अपने हालिया प्रकाशित निबंध संकलन, 'शताब्दी के झरोखे से', की भूमिका में रामचंद्र गुहा बतौर निबंधकार अपनी यात्रा को विस्तार से दर्ज करते हैं. वे लिखते हैं कि उनकी किताबें बौद्धिक चुनौतियों से जन्म लेती हैं, अखबारी कॉलम तात्कालिक घटनाओं से उद्वेलित होते हैं, जबकि निबंध विधा किसी गहरी अनुभूति से जन्म लेती है.
रामचंद्र गुहा के हालिया प्रकाशित निबंध संकलन, 'शताब्दी के झरोखे से', की भूमिका में आशुतोष भारद्वाज लिखते हैं कि वे किसी कथावाचक की दृष्टि से इतिहास लिखते हैं. उनके प्रिय शीर्षक को थोड़ा फेर कर कहें, वे ‘इतिहासकारों के बीच स्थित उपन्यासकार’ हैं.