नरेंद्र मोदी की छवि को ख़राब करने वालीं तीस्ता सीतलवाड़ अकेली नहीं हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारतीय चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र संस्थानों ने भी अतीत में गुजरात हिंसा और मुख्यमंत्री के रूप में मोदी द्वारा चलाई गई सरकार की भूमिका पर कड़ी टिप्पणियां की थीं.
किसी भी बात पर जेल भेज दिए जाने की आशंका में जीना एक तरह से जेल में जीना ही है. ऐसे हालात में कोर्ट या सरकार जेल डेबिट कार्ड की व्यवस्था लागू कर दें, ताकि ट्विटर पर जब भी अभियान चले कि फलां को गिरफ़्तार करो, जेल भेजो तब उस व्यक्ति के जेल डेबिट कार्ड से पुलिस उतनी सज़ा की अवधि डेबिट कर ले.
केंद्र द्वारा रद्द कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि ट्विटर ने केंद्र सरकार के निर्देशों पर आंदोलन से जुड़े लगभग 12 अकाउंट बंद किए हैं. उन्होंने मांग की है कि ऐसे सभी ट्विटर अकाउंट जिन पर अलोकतांत्रिक और अनुचित रूप से रोक लगाई गई है, उन्हें बहाल किया जाए.
गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को वर्ष 1990 में हिरासत में मौत के एक मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है. उनका परिवार इस सज़ा के खिलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में अपील करेगा.
बीते एक महीने में ही बहुमत से दोबारा सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार ने जता दिया है कि अपनी आलोचना के प्रति सहिष्णुता दिखाने का उसका कोई इरादा नहीं है.
हिरासत में हिंसा और मौत के मामलों में गुजरात सरकार का अपनी पुलिस के साथ खड़े रहने का एक अनकहा-सा रिवाज़ रहा है, लेकिन संजीव भट्ट के मामले में ऐसा नहीं दिखता.
गुजरात में जामनगर सत्र न्यायालय ने भट्ट को साल 1990 के एक 'हिरासत में मौत' मामले में दोषी पाया है. उस समय संजीव भट्ट जामनगर में सहायक पुलिस अधीक्षक थे.
गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता संजीव भट्ट ने याचिका दायर आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट का रुख़ करने के लिए उनके पति को हिरासत में किसी काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने की इजाज़त नहीं दी जा रही है.
वर्ष 1996 में गुजरात के बनासकांठा में कथित तौर पर मादक पदार्थ रखने के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार करने का मामला. उस वक्त पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट बनासकांठा ज़िले के पुलिस अधीक्षक थे.