नाइंसाफी के ख़िलाफ़ किसानों ने इतिहास में हमेशा प्रतिरोध किया है, बार-बार किया है. मौजूदा किसान आंदोलन भी उसी गौरवशाली परंपरा का अनुसरण कर रहा है.
अंडमान सेल्युलर जेल के लाइट एंड साउंड शो में सावरकर द्वारा अंग्रेज़ों को लिखी गई दया याचिकाओं का कोई उल्लेख न होने को लेकर राज्यसभा में सवाल पूछा गया था.
वीडियो: भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर के लोकसभा में नाथूराम गोडसे को एक बार फिर से देशभक्त कहने पर विवाद हुआ है. इस विवाद पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का नज़रिया.
भाजपा के लोग चाहे जो दिखावा करें, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर भारत के लिए शर्मिंदगी का सबब हैं. वे संसद और इसकी सलाहकार समिति के लिए शर्मिंदगी की वजह हैं. और निश्चित तौर पर वे अपने राजनीतिक आकाओं के लिए भी शर्मिंदगी का कारण हैं. लेकिन शायद उन्हें इस शब्द का मतलब नहीं पता.
क्या ऐसा शख़्स, जिसने अंग्रेज़ सरकार के पास माफ़ीनामे भेजे, जिन्ना से पहले धर्म के आधार पर राष्ट्र बांटने की बात कही, भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश सेना में हिंदू युवाओं की भर्ती का अभियान चलाया, भारतीयों के दमन में अंग्रेज़ों का साथ दिया और देश की आज़ादी के अगुआ महात्मा गांधी की हत्या की साज़िश का सूत्रसंचालन किया, वह किसी भी मायने में भारत रत्न का हक़दार होना चाहिए?
भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार से कहा कि उनके फांसी देने की जगह गोलियों से भून दिया जाए. सावरकर ने अपील की उन्हें छोड़ दिया जाए तो आजीवन क्रांति से किनारा कर लेंगे.