हाल ही में लाए गए नए नियमों के तहत केंद्र सरकार को केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग के ऊपर नियंत्रण देना यह सुनिश्चित करेगा कि आरटीआई की अपील पर सरकार की मर्ज़ी के मुताबिक काम हो.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 15 फरवरी 2019 के फैसले में कहा था कि पारदर्शिता बरतते हुए सूचना आयुक्तों की नियुक्ति समय पर की जानी चाहिए. हालांकि अभी भी केंद्र और राज्यों में सूचना आयुक्तों के कई पद खाली हैं.
विशेष रिपोर्ट: हाल ही में कैबिनेट ने एनजीटी में पर्यावरण मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों को बतौर विशेषज्ञ सदस्य नियुक्त करने की मंज़ूरी दी है. इनका कार्यकाल पांच साल के बजाय तीन साल के लिए निर्धारित किया है. पर्यावरणविदों का आरोप है कि कार्यकाल घटाकर केंद्र सरकार एनजीटी की स्वायत्तता को प्रभावित करना चाहती है.
आरटीआई कार्यकर्ताओं ने नए नियमों को सूचना आयोगों की स्वतंत्रता एवं उनकी स्वायत्तता पर हमला करार दिया है.
विशेष रिपोर्ट: अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाकर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के संबंध में आरटीआई के तहत द वायर की ओर से मांगी गई जानकारी देने से भी गृह मंत्रालय ने मना कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने सूचना आयोगों में ख़ाली पद पर भी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि कोर्ट के साथ विभिन्न विभागों में ख़ाली पद होना मज़ाक का विषय बनता जा रहा है. जब तक ये ख़ाली पद भरे नहीं जाएंगे, ऐसे ही लंबित मामले बढ़ते रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सभी राज्यों में आरटीआई दायर करने की व्यवस्था ऑनलाइन करने की मांग की गई है. केंद्र ने 2013 सभी राज्यों से आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल बनाने के लिए कहा था लेकिन अभी तक सिर्फ दिल्ली और महाराष्ट्र ने ही ये काम किया है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय सूचना आयोग के 14 वें वार्षिक सम्मेलन में कहा कि आरटीआई आवेदनों की अधिक संख्या में किसी सरकार की सफलता नहीं छिपी होती.
आरटीआई कानून लागू होने की 14वीं सालगिरह पर जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी सूचना आयुक्तों की समय पर नियुक्ति नहीं हो रही है. इसकी वजह से देश भर के सूचना आयोगों में लंबित मामलों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है और लोगों को सही समय पर सूचना नहीं मिल पा रही है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को आरटीआई की सक्रियता के लिए बाधक बताया गया है. राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.
आरटीआई कानून की धारा 24 (1) कुछ खुफिया तथा सुरक्षा संगठनों को जानकारी साझा करने से छूट देती है. हालांकि, यदि मांगी गई सूचना भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़ी है तो यह नियम लागू नहीं होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अनुदान पाने वाले स्कूल, कॉलेज और अस्पताल जैसे संस्थान भी आरटीआई क़ानून के तहत नागरिकों को सूचना उपलब्ध कराने के लिए बाध्य हैं.
वीडियो: नई दिल्ली में सूचना का अधिकार कानून में संशोधन की अनुमति न देने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन देने पहुंचे कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया. राष्ट्रपति भवन के सामने आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कहा कि लोकतंत्र में अगर विरोध का अधिकार नहीं तो हमें बता दिया जाए.
सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया है. लेकिन अभी इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिली है.
मीडिया बोल की इस कड़ी में सरकार द्वारा आरटीआई और यूएपीए बिल में किए गए बदलावों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन, द वायर के पत्रकार धीरज मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट की वक़ील अवनि बंसल से चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश.