मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जयपुर में जाट समाज के एक कार्यक्रम को में एमएसपी क़ानून लाने का समर्थन करते हुए कहा कि धरना ख़त्म हुआ है, आंदोलन नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल के बतौर उनके कार्यकाल के चार महीने बाकी हैं, जिसके बाद वे किसानों के लिए काम करेंगे.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसानों ने केवल दिल्ली में अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ उनका आंदोलन अभी भी जीवित है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि देश में जिस रफ़्तार से बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही है उससे देश में संकट खड़ा होने वाला है.
लखीमपुर खीरी हिंसा के दौरान चार किसानों की हत्या के मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा को ज़मानत मिलने पर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि राजनीतिक रूप से शक्तिशाली आरोपी के गवाहों को प्रभावित करने की पक्की संभावना पर विचार किए बिना अदालत का ज़मानत देना बेहद निराशाजनक है.
कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले किसान संगठनों का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि संगठन भाजपा के ख़िलाफ़ अपने ‘मिशन यूपी’ अभियान को फिर शुरू करेगा, क्योंकि मोदी सरकार ने उनमें से एक भी मांग पूरी नहीं की है, जिनको पूरा करने का आश्वासन देकर उन्होंने किसान आंदोलन ख़त्म कराया था.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनआईए महानिरीक्षक, चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और पंजाब के अतिरिक्त डीजीपी (सुरक्षा) को समिति का सदस्य नियुक्त करते हुए कहा कि सवालों को एकतरफा जांच पर नहीं छोड़ा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे पर हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगा.
पंजाब में हुई कथित सुरक्षा चूक की जांच अवश्य होनी चाहिए, लेकिन यह प्रधानमंत्री के सुरक्षा प्रोटोकॉल में उल्लंघन की पहली घटना नहीं है. पूर्व एसपीजी अधिकारियों का कहना है कि आखिरी फैसला नरेंद्र मोदी ही लेते हैं और अक्सर सुरक्षा के तय कार्यक्रमों को अंगूठा दिखा देते हैं.
प्रधानमंत्री की ख़ासियत है कि जब-जब वे अप्रिय स्थिति में पड़ते हैं किसी न किसी तरह उनकी जान को ख़तरा पैदा हो जाता है. जब से वे मुख्यमंत्री हुए तब से अब तक कुछ समय के बाद उनकी हत्या की साज़िश की कहानी कही जाने लगती है. लोग गिरफ़्तार किए जाते हैं, पर कुछ साबित नहीं होता. फिर एक रोज़ नए ख़तरे की कहानी सामने आ जाती है.
पंजाब के फ़िरोज़पुर में पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में कथित चूक को लेकर भाजपा का आरोप है कि यह उनकी हत्या की साजिश थी. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी वीडियो दिखाता है कि किसान वास्तव में प्रधानमंत्री के काफिले के रुकने की जगह से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर थे.
सुरक्षा में चूक को लेकर ख़ुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी जिस तरह उसी क्षण से इस घटना को सनसनीखेज़ बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने में लग गए हैं, उससे ज़ाहिर है कि वे घटना की गंभीरता को लेकर कम और उससे मुमकिन चुनावी फायदे के बारे में ज़्यादा गंभीर हैं.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है. इस सवाल को रैली में कितने लोग आए, कितने नहीं आए इसे लेकर ज़्यादा बहस की ज़रूरत नहीं. सुरक्षा इंतज़ामों में पंजाब सरकार की भूमिका हो सकती है लेकिन यह एसपीजी के अधीन होती है. प्रधानमंत्री कहां जाएंगे और उनके बगल में कौन बैठेगा यह सब एसपीजी तय करती है. इसलिए सबसे पहले कार्रवाई केंद्र सरकार की तरफ से होनी चाहिए.
हरियाणा के चरखी दादरी में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि जब वे कृषि क़ानूनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले तब ‘वे बहुत घमंड में थे.’ मलिक यह भी कहा कि आगे अगर सरकार किसानों के ख़िलाफ़ कोई क़दम लेगी तो वे इसका विरोध करेंगे और अपना पद छोड़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
ये 22 किसान संगठन पंजाब के उन 32 किसान संगठनों में से हैं, जिन्होंने तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से अधिक समय तक चले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. वहीं, संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट किया कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा है.
संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य और हरियाणा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी’ की घोषणा की है. उनके इस क़दम से एसकेएम में उनके भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि मोर्चे के नेता डॉ. दर्शन पाल कह चुके हैं कि राजनीति में जाने वाले किसानों को एसकेएम छोड़ना होगा.
वीडियो: एक साल से जारी ऐतिहासिक किसान आंदोलन में किसानों ने बहुत कुछ खोया है. इस दौरान क़रीब 700 से ज़्यादा किसानों की मौत हुई, किसी ने आत्महत्या की, तो किसी की बीमारी के चलते जान गई. आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों से बातचीत.