सीपीआई भी राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होगी, कहा- सरकार प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस द्वारा आयोजित किया जा रहा है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस और माकपा ने भी इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

सीपीआई के महासचिव डी. राजा. (फोटो साभार: फेसबुक/D Raja)

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस द्वारा आयोजित किया जा रहा है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस और माकपा ने भी इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

सीपीआई के महासचिव डी. राजा. (फोटो साभार: फेसबुक/D Raja)

नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने बीते शुक्रवार (12 जनवरी) को कहा कि उनकी पार्टी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेगी.

उन्होंने कहा, ‘यह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले चुनावी विचारों के लिए भाजपा और आरएसएस गठबंधन द्वारा आयोजित किया जा रहा है.’

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डी. राजा ने कहा, ‘हमारी पार्टी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेगी. यह भाजपा और आरएसएस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक सरकार प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है. यह पूरी दुनिया और सभी देशों को पता है. भाजपा और आरएसएस ने मिलकर इसे अपने चुनावी लाभ के लिए एक राजनीतिक कार्यक्रम बना दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘संविधान यह स्पष्ट करता है कि भारतीय राज्य को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राज्य बने रहना चाहिए. भारतीय राज्य को सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहना चाहिए. परोक्ष रूप से उसे किसी विशेष धर्म को वास्तविक आधिकारिक धार्मिक दर्जा प्रदान करने के लिए कदम नहीं उठाना चाहिए. लेकिन यहां हम क्या देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री जा रहे हैं और उनके साथ आरएसएस प्रमुख भी इस कार्यक्रम में भाग लेंगे.’

सीपीआई महासचिव डी. राजा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राम मंदिर आयोजन के समय पर भी सवाल उठाया.

उन्होंने कहा, ‘हमारे देश में क्या हो रहा है? मंदिर का आयोजन लोकसभा चुनावों पर नजर रखते हुए किया जा रहा है, क्योंकि वे (भाजपा) सोचते हैं कि वे इस आयोजन को एक बड़े चुनावी अभियान में बदल सकते हैं, जो कि चुनाव के समय लोगों की आंखों में धूल झोंकने का एक राजनीतिक अभियान है.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘और हम ऐसी चीजों में शामिल नहीं हैं. इसलिए हम इस समारोह में भाग नहीं लेंगे.’

मालूम हो कि बीते 10 जनवरी को कांग्रेस ने भी फैसला किया था कि 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पार्टी के नेता शामिल नहीं होंगे.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था, ‘भाजपा और आरएसएस ने वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है. स्पष्ट है कि एक अर्द्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए ही किया जा रहा है.’

दिसंबर 2023 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी राम मंदिर समारोह में शामिल न होने का फैसला किया था. पार्टी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए हो रहा है.

वहीं, पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दल और इंडिया गठबंधन का हिस्सा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता भी पूर्व में कह चुके हैं कि पार्टी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समारोह में शामिल होने की संभावना नहीं है. पार्टी इस आयोजन को भाजपा द्वारा अपनी संभावनाओं को मजबूत करने के ‘राजनीतिक एजेंडे’ के रूप में देखती है.

राजनीतिक दलों के इतर संत समाज भी राम मंदिर के राजनीतिकरण का आरोप लगा रहा है. चारों शंकराचार्यों ने समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है. गोवर्धन पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने मोदी द्वारा राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा पूजा करने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि वह इस स्थिति में अयोध्या नहीं जाएंगे.

वहीं, प्रमुख मुस्लिम संस्था ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’ ने भी प्रस्तावित राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को ‘राजनीतिक प्रचार’ और ‘चुनावी लाभ प्राप्त करने का साधन’ बनने पर चिंता व्यक्त की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को राम मंदिर में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह की अध्यक्षता करेंगे. अयोध्या में होने वाले इस समारोह के लिए वैदिक अनुष्ठान मुख्य कार्यक्रम से एक सप्ताह पहले 16 जनवरी को शुरू होंगे.