मीडिया मालिक अख़बारों और न्यूज़ चैनलों को सुधारने के लिए कुछ करें या न करें, लेकिन यह तो तय है कि जब तक हर रोज़, हर न्यूज़रूम में प्रतिरोध की आवाज़ें मौजूद रहेंगी, तब तक भारतीय पत्रकारिता बनी रहेगी.
बाबरी विध्वंस के 25 साल: बाबरी विध्वंस के बाद छिड़े सांप्रदायिक दंगों की आंच बंबई तक भी पहुंची थी. लोगों का कहना है कि वे इससे आगे बढ़ चुके हैं पर मुस्लिमों पर हुए हमलों की हालिया घटनाएं उन्हें डराती हैं.