अडानी पोर्ट्स का कार्गो प्रबंधन 10 वर्षों में चार गुना बढ़ा, एकाधिकार का ख़तरा: रिपोर्ट

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताती है कि भारत की 5,422 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर अडानी की उपस्थिति औसतन हर 500 किमी पर है, जो 10 साल पहले देश के सुदूर पश्चिमी छोर तक ही सिमटी थी. शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि अडानी के अभूतपूर्व विस्तार से बंदरगाह उद्योग पर एकाधिकार का ख़तरा है.

अडानी समूह को सस्ते दाम पर वो पोर्ट कैसे मिला, जिससे सरकार हज़ारों करोड़ कमा सकती थी?

वीडियो: पिछले 5 साल में अडानी ग्रुप ने बंदरगाह के कारोबार में ज़बरदस्त कमाई की है. द वायर पर प्रकाशित तीन लेखों की शृंखला में आंध्र प्रदेश के गंगावाराम पोर्ट के अडानी समूह द्वारा अधिग्रहण को आधार बनाकर बताया गया है कि कैसे सरकार ने समूह का कारोबार बढ़ाने में मदद की. इसे विस्तार से बता रहे हैं अजय कुमार.

विपक्ष ने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का आरोप लगाया, भाजपा बोली- भारत तेज़ी से बढ़ता देश बना

विपक्ष ने बंदरगाहों को निजी हाथ में सौंपने का आरोप लगाया तो भाजपा ने पोत परिवहन में विकास की बात कही. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकारी क्षेत्र के उद्योगों की हालत बहुत ख़राब है. यह सरकार सरकारी कंपनियों को बेचने में बिल्कुल नहीं हिचक रही है. उद्योग क्षेत्र पर निजी क्षेत्र के लोगों का नियंत्रण हो रहा है.

गुजरात सरकार का तौकते राहत पैकेज प्रवासी मछुआरों की वास्तविकताओं से परे है

मई 2021 में आए तौकते चक्रवात के बाद गुजरात सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज के वितरण में खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणालियों के ख़राब क्रियान्वयन ने कई प्रवासी मछुआरा समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है.

बंदरगाहों के निजीकरण के आरोप से सरकार का इनकार, कहा- सार्वजनिक निजी भागीदारी, निजीकरण नहीं

महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 के पारित होने पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस विधेयक के जरिये बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है क्योंकि इसमें बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य ग़ैर-सरकारी होंगे.