बीते साल पांच जनवरी को जेएनयू में हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस ने वॉट्सऐप और गूगल को पत्र लिखकर 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप ग्रुप के सदस्यों द्वारा साझा किए गए संदेशों, तस्वीरों और वीडियो का विवरण मांगा था. गूगल ने एक संधि का हवाला दिया है, जिसके तहत जानकारी अदालत के आदेश के बाद मुहैया कराई जाती है.
दिल्ली पुलिस ने कहा कि 35-40 छात्रों का एक समूह पुस्तकालय के बाहर बीते आठ जून को इकट्ठा हुआ था, जो महामारी के कारण छात्रों के लिए बंद है. उन्होंने गेट के सामने विरोध किया और गार्ड से लाइब्रेरी के गेट खोलने को कहा, लेकिन गार्ड ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. छात्रों ने विरोधस्वरूप पुस्तकालय के फाटकों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया और सुरक्षाकर्मियों के साथ मारपीट की.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में बीते साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में महिला संगठन पिंजड़ा तोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की गिरफ़्तारी के एक साल पूरे हो चुके हैं. इसे लेकर हुए कार्यक्रम में कहा गया कि यह उन आवाज़ों को दबाने का तरीका है, जो सरकार को पसंद नहीं है.
दिल्ली पुलिस ने स्थानीय अदालत में दायर याचिका में कहा था कि दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में गिरफ़्तार उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी को हथकड़ी लगाकर पेश करने की अनुमति दी जाए क्योंकि ये दोनों अत्यधिक जोखिम वाले क़ैदी हैं. अदालत ने इससे इनकार करते हुए कहा कि याचिका तकनीकी आधार पर उचित नहीं है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू और बीएचयू समेत देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से बीस में नियमित वाइस चांसलर नहीं हैं. अधिकारियों के अनुसार नियुक्तियों में विलंब पीएमओ की ओर से हुई देरी के चलते ऐसा हो रहा है. बताया गया कि क़ानूनन पीएमओ की कोई भूमिका नहीं है पर इन दिनों फाइलें अनधिकृत तौर पर वहां भेजी जाती हैं.
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस ने एक बयान में कहा कि कर्मचारी 23 दिन से हड़ताल पर हैं. आरोप है कि जेएनयू प्रशासन ने उन्हें समान वेतन और सुरक्षा उपकरण मुहैया कराने से इनकार कर दिया है.
शिक्षा में साधनों की असमानता का एक पक्ष यह भी है कि जिन अकादमिक या बौद्धिक चिंताओं पर हम महानगरीय शिक्षा संस्थानों में बहस होते देखते हैं, वे राज्यों के शिक्षा संस्थानों की नहीं हैं. राज्यों के कॉलेजों के लिए अकादमिक स्वतंत्रता का प्रश्न ही बेमानी है क्योंकि अकादमिक शब्द ही उनके लिए अजनबी है.
2016 के जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस को आरोपियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी देने के क़रीब साल भर बाद मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया है. कन्हैया कुमार के अलावा मामले में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है.
पांच जनवरी 2020 की शाम जेएनयू परिसर में लाठियों से लैस कुछ नक़ाबपोश लोगों ने छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया था और परिसर में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था. जेएनयू छात्रसंघ ने एबीवीपी के सदस्यों पर हिंसा का आरोप लगाया था, वहीं एबीवीपी ने लेफ्ट छात्र संगठनों द्वारा हमले की बात कही थी.
फिल्म के पटकथा लेखक और कांग्रेस नेता आर्यदान शौकत ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के केरल स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के एक सदस्य, जो कि भाजपा नेता भी हैं, को इसका ज़िम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड में ऐसे कई राजनीतिक लोगों को नियुक्त किया गया है, जिन्हें सिनेमा की समझ नहीं है.
दिल्ली पुलिस ने लिखा है कि उमर ख़ालिद सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर चरमपंथ को बढ़ावा देता है. आपको भी यही लगता है तो कम से कम यह मांग तो कर ही सकते हैं कि दिल्ली पुलिस के अफसरों को फिल्म निर्देशक बन जाना चाहिए क्योंकि वे लोगों के अंदर छिपे अभिनेता को पहचान लेते हैं.
इस साल मार्च महीने में कोविड-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान छात्र अपने गृहनगर वापस चले गए थे, लेकिन सितंबर से सभी छात्रों के चरणबद्ध तरीके से पुन: प्रवेश की मांग के बाद भी उन्हें कैंपस लौटने की अनुमति नहीं दी गई. ऐसे विद्यार्थी जो वापस आकर हॉस्टल में रहने लगे हैं, उन पर यह जुर्माना लगाया है.
जेएनयू के स्कूल ऑफ फिज़िकल साइंसेस के आठ प्रोफेसरों ने 23 नवंबर को राष्ट्रपति को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि पिछले महीने सात उम्मीदवारों की नियुक्ति की गई, लेकिन उनमें से किसी के पास अपेक्षित अनुभव या योग्यता नहीं है. उन्होंने उनकी नियुक्ति प्रक्रिया रोकने का आग्रह किया है.
पांच जनवरी को जेएनयू परिसर में नक़ाबपोशों द्वारा हुए हमले के घटनाक्रम और स्थानीय पुलिस की लापरवाही को लेकर गठित दिल्ली पुलिस की एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उस दिन कैंपस में माहौल ठीक नहीं था, लेकिन पुलिस के हस्तक्षेप के बाद स्थिति नियंत्रण में आ गई थी.
जो लोग ये कहते हैं कि अगर निर्दोष होगा तो अपने आप बाहर आ जाएगा, उनको मैं कह दूं, क्यों न आपको साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए? क्यों न देश के हर नागरिक को 18 साल का होते ही साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए. हम सब निर्दोष हैं, बाहर आ ही जाएंगे