कोरोना वायरस के मद्देनज़र असम के एक गैर सरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि ऐसी ही राहत उन लोगों को भी दिए जाने की आवश्यकता है, जिन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी नागरिक घोषित किए जाने के बाद हिरासत में रखा गया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और असम सरकार को डिटेंशन सेंटरों से लोगों की रिहाई के निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र और असम सरकार को नोटिस जारी किया. याचिका में मांग की गई थी कि असम अवैध विदेशी नागरिकों के लिए बने डिटेंशन सेंटरों में जिसने दो साल से अधिक समय बिताया है उनकी रिहाई के निर्देश दिए जाएं.
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में ‘विदेशी नागरिक’ बताकर असम के छह डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों को रिहा करने की मांग की गई है. अर्जी में कहा गया है कि डिटेंशन सेंटर में रह रहे लोगों को भी कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा हो सकता है.
असम स्थित एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट ‘जस्टिस एंड लिबर्टी इनिशिएटिव’ने इस मामले में हस्तक्षेप किया है और सुपीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के फैसले की तारीफ करते हुए अर्जी में कहा गया है कि यह कैदियों और इस देश के लोगों के स्वास्थ्य, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लिया गया बहुत ही जरूरी कदम है.
ऐसी ही राहत उन लोगों को भी दिए जाने की आवश्यकता है, जिन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल ने विदेशी नागरिक घोषित कर हिरासत में रखा है.
बता दें कि बीते दिनों असम के कोकराझार में बने एक डिटेंशन सेंटर में हिरासत में रखी गईं एक 60 वर्षीय महिला की मौत के साथ मृतकों की संख्या 30 हो गई है.
अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 10 मई, 2019 को को दिए गए आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें हिरासत में रखे गए उन सभी लोगों को रिहा करने की अनुमति दी गई थी, जिन्हें 3 साल से ज्यादा हिरासत में रखा जा चुका था.
इसके अलावा अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 23 मार्च, 2020 के आदेश का भी हवाला दिया गया है, जिसमें ऐसे कैदियों के लिए दिशा-निर्देश पारित किए गए थे, जिन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.
अर्जी में यह रेखांकित किया गया है कि डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों को किसी आपराधिक कृत्य के कारण कैद में नहीं रखा गया है, बल्कि यह नागरिक कारावास के समान है. क्योंकि वह भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं, जिसके केवल नागरिक प्रभाव हैं.
अर्जी में कहा गया है कि एक मनुष्य होने के नाते उन्हें जीने का बुनियादी अधिकार है, न कि कोरोना वायरस से मरने का. राज्य अनुच्छेद 14 और 21 के तहत किसी भी व्यक्ति को मिले अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य हैं.
अर्जी में कहा गया है कि डिटेंशन कैंप में वायरस तेजी से पनप सकते हैं. क्योंकि डिटेंशन कैंपों में सफाई की व्यवस्था में तत्काल सुधार संभव नहीं है. कारगार हवादार नहीं हैं. कैदियों को छोटी-छोटी कोठरियों में सोना पड़ता है, वहां शौचालयों की संख्या भी कम है. ऐसे माहौल में सोशल डिस्टेंसिंग भी संभव नहीं है और संक्रामक बीमारियां आसानी से फैल सकती हैं.
बता दें कि एमेनस्टी इंटरनेशनल इंडिया (एआईआई) ने भी असम सरकार से राज्य में ‘अवैध विदेशी’ घोषित किए गए और खचाखच भरे हिरासत केंद्रों में रखे गए लोगों को रिहा करने की अपील की है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने के लिए स्वतः संज्ञान लिया है और प्राधिकारियों को विशिष्ट श्रेणियों के कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने पर विचार करने को कहा है.