वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई प्रेस रिलीज से यह भी पता चलता है कि सरकार को अप्रैल और मई महीने में जितनी दाल बांटनी चाहिए थी, उसका सिर्फ 40 फीसदी ही बांटा गया है.
इन हस्तियों की ओर से जारी एक पत्र में कहा गया है कि वैश्विक स्वास्थ्य एवं आर्थिक आपदा को टालने के लिए वक्त तेजी से बीत रहा है. 44 करोड़ अतिरिक्त लोग ग़रीबी में फंस सकते हैं तथा 26.5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को कुपोषण का सामना करना पड़ सकता है.
कोरोना वायरस को लेकर एक समीक्षा मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित हुई है. अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि मौजूदा सबूतों की यह व्यवस्थित समीक्षा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कराई गई है.
भारतीय लोक स्वास्थ्य संघ, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट्स के विशेषज्ञों द्वारा संकलित एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने इस महामारी से निपटने के उपायों संबंधी निर्णय लेते समय महामारी विशेषज्ञों से सलाह नहीं ली.
मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले का है. लॉकडाउन से पहले एक रेस्टोरेंट में काम करने वाले 50 वर्षीय भानु प्रकाश गुप्ता की जेब से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है जिसमें उन्होंने अपनी गरीबी और बेरोजगारी का जिक्र किया है. उनके परिवार में बूढ़ी मां, पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा हैं.
एक अन्य घटना में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले में दिल्ली से गांव लौटे एक प्रवासी मज़दूर की घर से कुछ दूरी पर मौत हो गई. गुजरात के राजकोट शहर में घर जाने के लिए बस का इंतज़ार कर रहे एक कृषि मज़दूर की मौत वाहन की चपेट में आ जाने से हो गई.
पुलिस ने बताया कि 35 वर्षीय मज़दूर छह माह पहले गुजरात के सूरत में मज़दूरी करने चले गए थे. 20 मई को वापस आने पर उन्हें उनके गांव में बने सरकारी क्वारंटीन सेंटर में ठहराया गया था.
मुंबई के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने केंद्र सरकार के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन देकर कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उठाए गए क़दमों, ख़रीदे गए उपकरणों एवं सामग्रियों के नाम तथा उन पर किए गए ख़र्च का ब्योरा मांगा था.
अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने गुजरात सरकार के उस आदेश के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का रुख़ किया है, जिसके तहत निजी डॉक्टरों और अस्पतालों को नामित स्वास्थ्य अधिकारियों की मंज़ूरी के बिना कोविड-19 की जांच की अनुमति नहीं थी.
यूनिसेफ और मानवतावादी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि यदि महामारी के कारण होने वाली वित्तीय कठिनाइयों से परिवारों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो कम और मध्यम आय वाले देशों में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों की कुल संख्या वर्ष के अंत तक 67.2 करोड़ तक पहुंच सकती है.
जोधपुर एम्स के वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी नरेश कुमार स्वामी कोरोना हॉटस्पॉट ज़ोन में रहते हैं. बीते 17 मई को रक्तस्राव के बाद वे अपनी गर्भवती पत्नी को एम्स ले गए थे. आरोप है कि अस्पताल ने कोविड-19 नीति का हवाला देते हुए भर्ती करने से मना कर दिया था. इलाज में देरी के चलते उनकी पत्नी का गर्भपात करना पड़ा.
अहमदाबाद सिविल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है. हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया था.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि राज्य ट्रेनों में सवार ग़रीब मज़दूरों के जीवन की रक्षा करने में विफल रहे हैं. आयोग ने केंद्रीय गृह सचिव, रेलवे और गुजरात और बिहार की सरकारों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में विस्तृत जवाब देने को कहा है.
कोर्ट ने कहा कि जहां से ट्रेन शुरू होगी वो राज्य यात्रियों को खाना और पानी देंगे. इसके बाद यात्रा के दौरान ट्रेन में रेलवे खाना-पानी देगा. बस में भी यात्रियों को खाद्य एवं पेय पदार्थ दिए जाएंगे.
लॉकडाउन के चलते बांदा ज़िले के लोहरा गांव के 22 वर्षीय सुरेश पिछले हफ़्ते दिल्ली से आए थे, वहीं पैलानी थाना क्षेत्र के 20 साल के मनोज दस दिन पहले मुंबई से लौटे थे. इन दोनों ने बुधवार को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि वे पैसे की कमी से परेशान थे.