उदयपुर हत्या के बहाने समाज बांटने की कोशिश करने वालों से सावधान रहना ज़रूरी है

उदयपुर में हुई नृशंसता के बावजूद इस प्रचार को क़बूल नहीं किया जा सकता कि हिंदू ख़तरे में हैं. इस हत्या के बहाने जो लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार कर रहे हैं, वे हत्या और हिंसा के पैरोकार हैं. यह समझना होगा कि एक सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है कि किसी घटना पर हिंदू, मुसलमान एक साथ एक स्वर में न बोल पाएं. 

हिंसा, क्रूरता कितनी भी नियमित हो जाए, उसे सामान्य मानने से इनकार करने की मानवीयता बची रहती है

डासना की घटना से मालूम होता है कि जो हिंसा का निशाना बनाया गया है, पुलिस उसके साथ खड़ी हो सकती है. जिसने हिंसा की, पुलिस उसे खोजकर उसके साथ इंसाफ की प्रक्रिया शुरू कर सकती है. इंसानियत के बचे रहने की उम्मीद क़ानून या संविधान के बोध के जीवित और सक्रिय रहने पर ही निर्भर है.