धर्म के नाम पर हिंसा करना लोकप्रिय हो गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने का ठेका न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, न भाजपा को, न किसी राजनेता को मिला हुआ है. ये सभी स्वनियुक्त ठेकेदार हैं, जिनका सामाजिक आचरण हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

‘हिंदू समाज ने राजनीतिक ग़ुलामी भोगी, लेकिन वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा कायर कभी नहीं रहा’

पुस्तक अंश: जो अपने घोषित सिद्धांतों पर नहीं टिक सकता और जो सुविधा के मुताबिक सिद्धांत बदलता रहता है वह कायर है या वीर?

राहुल गांधी का राम मंदिर आंदोलन को हराने की बात कहना यथार्थ से अधिक इरादे का बयान है

राहुल गांधी का यह कहना कि 'हमने राम मंदिर आंदोलन को हरा दिया है, वही लाल कृष्ण आडवाणी ने जिसका नेतृत्व किया था,' विचारधारात्मक चेतावनी है. असल लड़ाई उस विचारधारा से है जिसने राम जन्मभूमि आंदोलन को जन्म दिया. यानी संघर्ष आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के विचार से है.

राहुल गांधी, खरगे के संसदीय भाषणों से संघ-भाजपा संबंधी अंश हटाए; गांधी बोले- सच्चाई मिटती नहीं

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की मोदी सरकार को संसद में विभिन्न मुद्दों पर घेरा था, जिनमें भाजपा-आरएसएस की नीतियों, अग्निपथ योजना और अडानी-अंबानी के मुद्दे प्रमुख थे.

हिंदी साहित्य हिंदी समाज का राजनीतिक प्रतिपक्ष बन गया है: अशोक वाजपेयी

परंपरा पर जो दबाव हिंदी अंचल पर पड़े हैं, वे केरल या महाराष्ट्र में नहीं थे. वहां परंपरा अधिक सजीव रही है, सुरक्षित रही है और उसे आत्म विस्तार, आत्माविष्कार  का अवसर मिलता रहा. यहां बार-बार आक्रमण होते रहे हैं. इसलिए यहां की संस्कृति अस्थिर है. इसके जो दुष्परिणाम हैं, उनमें से एक है हिंदुत्व.

क्या केदारनाथ हादसे के दौरान नरेंद्र मोदी ने वाकई 15,000 गुजरातियों को सुरक्षित निकाल लिया था?

पुस्तक अंश: जून 2013 में जब देश केदारनाथ की आपदा से जूझ रहा था, टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट, ‘मोदी इन रैम्बो एक्ट', प्रकाशित की थी कि किस तरह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूस्खलन और बाढ़ की तबाही के बीच फंसे लोगों में से 15,000 गुजरातियों को सुरक्षित वापस निकाल लिया था. इस रिपोर्ट के पीछे का सच क्या था?

कितनी ताक़तवर होगी एनडीए 3.0 सरकार

वीडियो: केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के सहयोगी दलों के साथ समीकरण और जम्मू कश्मीर में बढ़े आतंकी हमलों को लेकर द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.

देश के विश्वविद्यालय एबीवीपी की मर्ज़ी के बंधक हो चुके हैं; प्रशासन उसके आगे नतमस्तक है

उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एबीवीपी सदस्यों का हिंदी के अध्यापक डॉ. हिमांशु पंड्या की कक्षा में जबरन घुसकर हंगामा और उन्हें अपमानित कर परिसर से बाहर जाने को मजबूर करने की घटना केवल यह बताती है कि शिक्षक किस हिंसक माहौल में काम कर रहे हैं.

पक्ष-विपक्ष में बंटे विमर्शों में जनतंत्र के पाले में कौन है?

जनतंत्र के नाम पर अब कोई भी पक्ष लिया जा सकता है. इसका एक कारण यह भी है कि अब किसी चीज़ के कोई मायने नहीं: न मुक्ति, न समानता, न धर्मनिरपेक्षता, न पूंजी, न मज़दूर: सारे शब्द और अवधारणाएं व्यर्थ हो चुके हैं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 30वीं क़िस्त.

जनतंत्र साझा हितों के निर्माण की परियोजना है, आरएसएस इस साझेपन के ख़िलाफ़ है

भारतीय जनतंत्र का बुनियादी सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता है. लेकिन आरएसएस का लक्ष्य इसके ठीक ख़िलाफ़ हिंदू राष्ट्र की स्थापना है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 29वीं क़िस्त.

भारतीय जनतंत्र में क्रांति का ख़याल

नक्सलवादी अपनी हिंसा को यह कहकर उचित ठहराते हैं कि उनके पास ही वैज्ञानिक विचार और इतिहास की चाभी है. उनका विचार ही पहला और अंतिम विचार है और उसे जो चुनौती देगा, उसे जीवित रहने का अधिकार नहीं. यह संसदीय जनतंत्र के विचार के ठीक उलट है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 28वीं क़िस्त.

संपूर्ण क्रांति और भारतीय जनतंत्र पर उसके दूरगामी प्रभाव

आम तौर पर आपातकाल को भारतीय जनतंत्र के इतिहास में बड़ा व्यवधान माना जाता है. पर उसके पहले हुए उस आंदोलन के बारे में इस दृष्टि से चर्चा नहीं होती है कि वह जनतांत्रिक आंदोलन था या ख़ुद जनतंत्र को जनतांत्रिक तरीक़े से व्यर्थ कर देने का उपक्रम. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्ताईसवीं क़िस्त.

मोदी की टिप्पणी पर कांग्रेस बोली- गांधी को किसी ‘शाखा शिक्षित’ के प्रमाणपत्र की ज़रूरत नहीं

नरेंद्र मोदी ने एक साक्षात्कार में कहा कि दुनिया को महात्मा गांधी के बारे में रिचर्ड एटनबरो की 1982 की फिल्म 'गांधी' के रिलीज़ होने तक पता नहीं था, इस पर राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस की शाखाओं में सिखाया जाने वाला दृष्टिकोण महात्मा गांधी को समझने की अनुमति नहीं देता है क्योंकि संघ उनके हत्यारे गोडसे के रास्ते पर चलता है.

‘यह गांधी कौन था?’ ‘वही, जिसे गोडसे ने मारा था’

गांधी को लिखे पत्र में हरिशंकर परसाई कहते हैं, 'गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था. बताया जाएगा कि उस वीर ने गांधी को मार डाला था. तो आप गोडसे के बहाने याद किए जाएंगे. अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था. एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फायदा मिलेगा आपको.'

संघ और भाजपा: कितने दूर, कितने पास?

क्या स्वयंसेवक उस सामाजिक स्वीकार्यता की अनदेखी कर पाएंगे जो मोदी सरकार के कारण उन्हें मिली है? क्या नाराज़ स्वयंसेवक अपने प्रचारक प्रधानमंत्री से दूरी बना पाएंगे? या वे आख़िरकार सामंजस्य कर लेंगे, यह सोचकर कि 2025 के अपने शताब्दी वर्ष में सत्ता से बाहर रहने का जोखिम उठाना बुद्धिमानी नहीं?

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