प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आगमन की तैयारियां भी रामलला के स्वागत की तैयारियों से कमतर नहीं हैं. स्ट्रीट लाइट्स पर मोदी के साथ भगवान राम के कट-आउट्स लगे हुए हैं, जिनकी ऊंचाई पीएम के कट-आउट्स से भी कम है. यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम आएंगे या प्रधानमंत्री मोदी को आना है?
जहां तक धार्मिक आस्थाओं की बात है, उन्हें यों भी समझ सकते हैं कि प्राय: सभी धार्मिक समूहों में ऐसी पवित्र पुस्तकें और बानियां हैं, जिन्हें परमेश्वरकृत ‘परम प्रामाणिक सत्य’ माना जाता है. इनमें आस्था इस सीमा तक जाती है कि उनमें जो कुछ भी कहा या लिखा गया है, वही संपूर्ण सत्य और ज्ञान है और जो उनमें नहीं है, वह न सत्य है, न ज्ञान.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) ने एक नोटिस जारी कर छात्रों को ‘राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह’ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने पर क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कार्रवाई की चेतावनी दी. वहीं, आईआईटी बॉम्बे के एक छात्र संगठन ने 22 जनवरी को परिसर में होने वाले कार्यक्रमों पर आपत्ति जताई है.
सवाल है कि राम मंदिर को लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुनाए जाने के बाद पूरे चार साल तक मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही. जवाब यही है कि 2024 के आम चुनावों के कुछ दिन पहले ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिंदुत्व का डंका बजाकर वोटों की लहलहाती फसल काटना आसान बन जाए.
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि चारों शंकराचार्य अपनी गरिमा बनाकर रखते हैं. यह अहंकार का मामला नहीं है. क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि जब प्रधानमंत्री रामलला की मूर्ति स्थापित करेंगे तो हम बाहर बैठेंगे और तालियां बजाएंगे? चारों शंकराचार्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर चुके हैं.
अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख़ को दोहराते हुए पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि राजनेताओं की अपनी सीमाएं हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं, इनका पालन किया जाना चाहिए. नेताओं द्वारा हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करना पागलपन है.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस द्वारा आयोजित किया जा रहा है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस और माकपा ने भी इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.
गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने के पीछे विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के इससे जुड़े होने का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है, लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नहीं जा रहा है.
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाल विधानसभा चुनावों के तहत बाराबंकी में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. औवेसी और कार्यक्रम आयोजकों के ख़िलाफ़ कोविड-19 दिशानिर्देशों का उल्लंघन तथा सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में मामला दर्ज करने के कुछ ही घंटों बाद राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को लेकर एक और मामला दर्ज किया गया है.