विदेशी चंदा नियमन क़ानून में संशोधन को लोकसभा ने बिना किसी चर्चा के पारित कर दिया गया. भाजपा और कांग्रेस को मिलेगी बड़ी राहत.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्टोरल ट्रस्ट द्वारा दिए गए कुल चंदे में से 92.30 प्रतिशत यानी 588.44 करोड़ रुपये पांच राष्ट्रीय दलों की जेब में गए हैं. वहीं क्षेत्रीय दलों के खाते में सिर्फ 7.70 प्रतिशत या 49.09 करोड़ रुपये की राशि गई.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का कहना है, 32 क्षेत्रीय दलों की 221 करोड़ रुपये की आय में से आधी ख़र्च नहीं हुई.
राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने का अनुरोध उन्हें जवाबदेह बनाने और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए किया गया है.
पिछले दो वित्त वर्षों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे प्रमुख राष्ट्रीय दलों ने प्राप्त चंदे का विवरण नहीं दिया है.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ बता रहे हैं कि ट्रोल्स को गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत नहीं है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा, पार्टियों के रणनीतिक निर्णयों को छोड़कर, उनके सभी प्रशासनिक फैसले और उनकी फंडिंग सार्वजनिक नज़रों में होने चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया कि वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान सत्या चुनावी ट्रस्ट की ओर से 47 करोड़ रुपये तो समाज चुनाव ट्रस्ट को 2.52 करोड़ रुपये राजनीतिक दलों को मिले.
पार्टियों को चार साल में कॉरपोरेट से 957 करोड़ रुपये का चंदा, इसमें से सबसे ज़्यादा 705.81 करोड़ भाजपा को मिला है.
पार्टियों ने सीआईसी के उस आदेश का पालन नहीं किया जिसमें कहा गया था कि सभी राष्ट्रीय पार्टियां आरटीआई कानून के दायरे में आएं.