में एक व्यक्ति को गोमांस ले जाने के संदेह में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था.

हिंदुस्तानी सिनेमा में महिला स्वर

सिनेमा निर्माण के इतने दशकों के बाद भी हिंदुस्तानी सिनेमा में महिला निर्देशकों की संख्या को उंगलियों पर गिना जा सकता है. सिनेमाई दुनिया में भी घोर लैंगिक असमानता है.

जीएसटी: ‘नई आज़ादी’ के आधी रात के जश्न में गुम न हो जाएं ये सवाल

जीएसटी को लागू किए जाने से पहले सरकार ने छोटे कारोबारियों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया. किसी को जीएसटी के जटिल प्रारूप के कारण छोटे व्यापारियों पर पड़नेवाले प्रभावों का आकलन करने की फुर्सत नहीं है, जिन पर वकील और सीए अभी से ही शिकारी बाज़ की तरह झपट पड़े हैं.

अजी समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद, हिटलर के तंबू में अब वे लगा रहे पैबंद

नागार्जुन की कविता राजनीति के चरित्र का पर्दाफ़ाश करती है. जो लोग लोकतंत्र को बचाने और उसे मज़बूत बनाने की लड़ाई लड़ना चाहते हैं, उनके लिए नागार्जुन कभी अप्रासंगिक नहीं होंगे.

क्या गोरक्षा के नाम पर हिंसा करने वाले प्रधानमंत्री की भी नहीं सुन रहे?

जिस दिन प्रधानमंत्री ने बयान दिया कि गाय और गोरक्षा के नाम पर किसी को क़ानून हाथ में लेने का हक़ नहीं है, उसी दिन झारखंड में एक और व्यक्ति की गाय के नाम पर हत्या कर दी गई.