जब एक पत्रकार ने सीधे प्रधानमंत्री से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘हम तो डिसिप्लिन्ड सोल्जर हैं. पार्टी अध्यक्ष हमारे लिए सब कुछ होते हैं.’ शाह ने भी कहा कि प्रधानमंत्री को सवालों का जवाब देने की ज़रूरत नहीं है.
साल दर साल भारत में मीडिया पर नियंत्रण और सेंसरशिप ख़त्म होने के बजाय बढ़ रही है. इस मामले में सभी राजनीतिक दल एक जैसे हैं. वे आज़ाद मीडिया की जगह नियंत्रित मीडिया को प्यार करते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पूरा होने में करीब 16 महीने का वक़्त बाकी रह गया है. लेकिन उन्हें ख़ुद को और अपनी सरकार को स्वतंत्र प्रेस के प्रति जवाबदेह बनाने की ज़रूरत आज तक महसूस नहीं हुई है.
मोदी की पहचान एक ‘संवाद में माहिर’ नेता की है, लेकिन कुर्सी पर बैठने के बाद से अब तक उन्होंने एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. किसी लोकतंत्र के प्रधानमंत्री द्वारा प्रेस कांफ्रेंस करना मीडिया पर किया जाने वाला एहसान नहीं है, बल्कि सरकार की ज़िम्मेदारी है.