जिस सुरक्षा को लेकर बीएचयू में पूरा बवाल हुआ, उसकी स्थिति अब भी वैसी ही है. जिस जगह पर छात्रा को छेड़ा गया था, वहां अब भी रोशनी का इंतज़ाम नहीं हुआ है.
वाराणसी कमिश्नर ने अपनी जांच रिपोर्ट में विश्वविद्यालय प्रशासन को दोषी क़रार देते हुए कहा है कि प्रशासन चाहता तो यह मामला आराम से निपट सकता था.
वीडियो: बीएचयू में छेड़छाड़ की घटना पर प्रदर्शन कर रही छात्राओं पर हुए बर्बर लाठीचार्ज के विरोध में दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन पर विरोध प्रदर्शन.
आप गलत कह रहे हैं कि बीएचयू को बदनाम किया जा रहा है. लड़कियां अपनी आज़ादी और सुरक्षा का हक़ मांग रही हैं. यह आज़ादी उनकी प्रतिभा को और निखारेगी. वे निखरेंगी तो बीएचयू भी निखरेगा.
छावनी में तब्दील रहा कैंपस. छात्र-छात्राओं से हॉस्टल खाली कराए गए. सीओ भेलूपुर और लंका एसओ हटाए गए.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कहना है कि उपद्रव की घटना बाहरी लोगों की देन है.
बीएचयू में लाठीचार्ज शर्मनाक है. क्या वीसी ये बताना चाहते हैं कि लड़कियों का कोई हक़ नहीं इस लोकतंत्र में? लड़कियों से कहा गया कि तुम रेप कराने के लिए रात में बाहर जाती हो.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वर्षों से चले आ रहे लड़कियों के उत्पीड़न पर छात्राओं द्वारा शायद पहला इतना बड़ा प्रतिरोध है.
कैंपस में छात्राओं के साथ बढ़ती छेड़खानी के विरोध में छात्राएं दो दिन से धरने पर बैठीं थीं.
योगी सरकार से पूछना चाहिए कि यह बेटियों की सुरक्षा है या छल? जिस मीडिया को पूछना चाहिए उसने तो अखिलेश सरकार के जाने के बाद जंगलराज ख़त्म मान लिया है.
'संकट मोचन संगीत समारोह और गंगा में एकरूपता है. जैसे गंगा सभी के लिए हैं, वैसे ही संकट मोचन का मंच भी सभी के लिए है.'
ग्राउंड रिपोर्ट: मीडिया द्वारा बनारस की मूल समस्याओं से ध्यान हटाकर उसे लंका से काशी विश्वनाथ और बीएचयू पर केंद्रित कर दिया गया. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष या विपक्ष में कर दिया गया. यह न तो जनतंत्र के लिए ठीक बात है और न ही पत्रकारिता के लिए.
ग्राउंड रिपोर्ट: ऊदल कम्युनिस्ट पार्टी के लोकप्रिय नेता थे. उन्होंने बनारस की कोलअसला विधानसभा सीट से नौ बार चुनाव जीतकर कीर्तिमान बनाया था लेकिन यह सब गुज़रे ज़माने की बात है.
ग्राउंड रिपोर्ट: होली के पहले बनारस में चुनाव का रंग चढ़ा हुआ है और यहां का माहौल देखकर लगता है कि इस बार की होली कुछ ज़्यादा ही लाजवाब होने वाली है.
2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान अति-उत्साही काशी की जनता, तीन साल बाद विधानसभा चुनाव में ऊर्जाविहीन लग रही है.