मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा पिछले महीने से राहत शिविरों के लोगों के लिए मुफ्त राशन और नकद सहायता बंद किए जाने के बाद भुखमरी से लोगों की मौत हुई है.
आइजोल: सोमवार को दो और नवजातों की मौत के साथ उत्तरी त्रिपुरा जिले के ब्रू राहत शिविरों में मृतकों की संख्या बढ़कर छह हो गई है. विस्थापित ब्रू लोगों के एक संगठन ने दावा किया है कि ये मौतें ‘भुखमरी’ के कारण हुईं.
तीन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वहीं, ब्रू शरणार्थी लोगों ने गुरुवार से ही मिज़ोरम की सीमा से लगने वाले एक इलाके में नाकेबंदी जारी रखा है. उनकी मांग है कि मुफ्त राशन और नकद सहायता बहाल की जाए.
मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) ने आरोप लगाया कि केंद्र द्वारा पिछले महीने से राहत शिविरों के लोगों के लिए मुफ्त राशन और नकद सहायता बंद किए जाने के बाद भुखमरी से लोगों की मौत हुई है.
फोरम के महासचिव ब्रूनो मशा ने कहा, ‘रविवार देर रात तीन महीने के ओजितराय और सोमवार को चार महीने के पिगिली रिआंग की मौत हमसापारा शिविर में हो गई. कम से कम तीन लोग खाने की कमी की वजह से बीमार हो गए है. स्थानीय अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है.’
उत्तर त्रिपुरा जिले के वरिष्ठ जिला अधिकारियों से कई प्रयासों के बाद भी संपर्क नहीं हो सका.
कंचनपुर में ड्यूटी पर तैनात मिज़ोरम के अधिकारियों ने कहा कि आंदोलनकारी ब्रू आवश्यक वस्तुओं को ले जा रहे ट्रकों को नहीं रोक रहे थे. वे मिज़ोरम के अधिकारियों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, जो ब्रू परिवारों को वापस लाने के लिए आए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीते एक अक्टूबर को गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा के उत्तरी जिलों में स्थित छह ब्रू राहत शिविरों में मुफ्त राशन और नकद सहायता रोक दी थी, जानमाल का खतरा बताते हुए ब्रू समुदाय के लोगों ने मिजोरम लौटने से इनकार कर दिया था. पिछले दो दशकों से यहां रहने वाले 32 हजार शरणार्थियों के मिज़ोरम वापसी का नौवां चरण शुरू हुआ था.
1997 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ब्रू समुदाय के तकरीबन 37 हजार लोग त्रिपुरा छोड़कर मिजोरम के मामित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों में भाग आए थे. वे पिछले 22 सालों से उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर और पानीसागर उप संभागों के छह शिविरों- नैयसंगपुरा, आशापारा, हजाचेर्रा, हमसापारा, कासकऊ और खाकचांग में रहे रहे थे.
ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों की बीच हुई यह हिंसा इनके पलायन का कारण बना था. इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी जब शक्तिशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं है.
इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त ज़िले की मांग की.
इसके बाद 21 अक्टूबर 1996 को बीएनएलफए ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक दंगा भड़क गया.
दंगे के दौरान ब्रू समुदाय के लोगों पड़ोसी उत्तरी त्रिपुरा की ओर धकेलते हुए उनके बहुत सारे गांवों को जला दिया गया था. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के कंचनपुर और पानीसागर उपसंभागों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं.
1997 में मिज़ोरम से त्रिपुरा आने के छह महीने बाद केंद्र सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत हर बालिग ब्रू व्यक्ति को 600 ग्राम और नाबालिग को 300 ग्राम चावल प्रतिदिन आवंटित किया जाता था.
पैकेज के तहत हर बालिग ब्रू व्यक्ति को पांच रुपये और नाबालिग को 2.5 रुपये प्रतिदिन का प्रावधान था. इसके अलावा इन्हें साल में एक बार साबुन और एक जोड़ी चप्पल तथा हर तीन साल पर एक मच्छरदानी दी जाती थी.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एमबीडीपीएफ के महासचिव ब्रूनो मशा ने कहा कि दो लोग की मौत बीते 31 अक्टूबर और तीन नवंबर को दो अन्य की मौत हो गई. अधिकारियों ने अज्ञात बीमारियों को इन मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया है. अगर सरकार भुखमरी से मौत होने की बात स्वीकार कर लेगी तो मुश्किल में पड़ जाएगी.’
केंद्र और मिजोरम सरकारों पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इन स्थितियों को ठीक करने के लिए सरकारों को कई बार ज्ञापन सौंपा गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार और मिजोरम सरकार ने हमारी परेशानियों से मुंह फेर लिया है. अगर हमारे पास उचित भोजन, रहने की व्यवस्था और सुरक्षा नहीं होगी तो हमारे लिए वापस (त्रिपुरा) लौटना असंभव है.’
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर त्रिपुरा जिला मजिस्ट्रेट रावल हमेंद्र कुमार से इस संबंध में बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
कंचनपुर उप-संभागीय मजिस्ट्रेट अभेदानंद बैद्य ने कहा कि उन्होंने ब्रू शिविरों में लोगों की मौत की खबरें सुनी हैं. उन्होंने कहा कि इन मामलों की जांच रिपोर्ट उनके पास नहीं है, इसलिए उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कंचनपुर उप-संभागीय अस्पताल और दास्दा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अधिकारियों ने भी इस संबंध में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, बीते रविवार को त्रिपुरा के नैयसंगपुरा ब्रू शिविर में 65 वर्षीय बिस्तीरंग रिआंग की मौत हो गई है. उनके बेटे मोलसोमा रिआंग ने कहा, ‘हम भारत के नागरिक हैं. हम मजबूरी में यहां आए थे. हमारे भोजन का अधिकार कहा है? क्या हम जानवर हैं.’
उन्होंने कहा कि पर्याप्त भोजन न मिल पाने के कारण उनकी मां को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं शुरू हो गई थीं. उन्होंने आरोप लगाया कि जब से सरकार ने मुफ्त राशन और नकद सहायता बंद की है, वह अपने लिए दवाइयां भी नहीं खरीद पा रही थीं और अंतत: उनकी मौत हो गई.
इसके अलावा मोनीराम और ज़ोरेमी मोलशॉय की एक साल की बेटी अकोसा की मौत भी रविवार को हो गई. जोरमी ने कहा कि शिविर में हर दिन एक व्यक्ति की मौत हो रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)