ये मामला तीन जुलाई 2020 को किए गए एक फेसबुक पोस्ट से जुड़ा हुआ है, जिसमें शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम ने ग़ैर-आदिवासी युवाओं पर हुए हमले को लेकर सवाल उठाया था. राज्य सरकार का कहना था कि ऐसा करके मुखीम ने मामले को सांप्रदायिक रंग दिया है.
पद्मश्री से सम्मानित द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक मुखीम पर एक फेसबुक पोस्ट के लिए मामला दर्ज किया गया था. बीते 18 नवंबर को मुखीम ने इस मामले पर एडिटर्स गिल्ड की चुप्पी का हवाला देते हुए विरोध स्वरूप इस संगठन की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था.
द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम पर एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप में हुई एफआईआर को हाईकोर्ट ने रद्द करने से इनकार कर दिया है. मुखीम का कहना है कि एडिटर्स गिल्ड सिर्फ सेलिब्रिटी पत्रकारों का ही बचाव करती है, उनके मामले पर उसने चुप्पी साध रखी है.
द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखीम ने राज्य में ग़ैर-आदिवासी छात्रों पर हुए हमले को लेकर एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिसके लिए उन पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी.
बीते 8 मार्च को मेघालय हाईकोर्ट ने द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखीम और प्रकाशक शोभा चौधरी को अवमानना का दोषी मानते हुए एक हफ्ते के अंदर दो लाख रुपये जुर्माना जमा करने को कहा था. ऐसा न करने पर 6 महीने की क़ैद और अख़बार पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी.
द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. एक सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर छह महीने की जेल का प्रावधान है.