भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलने के लिए लाए गए तीन विधेयक मूल रूप से पुराने क़ानूनों के प्रावधानों की ही प्रति है पर इन नए क़ानूनों में कुछ विशेष बदलाव है जो इन्हें ब्रिटिश क़ानूनों से भी ज़्यादा ख़तरनाक बनाते हैं.
बिलाल लोन और मीरवाइज़ जैसे अलगाववादियों के अलावा निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले दिल्ली के एक प्रमुख कार्यकर्ता, कई पत्रकार और मुख्यधारा के कुछ नेताओं के परिवार के सदस्य शामिल हैं.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने लोकसभा में बताया कि एक अगस्त 2019 के बाद से कई अलगाववादियों, पथराव करने वालों समेत 627 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जिनमें से 454 लोगों को रिहा किया जा चुका है. जन सुरक्षा क़ानून के तहत कोई भी व्यक्ति नज़रबंद नहीं है.
मद्रास हाईकोर्ट की पीठ सीएए और एनआरसी को लेकर प्रदर्शन कर दो व्यक्तियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने इसे लेकर अपने ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को ख़ारिज करने की मांग की थी.
ठाकुरगंज के रहने वाले 16 साल के हुसैन को सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने के आरोप में 25 दिसंबर 2019 को उनके दोस्त के घर से गिरफ़्तार किया गया था. हुसैन का कहना है कि उन्होंने सीएए विरोधी किसी भी प्रदर्शन में कभी हिस्सा नहीं लिया था.
उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नाबालिगों को हिरासत में लेने से जुड़े आरोपों पर शीर्ष अदालत ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड मूकदर्शक बने रहने और मामला उनके पास आने पर ही आदेश पारित करने के लिए नहीं बनाए गए हैं. अगर उनके संज्ञान में किसी बच्चे को जेल या पुलिस हिरासत में बंद करने की बात आती है, तो वह उस पर कदम उठा सकता है.