आंबेडकर का कहना था कि हिंदू राज इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी क्योंकि हिंदू राष्ट्र का सपना आज़ादी, बराबरी और भाईचारे के ख़िलाफ़ है, और यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.
विलियम डेलरिंपल ने हाल ही कहा कि भारत में भ्रामक इतिहास की लोकप्रियता के लिए पेशेवर इतिहासकार भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने आसान ज़बान में इतिहास नहीं लिखा, इसलिए इतिहास का वॉट्सऐप संस्करण लोकप्रिय हो गया. लेकिन उनकी यह प्रस्तावना सही नहीं है, क्योंकि जनता सजग होकर भ्रामक और ग़लत व्याख्याओं को चुनती आई है.
नीति परामर्श निकाय- पीपुल्स कमीशन ऑन पब्लिक सेक्टर एंड पब्लिक सर्विस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस या किसी अन्य राजनीतिक रूप से संबद्ध संगठन से जुड़ने पर फिर से प्रतिबंध लगाने की मांग की है.
आठ महीने पहले यूपी के बरेली में नगर निगम व ज़िला प्रशासन द्वारा शहर को 'स्मार्ट' बनाने के लिए पुनर्स्थापित करने के वादे पर जवाहरलाल नेहरू की एक प्रतिमा को उसकी जगह से उखाड़ा गया, जो पिछले दिनों मिशन अस्पताल परिसर में कूड़े के ढेर में मिली.
झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों मेें आरएसएस पर्चे बांट रहा है जिसमें मतदाताओं से उस पार्टी को चुनने के लिए कहा गया है जो 'घुसपैठियों' की पहचान करने के लिए एनआरसी का वादा करती है, 'लव जिहाद' के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करने के लिए प्रतिबद्ध है.
90 के दशक से ही राजनीति द्वारा धर्म के संगठित और सुनियोजित उपयोग की जो प्रक्रिया आरंभ हुई 2014 के बाद उसमें और तेज़ी आई. पिछले कुछ वर्षों में तो छोटे स्थानीय धार्मिक मेलों में राष्ट्रवाद की घुसपैठ शुरू हुई है.
संस्कृत को एक विशेष धर्म या संस्कृति के ‘मूल्यों’ की वाहक बना दिया गया है. उसका मूल उद्देश्य ज्ञान का प्रसार नहीं, लोगों को राष्ट्रवादी और संस्कारी बनाने का है. एक विशेष प्रकार की नैतिकता के बोझ से दबी बेचारी संस्कृत किस तरह विद्यार्थियों को आकर्षित करे?
भारत के इतिहास में यह दर्ज किया जाएगा कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की इमारत जब गिराई जा रही थी, हमारे कई न्यायाधीशों ने उसकी नींव खोदने का काम किया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का नाम सुर्ख़ियों में होगा.
भारत के समाजवादियों का इज़रायल प्रेम 1948 में उसके गठन के वक़्त से ही शुरू हो गया था. इज़रायल का दौरा करने और कई-कई हफ़्तों तक इसकी मेज़बानी उठाने वालों में भारत के शीर्ष समाजवादी नेताओं में जयप्रकाश नारायण, जेबी कृपलानी, राममनोहर लोहिया, हरि विष्णु कामथ, कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडीस, मधु दंडवते, अनुसुईया लिमये जैसे नाम शामिल थे.
पिछले वर्षों में अदालतें अपने निर्णयों के संदर्भ बिंदु संविधान की जगह धार्मिक ग्रंथों, धर्मशास्त्रों को बना रही हैं. इस तरह हिंदुओं की सार्वजनिक कल्पना को बदला जा रहा है.
धीरेंद्र के. झा की 'गोलवलकर: द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन' साफ़ करती है कि सावरकर के साथ एमएस गोलवलकर को भारतीय फ़ासिज़्म का जनक कहा जा सकता है. इसे पढ़कर हम यह सोचने को बाध्य होते हैं कि क्यों फ़ासिज़्म के इस रूप के प्रति भारत के हिंदुओं में सहिष्णुता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत के नारे लगाते हैं, अगर वे दीनदयाल उपाध्याय की ओर मुड़ें तो पता चलेगा कि भाजपा का आचरण उनके विचारों को नकार देता है.
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने बीते दिनों कहा कि अग्निपथ योजना को इस मक़सद से शुरू किया गया है कि नागरिकों को सेना के लिए तैयार किया जा सके.
मुसलमानों पर हिंसा करने वाले हिंदू कम हो सकते हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि हिंदुओं में बहुलांश को मुसलमानों पर हिंसा से फ़र्क नहीं पड़ता.
आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा है कि सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए अगर सरकार को संख्या की ज़रूरत है, तो जाति जनगणना की जा सकती है लेकिन इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार में राजनीतिक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.