पूर्वोत्तर में आफ़स्पा के चलते मानवाधिकार उल्लंघन होने की आम राय बनाना ग़लत: एनएचआरसी प्रमुख

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि आयोग सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी आफ़स्पा की वैधता या संवैधानिकता की पड़ताल नहीं कर सकता या इस पर बहस नहीं कर सकता. अधिनियम लागू करने या वापस लेने की आवश्यकता की समीक्षा सरकार करेगी.

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जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि आयोग सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी आफ़स्पा की वैधता या संवैधानिकता की पड़ताल नहीं कर सकता या इस पर बहस नहीं कर सकता. अधिनियम लागू करने या वापस लेने की आवश्यकता की समीक्षा सरकार करेगी.

जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने शुक्रवार को कहा कि यह आम राय बनाना गलत होगा कि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में आफस्पा लागू करने के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है.

जस्टिस मिश्रा ने यह भी कहा कि एनएचआरसी सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) की वैधता या संवैधानिकता की पड़ताल नहीं कर सकता या बहस नहीं कर सकता.

जस्टिस मिश्रा ने यहां दो दिवसीय शिविर के समापन के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘यह आम राय नहीं बनाई जा सकती कि आफस्पा लगाने के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है. अधिनियम लागू करने या वापस लेने की आवश्यकता की समीक्षा सरकार करेगी.’

उन्होंने हालांकि, इस बात पर जोर दिया कि आयोग हिरासत में मौते या न्यायेतर हत्याओं को ‘बहुत गंभीरता से’ लेता है और सभी मामलों की जानकारी दी जानी चाहिए या वह स्वत: संज्ञान ले सकता है.

उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग मामलों के गुण-दोष पर विचार करता है और पीड़ितों के परिवार के सदस्यों के लिए मुआवजे की घोषणा करता है, जिसका राज्य सरकारों द्वारा अनुपालन किया जाता है.

नगालैंड के ओटिंग गांव में हुई घटना, जिसमें 14 व्यक्ति मारे गए थे, जस्टिस मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है और संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया है क्योंकि राज्य में इसकी कोई इकाई नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हमने केंद्रीय गृह मंत्रालय और घटना की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) से रिपोर्ट मांगी है. हालांकि, इस स्तर पर मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा.’

मालूम हो कि नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच यह घटना हुई. गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर की शाम कोयला खदान के कुछ मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.

सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया है, जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.

अधिकारियों ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई.

इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर अगले दिन पांच दिसंबर को भी  जारी रहा और गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. सुरक्षा बलों द्वारा हमलावरों पर की गई जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए.

इस घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठन और राजनीतिक दल सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं.

पूर्वोत्तर में असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र छोड़कर) और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में आफस्पा लागू है. कानून सुरक्षा बलों को कहीं भी कार्रवाई करने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देता है.

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के साथ ही विपक्षी दलों, नागरिक समाज समूहों और क्षेत्र के अधिकार कार्यकर्ताओं ने आफस्पा को निरस्त करने की मांग की है.

इस साल मई से असम में हुई पुलिस मुठभेड़ों के बारे में पूछे जाने पर एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि, ‘सभ्य समाज में फर्जी मुठभेड़ों के लिए कोई जगह नहीं है. यह बर्बर है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. कानून को अपना काम करना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘इसके साथ ही, हम यह नहीं कह सकते कि सभी मुठभेड़ फर्जी हैं. कुछ फर्जी हो सकती हैं, लेकिन हम प्रत्येक शिकायत को लेते हैं और प्रत्येक मामले के गुण-दोष की जांच करते हैं. ऐसे मामलों में एनएचआरसी तीन पहलुओं पर गौर करता है- पीड़ित या उसके परिवार के लिए मुआवजा, आपराधिक मामले दर्ज होना और आरोपी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करना.’

इस साल मई में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता संभालने के बाद से पुलिस कार्रवाई में कुल 32 लोग मारे गए हैं और कम से कम 55 घायल हुए हैं.

सरकारी भूमि पर ‘अवैध रूप से बसे लोगों’ की हाल की बेदखली के बारे में एक सवाल पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मामला गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है.

उन्होंने कहा, ‘मामला अदालत में विचाराधीन है और हम कानूनी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. हालांकि, हम विस्थापित लोगों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं और हमने राज्य सरकार को उनका पुनर्वास सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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