पुस्तक समीक्षा: हाल ही में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज की जेल डायरी ‘फ्रॉम द फांसी यार्ड: माय इयर्स विथ द वूमेन ऑफ यरवदा’ प्रकाशित होकर आई है. इस डायरी को उन्होंने पुणे की यरवदा जेल में रहते हुए लिखा है. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपियों में से एक सुधा 3 साल से अधिक समय तक जेल में रही हैं.
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सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला क़ैदियों को केवल 10 राज्यों और 1 केंद्रशासित प्रदेश में किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के लिए जेल कर्मचारियों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने की अनुमति है. देश की 40 प्रतिशत से भी कम जेलें महिला क़ैदियों के लिए सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराती हैं.
विशेष रिपोर्ट: जेल में सज़ा काट रही महिला क़ैदियों के साथ रहने वाले बच्चों को तो तमाम परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन वो जिन्हें मां से अलग कर बाहर अपने बलबूते जीने के लिए छोड़ दिया जाता है, उनके लिए भी परेशानियों का अंत नहीं होता.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि जेल में बंद महिलाओं को अक्सर गंभीर पूर्वाग्रह, लांछन और भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा पुरुष क़ैदियों की भांति इन महिला क़ैदियों का समाज में फिर से एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत का सेवाएं प्रदान करने का दायित्व बनता है.
जहां देश में एक तरफ ट्रांसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के लिए क़ानूनी अधिकारों की बात होना शुरू हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जेलों में बंद ऐसे लोग ज़रूरी हक़ों और सुविधाओं से भी महरूम हैं.
जेलें क़ैदियों को उनके अपराध के आधार पर वर्गीकृत कर सकती हैं, लेकिन जेलों, ख़ासतौर पर महिला जेलों में वर्गीकरण सिर्फ अपराधों से तय नहीं होता है. यह सदियों की परंपराओं और अक्सर धर्म द्वारा स्थापित नैतिक लक्ष्मण रेखा लांघने से जुड़ा है. ऐसे में भारतीय महिलाएं जब जेल जाती हैं, तब वे अक्सर जेल के भीतर एक और जेल में दाख़िल होती हैं.
दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में गिरफ़्तार गर्भवती सफूरा ज़रगर तिहाड़ जेल में हैं और अदालत में जेल अधीक्षक का कहना था कि उन्हें सभी ज़रूरी सुविधाएं दी जा रही हैं. हालांकि देश की जेलों की स्थिति पर आए आंकड़े और सूचनाएं बताते हैं कि भारतीय जेलें गर्भवती महिला क़ैदियों के लिहाज़ से मुफ़ीद नहीं हैं.
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि बच्चों को किशोर न्याय क़ानून के तहत देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.