जेएनयू हिंसाः पुलिस ने छात्रों की चैट डिटेल्स मांगी, गूगल ने अदालत के आदेश का हवाला दिया

बीते साल पांच जनवरी को जेएनयू में हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस ने वॉट्सऐप और गूगल को पत्र लिखकर 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप ग्रुप के सदस्यों द्वारा साझा किए गए संदेशों, तस्वीरों और वीडियो का विवरण मांगा था. गूगल ने एक संधि का हवाला दिया है, जिसके तहत जानकारी अदालत के आदेश के बाद मुहैया कराई जाती है.

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बीते पांच जनवरी को जेएनूय हिंसा से जुड़े कथित वीडियो में नजर आई युवती, जिसके बारे में दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हैं और एबीवीपी से जुड़ी हुई हैं. (फोटो साभार: ट्विटर)

बीते साल पांच जनवरी को जेएनयू में हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस ने वॉट्सऐप और गूगल को पत्र लिखकर 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप ग्रुप के सदस्यों द्वारा साझा किए गए संदेशों, तस्वीरों और वीडियो का विवरण मांगा था. गूगल ने एक संधि का हवाला दिया है, जिसके तहत जानकारी अदालत के आदेश के बाद मुहैया कराई जाती है.

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बीते पांच जनवरी को जेएनूय में हुई हिंसा से संबंधित कथित वीडियो फुटेज. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्लीः दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच ने जेएनयू में जनवरी 2020 में हुई हिंसा के बाद दो वॉट्सऐप समूहों के लगभग 33 सदस्यों की जानकारी हासिल करने के लिए गूगल को पत्र लिखा था.

इस संबंध में अब क्राइम ब्रांच को गूगल से जवाब मिला है, जिसमें कहा गया है कि इस तरह की जानकारी केवल तभी प्रदान कराई जा सकती है, जब पुलिस उन्हें पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) के तहत एक अनुरोध पत्र (Letter Rogatory) भेजती है.

इस संधि के तहत अदालत के आदेश के बाद ही एक देश किसी अन्य देश या संस्था (अमेरिकी कंपनी गूगल और भारतीय पुलिस) के बीच सूचना साझा की जा सकती है.

दरअसल पिछले साल पांच जनवरी को लाठी, डंडे और रॉड से लैस लगभग 100 नकाबपोश लोगों ने यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसकर छात्रों पर हमला किया था, जिसमें 36 छात्र, शिक्षक और स्टाफ घायल हो गए थे. जेएनयू छात्रसंघ ने एबीवीपी के सदस्यों पर हिंसा का आरोप लगाया था, वहीं एबीवीपी ने लेफ्ट छात्र संगठनों द्वारा हमले की बात कही थी.

इस संबंध में केस दर्ज कर मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया था. हालांकि, अभी तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने वॉट्सऐप और गूगल को पत्र लिखकर 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप ग्रुप ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट’ और ‘फ्रेंड्स ऑफ आरएसएस’ की ओर से साझा किए गए संदेश, तस्वीरें और वीडियो का विवरण मांगा था.

इस संबंध में वॉट्सऐप ने जानकारी साझा करने से मना कर दिया और गूगल ने हाल ही में जवाब भेजकर कहा था कि मांगी गई जानकारी ‘गूगल एलएलसी’ (अमेरिका में संचालित और अमेरिकी कानून से संचालित कंपनी) द्वारा मुहैया कराई गई सेवा के संबंध में है.

उन्होंने कहा कि वे डेटा को सुरक्षित रखेंगे, लेकिन एमएलएटी के तहत अनुरोध पत्र प्राप्त करने के बाद ही इसे साझा करेंगे.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस तरह के मामलों में गूगल डेटा के अधिकार क्षेत्र और अमेरिकी सरकार के बीच स्थापित राजनयिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं.

बता दें कि अनुरोध पत्र (Letter Rogatory) किसी विदेशी न्यायालय से किसी अन्य देश में किसी संस्था की जांच में न्यायिक सहायता की मांग करने वाला एक औपचारिक अनुरोध है.

पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) सार्वजनिक या आपराधिक कानूनों को लागू करने के प्रयास में जानकारी एकत्र करने और आदान-प्रदान करने के लिए दो या दो से अधिक देशों के बीच एक समझौता है.

वहीं, पुलिस ने गूगल के साथ 33 छात्रों और दो वॉट्सऐप समूहों के सदस्यों के ईमेल एड्रेस साझा किए थे.

सूत्रों का कहना है कि जांचकर्ताओं को (गूगल और वॉट्सऐप से) ऐसी मांग करनी पड़ी, क्योंकि इस घटना के संबंध में जिन छात्रों से पूछताछ की गई, उनके फोन से कोई वॉट्सऐप ग्रुप नहीं मिला, जिससे यह संदेह हुआ कि संदिग्धों ने अपने चैट हटा दिए होंगे.

सूत्रों का कहना है कि पुलिस का मानना है कि गूगल जांच में सहायता के लिए वॉट्सऐप संदेशों के बैकअप साझा करेगा.

मालूम हो कि पिछले साल नौ जून को दिल्ली पुलिस ने नौ संदिग्धों के नाम जारी किए थे. ये सभी छात्र थे, जिनमें से सात की पहचान छात्रों के वामपंथी संगठन के सदस्यों के तौर पर की गई थी. दो अन्य आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी के छात्र थे. हालांकि, पुलिस ने उनके नाम नाम उजागर नहीं किए थे.

मालूम हो कि बीते साल पांच जनवरी को हुई हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष ओइशी घोष सहित 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. जेएनयू के सर्वर रूम में तोड़फोड़ और सुरक्षा गार्डों पर हमला करने के आरोप में घोष और अन्य 19 लोगों के खिलाफ यह केस विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से दर्ज कराया गया था.

इस मामले में पुलिस ने एक नकाबपोश महिला की पहचान दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा कोमल शर्मा के रूप में की थी. उन्होंने छात्रा के साथ दो अन्य युवकों अक्षत अवस्थी और रोहित शाह को आईपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस जारी किया था.

केस दर्ज करने के बाद पुलिस के विशेष जांच दल के 20 जवानों ने जेएनयू एडमिन ब्लॉक के अंदर कैंप कार्यालय स्थापित किया था. पुलिस ने बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा कोमल शर्मा से पूछताछ की, जिसने दावा किया कि वह हिंसा के दौरान परिसर में मौजूद नहीं थी.

बहरहाल तकरीबन एक साल बाद इस मामले में अब तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही कोई चार्जशीट दाखिल हुई है, दूसरी ओर जेएनयू प्रशासन की आंतरिक जांच भी भंग कर दी गई है.