केंद्र सरकार ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और ख़तरनाक क़रार देते हुए विवादास्पद आफ़स्पा के तहत छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया है. सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद नगालैंड से विवादास्पद आफ़स्पा को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन के कुछ दिनों बाद केंद्र द्वारा यह क़दम उठाया गया है.
बीते 15 नवंबर को हैदरपोरा मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में से एक आमिर मागरे के माता-पिता ने पुलिस की उस जांच को ख़ारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उनके बेटे आतंकी थे. इसके अलावा इस गोलीबारी में एक आतंकी सहित जिन लोगों की मौत हुई उनमें शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के मालिक मोहम्मद अल्ताफ़ भट और दंत चिकित्सक डॉ. मुदसिर गुल शामिल हैं.
गृह मंत्रालय ने कहा है कि केंद्र सरकार की राय है कि पूरे नगालैंड राज्य का क्षेत्र इतनी अशांत और ख़तरनाक स्थिति में है कि नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है. बीते चार और पांच दिसंबर को मोन ज़िले में सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों के मौत के बाद आफ़स्पा को वापस लेने की मांग हो रही है.
बीते 15 नवंबर को श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान तीन व्यक्तियों- व्यापारी मोहम्मद अल्ताफ़ भट, दंत चिकित्सक डॉ. मुदसिर गुल और आमिर मागरे की मौत हो गई थी. गुपकर गठबंधन ने घटना की न्यायिक जांच की मांग की. है. वहीं पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि एसआईटी द्वारा सुरक्षाबलों को दी गई क्लीनचिट आश्चर्यचकित नहीं करती है. यह जांच एक ग़लत अभियान की लीपापोती करने के लिए की गई थी.
सेना की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के बाद बढ़े तनाव के मद्देनज़र केंद्र ने दशकों से नगालैंड में लागू विवादास्पद आफ़स्पा हटाने की संभावना पर गौर करने के लिए भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त विवेक जोशी की अगुवाई ने पांच सदस्यीय समिति गठित की है, जो 45 दिन में अपनी रिपोर्ट देगी.
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा कि हर बार हमारा यही रुख़ रहा है कि नगालैंड को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करने की कोई ज़रूरत या औचित्य नहीं है. लेकिन हर बार हमारे विचारों और हमारी आपत्तियों को नज़रअंदाज़कर दिया जाता है. वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि उनका राज्य आफ़स्पा के दायरे में बना रहेगा और इसे वापस लेने का निर्णय तभी लिया जाएगा जब मौजूदा शांति लंबे समय तक बनी रहे.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि आयोग सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी आफ़स्पा की वैधता या संवैधानिकता की पड़ताल नहीं कर सकता या इस पर बहस नहीं कर सकता. अधिनियम लागू करने या वापस लेने की आवश्यकता की समीक्षा सरकार करेगी.
नगालैंड के मोन ज़िले में चार से पांच दिसंबर के दौरान एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों की जान चली गई थी. ऐसी ख़बरें थीं कि दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने और आफ़स्पा हटाने तक मुआवज़ा स्वीकार नहीं किया जाएगा. हालांकि ओटिंग ग्राम परिषद ने स्पष्ट किया है कि मुआवज़ा स्वीकार करना है या नहीं, यह फ़ैसला परिषद का नहीं पीड़ित परिवारों का है.
सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ़स्पा) के ख़िलाफ़ 16 सालों तक भूख हड़ताल करने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने कहा कि नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में नागरिकों की मौत की घटना आंख खोलने वाली साबित होनी चाहिए. आफ़स्पा न सिर्फ़ दमनकारी क़ानून है, बल्कि मूलभूत मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन करने जैसा है.
पीड़ित परिवारों ने एक बयान में कहा है कि भारतीय सशस्त्र बल के 21वें पैरा कमांडो के दोषियों को नागरिक संहिता के तहत न्याय के कटघरे में लाने और पूरे पूर्वात्तर क्षेत्र से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) को हटाने तक वे मुआवज़ा स्वीकार नहीं करेंगे. नगालैंड के मोन ज़िले में चार से पांच दिसंबर के दौरान एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों की जान चली गई थी.
नगालैंड में कोन्यक जनजाति का शीर्ष संगठन ‘कोन्यक यूनियन’ ने मोन ज़िले में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों के मौत पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दावे ‘ग़लत पहचान’ और सुरक्षा बलों द्वारा ‘आत्मरक्षा’ में आम लोगों पर गोली चलाने के तर्क को भी ख़ारिज किया और कहा कि उन्हें कोन्यक और नगालैंड के लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिए.
बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन ज़िले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में 14 आम लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छह दिसंबर को संसद में कहा था कि सैन्यबल के इशारे पर गाड़ी न रुकने के बाद फायरिंग की गई थी. विभिन्न संगठन उनके इस बयान को झूठ बताते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं.
राष्ट्रमंडल देशों में रहने वालों के अधिकारों के लिए काम करने वाली ग़ैर-सरकारी संस्था कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने हाल ही में सुरक्षा बलों के हाथों 14 नागरिकों की मौत को लेकर राज्य में तत्काल मानवाधिकार आयोग के गठन की मांग की है.
केंद्र के साथ नगा राजनीतिक वार्ता में प्रमुख वार्ताकार एनएससीएन-आईएम ने कहा है कि आफ़स्पा के कारण नगाओं को कई मौकों पर कड़वा अनुभव मिला है. इसने काफ़ी ख़ून बहाया है. ख़ून और राजनीतिक बातचीत एक साथ नहीं चल सकती. वहीं मेघालय में भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी ने भी बयान दिया है कि सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों के मौत पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है.
वीडियो: बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में 14 आम लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों ने सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफ़स्पा हटाने की मांग की है.