बिहार के प्रतिनिधि पत्रकार संतोष सिंह अपनी धारदार ख़बरों के लिए जाने जाते हैं. उनके हालिया प्रकाशित कविता संग्रह ने उनके एक नए रूप से हमें परिचित कराया. अपने कवि-कर्म पर उन्होंने यह ख़ास लेख लिखा है.
इस साल की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि हिंदुत्व की छतरी के नीचे पली-बढ़ी धर्म व पूंजी की सत्ताओं ने हमारे राष्ट्र-राज्य की सत्ता के अतिक्रमणों के नए कीर्तिमान बना डाले हैं और कहना मुश्किल है कि इससे पैदा हुए उलझावों को सुलझाने में देश को कब तक व कितना हलकान होना पड़ेगा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लिखना पर्याप्त होने, सफल और सार्थक होने के भ्रम को ध्वस्त करता है और मनुष्य होने की अनिवार्य ट्रैजडी के रू-ब-रू खड़ा करता है. हम आधे-अधूरे हैं यह साहित्य के ट्रैजिक उजाले में हम कुछ साफ़ देख पाते हैं.
साठेक बरस पहले तक, नफ़रत, दंगे और हिंसा काफ़ी हद तक रोज़मर्रा की जिंदगी को महफ़ूज़ रहने देते थे. अब तो धार्मिक और वैचारिक भेदभाव, तमाम तबकों और धर्मों के बीच स्थायी नफ़रत और वैमनस्य जगा चुके हैं. महात्मा गांधी के प्रार्थना प्रवचनों से लेकर फेक ख़बरों और बढ़ते प्रदूषण के उदाहरण देते हुए वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग एक लम्बे दौर का बड़े आत्मीय स्वर में स्मरण करती हैं.
कलकत्ता में बड़े दिन के उत्सव की सबसे ख़ास बात यह है कि इसे जोश के साथ मनाने वाले सारे लोग ईसाई धर्म के अनुयायी नहीं हैं, ठीक उसी तरह जैसे दुर्गा पूजा के दौरान पूजा पंडालों में मां दुर्गा को नमन करने वाले सभी लोग हिंदू धर्म के अनुगामी नहीं होते. बंगनामा की सत्रहवीं क़िस्त.
मनमोहन सिंह अल्पभाषी थे, विनम्र थे पर वे जानते थे कि कब, कहां और कितना बोलना है. न उन्होंने कभी मीडिया से मुंह छिपाया और न बेवजह के नारे उछाले. जब मौक़ा हुआ और जब ज़रूरत हुई, प्रेस कॉन्फ्रेंस की और हर सवाल का जवाब दिया.
बस्तर में 2024 आदिवासी स्त्रियों के हिस्से अत्याचार का एक नया अध्याय- उन्हें दर्दनाक मौत की सज़ा देने की शुरुआत का साल है. नक्सली संगठनों ने अपनी रणनीति में यह कैसा बदलाव किया है यह तो वही समझ सकते हैं, पर अब आदिवासी स्त्रियां उनके निशाने पर हैं.
मूल रूप से अर्थशास्त्री रहे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर शोक ज़ाहिर करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्हें राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा, बेदाग राजनीतिक जीवन के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
हिट और फ्लॉप की लिस्ट से इतर इस साल कई ऐसी फिल्मों पर भी लोगों की नज़रें टिकीं, जो समाजिक मुद्दों और असल शख्सियतों की प्रेरणा से बनी फिल्में थीं. कुछ ऐसी ही फिल्मों पर एक नज़र डालते हैं...
हिंदी समाज हर शहर में एक नौजवान भी नहीं तैयार कर पा रहा है जो अपने शहर के रंगमंच से राब्ता रखकर उसका विश्लेषण या परिचय हिंदी के पाठक को उपलब्ध कराता रहे. शिक्षण संस्थान क्या कर रहे हैं? रंग समूह शैक्षणिक परिसर से जुड़ने के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं? क्या हिंदी साहित्यकारों का अपने शहर के रंगमंच से कोई वास्ता है?
साल 2023 अब तक का सबसे गर्म साल साबित हो चुका है और मौजूदा साल के लिए भी यही आशंका जाहिर की जा रही है. ऐसे में अमेरिका, जिस पर जलवायु संकट से बचाव की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, उसकी रणनीति काफी हद तक जलवायु संकट से बचाव की दिशा तय करेगी. लेकिन जब ट्रंप दोबारा अमेरिका की बागडोर संभालने जा रहे हैं, वैश्विक प्रयासों को लेकर संदेह नज़र आ रहा है.
साल 2024 में भारत के लिए क्रिकेट से लेकर टेनिस की दुनिया तक खेल जगत में क्या कुछ खास रहा. हमने क्या उपलब्धियां हासिल की और किन खिलाड़ियों ने अखबार की सुर्खियों में अपने लिए जगह बनाई. इस सब पर एक नज़र...
श्याम बेनेगल हर बार एक नए विषय के साथ सामने आते थे. 'जुनून' (1979) जैसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाली फ़िल्म के तुरंत बाद उन्होंने 'कलयुग' (1981) में महाभारत को आधार बनाकर आधुनिक दुनिया में रिश्तों की पड़ताल की और फिर 'मंडी' (1983) में कोठे के जीवन का प्रामाणिक चित्रण किया.
16 दिसंबर को ‘बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024’ नामक अपने राजपत्र अधिसूचना में कहा गया है कि यदि कोई छात्र कक्षा 5 या 8 में जाने के लिए मानदंड पूरा नहीं करता है, तो उसे स्कूल द्वारा उन कक्षाओं में रोका जा सकता है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में 2019 में नो-डिटेंशन नीति को हटाने के लिए संशोधन किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी. रामसुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. कांग्रेस ने कहा कि यह एक पूर्व निर्धारित कवायद था, जिसमें आपसी परामर्श और आम सहमति की स्थापित परंपरा को नज़रअंदाज़ किया गया, जो ऐसे मामलों में आवश्यक है.