रेलवे सुरक्षा बल के आंकड़ों के मुताबिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में करीब 80 लोगों की मौत 9 मई से 27 मई के बीच हुई है. इनमें चार वर्ष से लेकर 85 वर्ष तक के यात्री शामिल थे.
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बताया है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अब तक 50 लाख से अधिक मज़ूदरों को सुरक्षित और सुविधाजनक रूप से उनके गृह राज्यों तक पहुंचाने में सफल रही हैं.
झारखंड के एक प्रवासी मज़दूर और राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एपी सिंह की बातचीत का कथित ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. हालांकि अधिकारी का कहना है कि यह बात उन्होंने दूसरे संदर्भ में कही थी.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि राज्य ट्रेनों में सवार ग़रीब मज़दूरों के जीवन की रक्षा करने में विफल रहे हैं. आयोग ने केंद्रीय गृह सचिव, रेलवे और गुजरात और बिहार की सरकारों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में विस्तृत जवाब देने को कहा है.
ये नौ मौतें उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली अलग-अलग ट्रेनों में हुईं. रेलवे की ओर से कहा गया है कि अधिकतर मौतों के मामले में मृतक पहले से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना कर रहे थे.
वीडियो: सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो में मुज़फ़्फ़रपुर स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर महिला का शव के पास एक बच्चा नज़र आता है. अहमदाबाद से बिहार आ रही श्रमिक ट्रेन में सवार इस महिला के परिजनों का आरोप है कि खाने-पीने को न मिलने से तबियत ख़राब होने के बाद उनकी मौत हो गई. द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को न सिर्फ़ खाने-पीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण कई दिनों की देरी से वे अपने गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं. इस दौरान भूख-प्यास और भीषण गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.
उत्तर प्रदेश के मछलीशहर के रहने वाले जोखन यादव और उनके भतीजे रवीश यादव मुंबई में कंस्ट्रक्शन मज़दूर के रूप में काम करते थे. लॉकडाउन के चलते वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर लौट रहे थे, जब वाराणसी पहुंचने से कुछ देर पहले जोखन ने दम तोड़ दिया. उनके भतीजे का कहना है कि उन्होंने क़रीब 60 घंटों से कुछ नहीं खाया था.
इससे पहले रेल मंत्रालय द्वारा श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के लिए जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया था कि जिस राज्य से प्रवासी चलेंगे, उस राज्य को जिस राज्य में प्रवासी लौटना चाहते हैं, उसकी सहमति लेनी होगी. रेलवे ने बताया है कि अब तक 1,600 से अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के माध्यम से 21 लाख से अधिक प्रवासियों को उनके घर पहुंचाया जा चुका है.
ये रेलगाड़ियां मौजूदा समय में प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह प्रदेश पहुंचाने के लिए चलाई जा रहीं विशेष श्रमिक रेलगाड़ियों एवं राजधानी ट्रेन के रूट पर दिल्ली से 15 शहरों के लिए चलाई जा रहीं विशेष रेलगाड़ियों के अलावा होंगी.
रेलवे ने एक बयान में कहा है कि एक मई से अब तक 542 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं और लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे 6.48 लाख प्रवासियों को उनके घर पहुंचाया है.
दिल्ली सरकार ने बिहार के 1200 प्रवासी मजदूरों की सूची बनाकर उनका किराया रेलवे को सौंप दिया और इसका पैसा सीधे बिहार सरकार से मांगा. हालांकि, बिहार सरकार ने दिल्ली सरकार द्वारा मांगे गए करीब 6.5 लाख रुपये को वापस करने से इनकार कर दिया है.
श्रमिक स्पेशल ट्रेन के किराये को लेकर सरकार के विभिन्न दावों के बीच गुजरात से बिहार लौटे कामगारों का कहना है कि उन्होंने टिकट ख़ुद खरीदा था. उन्होंने यह भी बताया कि डेढ़ हज़ार किलोमीटर और 31 घंटे से ज़्यादा के इस सफ़र में उन्हें चौबीस घंटों के बाद खाना दिया गया.
मज़दूरों के हित निजी संपत्ति के मालिकों के हितों पर ही निर्भर हैं. सरकार सामाजिक व्यवस्था भी उन्हीं के लिए कायम करती है. अंत में यही कहा जाएगा कि उसने रेल भी मज़दूरों के हित में रद्द की हैं, उन्हें रोज़गार देने के लिए!
केंद्र सरकार ने दावा किया है कि श्रमिक ट्रेनों के जरिये यात्रा करने वाले मजदूरों के किराये का 85 फीसदी खर्चा रेलवे उठा रहा है. हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है.