प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने प्रिंट मीडिया संगठनों को एक एडवाइज़री जारी कर कहा है कि यह सुनिश्चित करना ‘अख़बार का कर्तव्य’ है कि किसी लेख का लहजा, भावना और भाषा ‘आपत्तिजनक, उत्तेजक, देश की एकता-अखंडता, संविधान की भावना के ख़िलाफ़, प्रकृति में देशद्रोही न हो या इसे सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए न बनाया गया हो’.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा तैयार प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 या प्रसारण विधेयक को सेंसरशिप चार्टर के बतौर देखा जा सकता है, जहां 'केंद्र सरकार' स्वतंत्र समाचारों को सेंसर बोर्ड जैसे दायरे में घसीटना चाहती है.
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण खाद्य सामग्री विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अख़बारों में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही में कुछ ऐसे रसायन होते हैं, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी कर सकते हैं, इसलिए खाना पैक करने, परोसने और भंडारण में अख़बारों का इस्तेमाल तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रमुख सचिव द्वारा जारी निर्देश में मंडलायुक्तों और ज़िलाधिकारियों से कहा गया है कि वे उनके क्षेत्रों में अख़बारों में छपने वाली 'नकारात्मक ख़बरों' की जांच करें. अगर पता चले कि यह ग़लत तथ्यों पर आधारित है या तोड़-मरोड़कर पेश की गई है तो मीडिया समूह/अख़बार से स्पष्टीकरण मांगें.
असम के प्रतिष्ठित पत्रकार पराग कुमार दास की स्मृति में यह पुरस्कार हर साल असम के बारे में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को दिया जाता है. द वायर की नेशनल अफेयर्स एडिटर संगीता बरुआ पिशारोती इसे पाने वाली पहली महिला हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष में अब तक केंद्र सरकार ने विज्ञापनों पर 154.07 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं. मंगलवार को ठाकुर ने लोकसभा में बताया था कि 2014 से केंद्र ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विज्ञापनों पर 6,491.56 करोड़ रुपये ख़र्चे हैं.
बीते दिनों लश्कर-ए-तैयबा के कथित ब्लॉग पर प्रकाशित एक धमकी भरे पत्र में घाटी के 21 मीडिया संस्थान मालिकों, संपादकों व पत्रकारों का नाम था. बताया गया कि छापेमारी के दौरान स्थानीय पत्रकार सज्जाद अहमद क्रालियारी को हिरासत में लिया गया और उनका लैपटॉप, कैमरा और मोबाइल फोन ज़ब्त कर लिया गया.
लश्कर-ए-तैयबा के कथित ब्लॉग पर प्रकाशित एक धमकी भरे पत्र, जिसके स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर साझा किए गए हैं, में 21 मालिकों, संपादकों और पत्रकारों का नाम लिया गया है, जिनमें से ज़्यादातर श्रीनगर के तीन मीडिया संस्थानों से जुड़े हैं.
अक्सर सोचता हूं, यह अंधेरी सुरंग कितनी लंबी है? क्या कोई रोशनी दिखाई दे रही है? क्या मैं इसके अंत के नज़दीक हूं या अब तक सिर्फ आधी दूरी ही तय की है? या आज़माइश का दौर अभी बस शुरू ही हुआ है?
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा को बताया कि सरकार ने 2019-20 में 5,326 अख़बारों में विज्ञापनों पर 295.05 करोड़ रुपये, 2020-21 में 5,210 अख़बारों में विज्ञापनों पर 197.49 करोड़ रुपये, 2021-22 में 6,224 अख़बारों में विज्ञापनों पर 179.04 करोड़ रुपये और 2022-23 में जून तक 1,529 अख़बारों में विज्ञापनों पर 19.25 करोड़ रुपये ख़र्च किए थे.
पेशेवर करिअर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में करने वाले चीफ जस्टिस एनवी रमना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि पूर्व में हमने घोटालों और कदाचार को लेकर अख़बारों की रिपोर्ट देखी हैं, जिनसे हलचल पैदा हुई हैं, लेकिन हाल के सालों में बेमुश्किल एक या दो को छोड़कर इस तरह की कोई खोजी रिपोर्ट याद नहीं आती.
सीबीआई द्वारा मध्य प्रदेश के तीन अख़बारों के मालिकों के ख़िलाफ़ चार अक्टूबर को जबलपुर में मामला दर्ज किया गया. जिनमें से दो सिवनी के और एक जबलपुर के निवासी हैं. शिकायतकर्ता ने इस साल 13 अगस्त को सीबीआई के जबलपुर कार्यालय में आवेदन देकर इन अख़बार मालिकों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश, जालसाज़ी और धोखाधड़ी करने के आरोप लगाए थे.
व्यंग्य: बीते दिनों आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि वे शुरू से ही मीडिया को संदेश देते रहे हैं कि निगेटिव ख़बरों को भी पॉज़िटिव तरीके से छापें. देश के एक वरिष्ठ पत्रकार ने उनकी राय पर अमल करते हुए 'नो निगेटिव न्यूज़' वाले अख़बार में प्रकाशित एक ख़बर के साथ ऐसा करने की कोशिश की है.
जनता जागरूक तभी हो सकती है जब वह बाख़बर हो. पिछले 7 सालों से भारत की जनता के बड़े हिस्से तक पहुंच रखने वाले समाचार-समूहों ने जैसे तय कर लिया है कि वह उसे वो ख़बर नहीं देंगे जो उसके जनतांत्रिक नागरिक के दर्जे पर असर डालने वाली होगी. इतना ही नहीं वे सूचना को विकृत करके जनता तक पहुंचाते हैं.
जनतंत्र को अपने ठेंगे पर रखे घूम रहे लठैतों के इस दौर में 46 साल पहले के आपातकाल के 633 दिनों पर खूब हायतौबा मचाइए, मगर पिछले 2,555 दिनों से भारतमाता की छाती पर चलाई जा रही अघोषित आपातकाल की चक्की के पाटों को नज़रअंदाज़ मत करिए.