उत्तराखंड में कांग्रेस अपनी हार के लिए मतदाताओं या भाजपा को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकती. यह वक़्त है कि वह गहराई से आत्मविश्लेषण करे कि पांच साल अगर उसने कारगर विपक्षी दल की भूमिका सही ढंग से निभाई होती, तो फिर से इतने बुरे दिन नहीं देखने पड़ते.
राज्य की सत्तर विधानसभा सीटों में से 47 सीटों पर विजय हासिल करने के साथ ही भाजपा ने बहुमत के 36 के आंकड़े को आसानी से पार कर लिया. हालांकि भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संभावित मुख्यमंत्री चेहरे- पुष्कर सिंह धामी, हरीश रावत और अजय कोठियाल अपनी-अपनी सीट बचा पाने में असफल रहे.
उत्तराखंड में 20 सीटों पर जीत और 20 अन्य पर बढ़त के साथ भारतीय जनता पार्टी राज्य में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है. वहीं उत्तराखंड में कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने हार स्वीकारते हुए कहा कि उनके लिए यह नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं.
पहाड़ों में जनता की दुख-तकलीफ़ों को दूर करने के सियासी एजेंडा में पर्यावरण और विकास के सवाल हमेशा से ही विरोधाभासी रहे हैं क्योंकि राजनीतिक दलों को लगता है कि पर्यावरण बचाने की बातें करेंगे तो विकास के लिए तरसते लोग वोट नहीं देंगे.
आम आदमी पार्टी का दावा है कि उसके तिरंगे के रंग पक्के हैं. शुद्ध घी की तरह ही वह शुद्ध राष्ट्रवाद का कारोबार कर रही है. भारत और अभी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को राष्ट्रवाद का असली स्वाद अगर चाहिए तो वे उसकी दुकान पर आएं. उसकी राष्ट्रवाद की दाल में हिंदूवाद की छौंक और सुशासन के बघार का वादा है.
उत्तराखंड की स्थापना करने वाली भाजपा के माथे पर सबसे बड़ा दाग़ यह लगा है कि भारी बहुमत से सरकार चलाने के बावजूद उसने दस साल के शासन में राज्य पर सात मुख्यमंत्री थोप डाले. पार्टी की नाकामी यह भी है कि अब तक उसका कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ उत्तर प्रदेश में गठजोड़ की ख़बरों को ख़ारिज करते हुए इन्हें पूरी तरह से ग़लत, भ्रामक और आधारहीन बताया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने केवल अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए ही शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन का ऐलान किया है.