‘रघुपति राघव राजाराम’ से चिढ़ने वाले ‘राम मोहम्मद सिंह’ से कुछ सीख सकेंगे?

बापू के नाम पर बने सभागार में उनका प्रिय भजन गाने से रोकने वालों को शायद भान नहीं कि 'ईश्वर अल्ला तेरो नाम-सबको सन्मति दे भगवान' की संस्कृति इस देश की परंपरा में रही है. 1940 के दशक में बस्ती में 'निजाई बोल आंदोलन' में सक्रिय किसान नेता राम मोहम्मद सिंह इसकी बानगी हैं.

एक बार किसी लड़की के पीछे जाने को पीछा करना नहीं माना जाएगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट एक यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी लड़की या पीड़िता का सिर्फ़ एक बार पीछा करना पीछा करना (stalking) नहीं माना जाएगा. यह फ़ैसला उन दो लड़कों को बरी करते हुए दिया, जिन्हें एक नाबालिग का पीछा करने के लिए दोषी ठहराया गया था.

कल्पना की बहुलता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय कल्पना-सृजन-विचार का लगभग ज़रूरी कर्तव्य हमें आश्वस्त करना है कि हम अपनी बहुलता बचा सकते हैं; कि हम विकल्पों को सोच और रूपायित कर सकते हैं, कि हमारे पास ऐसे बौद्धिक-सर्जनात्मक उपकरण हो सकते हैं जो हमें प्रतिरोध के लिए सन्नद्ध करें.

रचनाकार का समय: ‘जात से कायनात तक, कहानी के देश में प्रवासी हूं मैं’

रचनाकार को अक्सर यह मुगालता होता है कि वह अपने समय को दर्ज कर रहा है, और दर्ज भी ऐसे कि गोया अहसान कर रहा है. और गोया ऐसे भी कि सिर्फ वही कर रहा है, अगर वह नहीं करेगा तो समय दर्ज हुए बिना ही रह जाएगा. इस चमकीले मुहावरे से खुद को बचा लेना चाहता हूं कि मैं अपने समय को दर्ज करने के महान काम में लगा हुआ हूं.

जीवन को लेकर साहित्य कभी पूर्णकाय नहीं हो सकता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लिखना पर्याप्त होने, सफल और सार्थक होने के भ्रम को ध्वस्त करता है और मनुष्य होने की अनिवार्य ट्रैजडी के रू-ब-रू खड़ा करता है. हम आधे-अधूरे हैं यह साहित्य के ट्रैजिक उजाले में हम कुछ साफ़ देख पाते हैं.

जिसने सिनेमा की नई भाषा को रचा

श्याम बेनेगल हर बार एक नए विषय के साथ सामने आते थे. 'जुनून' (1979) जैसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाली फ़िल्म के तुरंत बाद उन्होंने 'कलयुग' (1981) में महाभारत को आधार बनाकर आधुनिक दुनिया में रिश्तों की पड़ताल की और फिर 'मंडी' (1983) में कोठे के जीवन का प्रामाणिक चित्रण किया.

पुस्तक अंश: चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा

चार्ली चैप्लिन दुनिया के महानतम फिल्मकारों में शुमार हैं. उन्होंने अभिनय और निर्देशन, दोनों ही विधाओं में कीर्तिमान स्थापित किए. उनकी फिल्मों को आज भी याद किया जाता है.

सूरज के सातवें रथ पर सवार होकर चले गए श्याम बेनेगल, भारतीय गणतंत्र का सपना हुआ लुप्त

श्याम बेनेगल उस पीढ़ी के सिनेकर्मी थे जिसने आज़ाद भारत के उभरते सपनों के बीच सांस ली. एक समतावादी, लोकतांत्रिक जीवन-पद्धति का सपना, एक धर्मनिरपेक्ष-जातिविहीन मूल्य-संहिता का सपना, नेहरू की कविता और गांधी की करुणा का सपना. उनके निधन के साथ उस युग के एक सपने का भी अंत हो गया.

संसद में संविधान पर बहस: राहुल गांधी ने सावरकर के विचारों पर भाजपा को घेरा

संसद में संविधान पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तीखे हमले किए, आपातकाल, अनुच्छेद 370 और वंशवाद को लेकर सवाल उठाए. वहीं, राहुल गांधी ने सावरकर के विचारों और मनुस्मृति का जिक्र करते हुए भाजपा पर संविधान को कमजोर करने का आरोप लगाया.

महात्मा गांधी के अंतिम दिन: एक मज़ार की तीर्थ यात्रा

18 जनवरी 1948 को अपने अंतिम उपवास को समाप्त करने के ठीक नौ दिन बाद, यानी अपनी हत्या से 3 दिन पहले गांधी दिल्ली के महरौली स्थित दरगाह क़ुतुबउद्दीन बख़्तियार काकी की मज़ार पर गए थे. दिल्ली में शांति और सौहार्द क़ायम करने के लिए की गई इस यात्रा को उन्होंने तीर्थ यात्रा कहा था. यह उनकी आखिरी सार्वजनिक यात्रा थी.

पुस्तक अंश: हिंदू धर्म एकीकृत संप्रदाय नहीं, भिन्न पंथों का समूह है

पुस्तक अंश: हिंदू धर्म विभिन्न विचारों को आत्मसात करता आया है. कई मान्यताएं और प्रथाएं अपने प्राचीन रूप में हैं और उनके स्रोतों का पता लगाना कठिन है. धर्म का यह स्वरूप पूजा के विधि-विधानों के बजाय दार्शनिक स्तर पर अधिक पाया जा सकता है. असहमति की अधिकांश परंपराएं विविधता को पोषित करती रही हैं.

पुण्यतिथि: आधुनिक भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में आंबेडकर का योगदान

बहुत कम लोगों को मालूम है कि आंबेडकर की अर्थशास्त्र पर भी गहरी पकड़ थी. लंदन स्‍कूल ऑफ इको‍नोमिक्‍स से उनकी थीसिस भारतीय आर्थिक इतिहास और मुद्रा नीति को समझने में मदद करती है. इस पुस्‍तक ने स्‍वतंत्र भारत की वित्तीय नींव तैयार करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

विचारधाराएं साहित्य से नहीं उपजतीं, फिर भी साहित्य को अपना उपनिवेश बनाने की चेष्टा करती हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धर्म का छद्म करती विचारधारा ‘हिंदुत्व’ कहलाती है. उसके प्रभाव में भारतीय समाज जितना सांप्रदायिक धर्मांध और हिंसक आज है उतना पहले कभी नहीं हुआ.

अर्जक संघ: हिंदी पट्टी में 1968 से ब्राह्मणवाद से लड़ता नास्तिकों का एक संगठन

अर्जक संघ मानवतावाद, बुद्धिवाद, वैज्ञानिक सोच और सभी के लिए समान शिक्षा की वकालत करता है, ताकि समाज से जाति का भेदभाव खत्म हो जाए. संगठन का मानना है कि समाज की सभी बुराइयों की जड़ ‘शिक्षा की कमी’ और ‘पाखंड’ (धार्मिक पाखंड) है.

महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति का ढहना: ‘फुले ने शिवाजी को मराठा शूद्र सम्राट के रूप में स्थापित किया था’

महाराष्ट्र के समाज में शिवाजी की छवि का मात्र एक संस्करण मौजूद नहीं है. महाराष्ट्र के दलितों के लिए शिवाजी 'मराठा शूद्र सम्राट' है, न कि बाल गंगाधर द्वारा प्रचारित किए गए 'चितपावन मराठा नरेश'.

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