पुरुषों को त्रिशूल देने के बाद विश्व हिंदू परिषद अब बांटेगा दिल्ली में स्त्रियों को कटार

दिल्ली में चल रही चुनावी सरगर्मियों के बीच विश्व हिंदू परिषद राजधानी में कार्यक्रम आयोजित कर स्त्रियों और लड़कियों को कटार बांट रहा है. यह संगठन इस जनवरी 20 हज़ार से ज्यादा स्त्रियों को ‘शस्त्र दीक्षा समारोह’ के तहत यह हथियार देने जा रहा है.

मधु लिमये पक्के राष्ट्रप्रेमी और देशभक्त थे, जो सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ खड़े रहे

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मधु लिमये ने अपने 50 वर्ष भी अधिक लंबे सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में अपने राजनीतिक सिद्धांतों को मज़बूती से पकड़े रखा और उनसे कभी कोई समझौता नहीं किया. वे द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत के ख़िलाफ़ थे और हमेशा सांप्रदायिक मुस्लिम राजनीति की मुख़ालिफ़त की.

वर्ष 2024: संविधान और आंबेडकर की केंद्रीयता का वर्ष

वर्ष 2024 भारतीय राजनीति में संविधान और आंबेडकर की केंद्रीयता का वर्ष रहा. लोकसभा चुनाव संविधान के प्रावधानों और उसकी रक्षा के मुद्दे पर लड़ा गया. विपक्ष ने संविधान और आरक्षण पर खतरे को जोर-शोर से उठाया, जबकि सत्तापक्ष हिंदुत्व के मुद्दे पर रक्षात्मक रहा. लेकिन इसे चुनावी रणनीति तक सीमित रखना जनता के साथ एक छलावा होगा. जरूरत है कि संविधान और बाबा साहेब पर केंद्रित इस बहस को परिवर्तनकामी दिशा देने की.

आंबेडकर के अपमान पर शाह के इस्तीफ़े की मांग तेज़, मोदी बचाव में आए

वीडियो: संसद में बुधवार को ज़ोरदार हंगामे के बीच बाबासाहेब आंबेडकर का नाम सुर्खियों में रहा. जहां विपक्षी दलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए माफी की मांग की, वहीं उनके बचाव में स्वयं पीएम मोदी ट्वीट करते दिखे.

संविधान दिवस: अगर देश आरएसएस के मुताबिक़ चलता रहा तो हमारा संवैधानिक ढांचा क्या रहेगा?

आंबेडकर का कहना था कि हिंदू राज इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी क्योंकि हिंदू राष्ट्र का सपना आज़ादी, बराबरी और भाईचारे के ख़िलाफ़ है, और यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

इतिहास का वॉट्सऐप संस्करण: अकादमिक इतिहासकार नहीं, राजनीति को दोष दीजिए

विलियम डेलरिंपल ने हाल ही कहा कि भारत में भ्रामक इतिहास की लोकप्रियता के लिए पेशेवर इतिहासकार भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने आसान ज़बान में इतिहास नहीं लिखा, इसलिए इतिहास का वॉट्सऐप संस्करण लोकप्रिय हो गया. लेकिन उनकी यह प्रस्तावना सही नहीं है, क्योंकि जनता सजग होकर भ्रामक और ग़लत व्याख्याओं को चुनती आई है.

नीति परामर्श निकाय की राष्ट्रपति से मांग, सरकारी कर्मियों के आरएसएस में शामिल होने पर फिर रोक लगे

नीति परामर्श निकाय- पीपुल्स कमीशन ऑन पब्लिक सेक्टर एंड पब्लिक सर्विस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस या किसी अन्य राजनीतिक रूप से संबद्ध संगठन से जुड़ने पर फिर से प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

यूपी: बरेली में नेहरू की प्रतिमा का अपमान उनके प्रति कुत्सा भरे अभियान का नतीजा है

आठ महीने पहले यूपी के बरेली में नगर निगम व ज़िला प्रशासन द्वारा शहर को 'स्मार्ट' बनाने के लिए पुनर्स्थापित करने के वादे पर जवाहरलाल नेहरू की एक प्रतिमा को उसकी जगह से उखाड़ा गया, जो पिछले दिनों मिशन अस्पताल परिसर में कूड़े के ढेर में मिली.

झारखंड के आदिवासी बहुल ज़िलों में एनआरसी के वादे पर भाजपा का प्रचार कर रहा है संघ: रिपोर्ट

झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों मेें आरएसएस पर्चे बांट रहा है जिसमें मतदाताओं से उस पार्टी को चुनने के लिए कहा गया है जो 'घुसपैठियों' की पहचान करने के लिए एनआरसी का वादा करती है, 'लव जिहाद' के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

हिंदुत्व की राजनीति ने हिंदू धार्मिक उत्सवों पर असर डाला है

90 के दशक से ही राजनीति द्वारा धर्म के संगठित और सुनियोजित उपयोग की जो प्रक्रिया आरंभ हुई 2014 के बाद उसमें और तेज़ी आई. पिछले कुछ वर्षों में तो छोटे स्थानीय धार्मिक मेलों में राष्ट्रवाद की घुसपैठ शुरू हुई है.

राष्ट्रवाद के सरकारी नारे नहीं, संस्कृत को स्वतंत्र शोध चाहिए

संस्कृत को एक विशेष धर्म या संस्कृति के ‘मूल्यों’ की वाहक बना दिया गया है. उसका मूल उद्देश्य ज्ञान का प्रसार नहीं, लोगों को राष्ट्रवादी और संस्कारी बनाने का है. एक विशेष प्रकार की नैतिकता के बोझ से दबी बेचारी संस्कृत किस तरह विद्यार्थियों को आकर्षित करे?

इतिहास जस्टिस चंद्रचूड़ को कैसे याद करेगा, यह उन्होंने ख़ुद तय कर दिया है

भारत के इतिहास में यह दर्ज किया जाएगा कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की इमारत जब गिराई जा रही थी, हमारे कई न्यायाधीशों ने उसकी नींव खोदने का काम किया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का नाम सुर्ख़ियों में होगा.

भारत के समाजवादी भी इज़रायल के मित्र और पैरोकार रहे हैं

भारत के समाजवादियों का इज़रायल प्रेम 1948 में उसके गठन के वक़्त से ही शुरू हो गया था. इज़रायल का दौरा करने और कई-कई हफ़्तों तक इसकी मेज़बानी उठाने वालों में भारत के शीर्ष समाजवादी नेताओं में जयप्रकाश नारायण, जेबी कृपलानी, राममनोहर लोहिया, हरि विष्णु कामथ, कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडीस, मधु दंडवते, अनुसुईया लिमये जैसे नाम शामिल थे.

स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रहने वाला आरएसएस आज विउपनिवेशीकरण का दावा कैसे कर सकता है?

पिछले वर्षों में अदालतें अपने निर्णयों के संदर्भ बिंदु संविधान की जगह धार्मिक ग्रंथों, धर्मशास्त्रों को बना रही हैं. इस तरह हिंदुओं की सार्वजनिक कल्पना को बदला जा रहा है.

धीरेंद्र झा ने गोलवलकर की जीवनी के ज़रिये भारतीय फ़ासिज़्म की जीवनी लिखी है

धीरेंद्र के. झा की 'गोलवलकर: द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन' साफ़ करती है कि सावरकर के साथ एमएस गोलवलकर को भारतीय फ़ासिज़्म का जनक कहा जा सकता है. इसे पढ़कर हम यह सोचने को बाध्य होते हैं कि क्यों फ़ासिज़्म के इस रूप के प्रति भारत के हिंदुओं में सहिष्णुता है.

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