उत्तर प्रदेश में अब भी गन्ना किसानों का 10,626 करोड़ रुपये बकाया है और जून के महीने में भी गन्ने की फसल खेतों में खड़ी है. उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में गन्ना किसानों की समस्याओं को भाजपा ने प्रमुखता से उठाया था, लेकिन केंद्र और प्रदेश में सरकार बनने के बाद भी उनकी समस्याएं हल नहीं हो सकी हैं.
देश के चीनी के कटोरे के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बागपत और कैराना इलाका चुनाव प्रचार के इस मौसम में पोस्टरों, झंडों, रैलियों से पटा पड़ा है. लेकिन इस चुनाव ने कई किसानों के घाव हरे कर दिए हैं.
गन्ना किसानों का 10,074.98 करोड़ रुपये में से 4,547.97 करोड़ रुपये यानी 45 फीसदी से अधिक उत्तर प्रदेश के सिर्फ छह निर्वाचन क्षेत्रों मेरठ, बागपत, कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, बिजनौर और सहारनपुर की मीलों पर बकाया है.
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि फसल बेचने के 14 दिन के भीतर गन्ना किसानों का भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा और सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद भी ये वादे काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सके हैं.
हम भी भारत की 50वीं कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी हालिया किसान आंदोलन और कृषि संकट से जुड़े मुद्दों पर पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन और किसान शक्ति संघ के पुष्पेंद्र सिंह से चर्चा कर रही हैं.
इतिहास यही रहा है कि सरकारें जब भी चीनी उद्योग के लिए राहत पैकेज जारी करती हैं तो उसमें किसानों के हित गौण हो जाते हैं और लाभ मिलों को पहुंचता है.
सूत्रों के मुताबिक, खाद्य मंत्रालय ने 30 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक बनाने का प्रस्ताव दिया है. चीनी स्टॉक को बनाए रखने की लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.
भारतीय चीनी मिल संघ ने कहा कि वे समय पर किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान करने में असमर्थ हैं.
भारत की राजनीति झूठ से घिर गई है. झूठ के हमले से बचना मुश्किल है, इसलिए सवाल करते रहिए कि 14 दिनों में गन्ना भुगतान और एथनॉल से डीज़ल बनाने के सपने का सच क्या है वरना सिर्फ झांसे में ही फांसे जाएंगे.