दुनियाभर के 187 प्रख्यात शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, लेखकों, फिल्मकारों ने विपक्षी दलों को पत्र लिखकर कहा है कि इस अप्रत्याशित संकट की घड़ी में अधिकतर राजनीतिक दल लोगों के हित में निष्पक्ष तरीके से काम करने को तैयार हैं. फिर भी भारत सरकार ने न तो इनके सुझावों का स्वागत किया है और न ही सभी दलों, राज्य सरकारों, विशेषज्ञों को साथ लेकर राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है.
स्मृति शेष: सागर सरहदी इस एहसास के साथ जीने की कोशिश करते रहे कि दुनिया को बेहतर बनाना है. मगर अपनी बदनसीबी के सोग में इस द्वंद्व से निकल ही नहीं पाए कि साहित्य और फिल्मों के साथ निजी जीवन में भी एक समय के बाद अपनी याददाश्त को झटककर ख़ुद से नया रिश्ता जोड़ना पड़ता है.
स्मृति शेष: प्रख्यात लेखक-फिल्मकार सागर सरहदी कभी विभाजन से संगत नहीं बैठा पाए. बंबई में बस जाने के बावजूद उनके अंदर का वह शरणार्थी लगातार अपने घर, अपनी जड़ों की तलाश में ही रहा.
कभी कभी, सिलसिला जैसी फिल्मों के लेखक और बाज़ार फिल्म के निर्देशक 88 वर्षीय सागर सरहदी कुछ समय से बीमार थे.
बासु चटर्जी को सारा आकाश, रजनीगंधा, छोटी-सी बात, उस पार, चितचोर, खट्टा मीठा, बातों बातों में, शौकीन, एक रुका हुआ फैसला और चमेली की शादी जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. दूरदर्शन पर प्रसारित चर्चित धारावाहिक ब्योमकेश बक्शी और रजनी का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था.
इससे पहले 100 से अधिक फिल्मकारों और 200 से अधिक लेखकों ने देश में नफरत की राजनीति के खिलाफ मतदान करने की अपील की थी.
‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल में महिलाओं को शामिल किया जाता तो अच्छा होता. यह 2018 है. फिल्म निर्देशक लीना यादव ने कहा कि यह दुखद है कि महिलाओं की आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
निर्माता-निर्देशक गांधी ने कहा, समाज के विभिन्न वर्गों से रचनात्मक लोगों को जिस तरह धमकियां मिल रही हैं, उससे रचनात्मक स्वतंत्रता ख़तरे में है.