यूपी: दो गर्भवती महिलाओं को इलाज न मिलने पर मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस भेजा

नोएडा में बीते दिनों नौ महीने की गर्भवती महिला के इलाज के लिए परिवार वाले 13 घंटे तक अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे, पर इलाज न मिलने पर एंबुलेंस में ही महिला की मौत हो गई. एक अन्य मामले में गर्भवती महिला ने समय पर इलाज न मिलने पर अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर मृत बच्चे को जन्म दिया था.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नोएडा में बीते दिनों नौ महीने की गर्भवती महिला के इलाज के लिए परिवार वाले 13 घंटे तक अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे, पर इलाज न मिलने पर एंबुलेंस में ही महिला की मौत हो गई. एक अन्य मामले में गर्भवती महिला ने समय पर इलाज न मिलने पर अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर मृत बच्चे को जन्म दिया था.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नोएडाः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने नोएडा में दो गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में भर्ती नहीं करने और इलाज से महरूम रखने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.

एनएचआरसी की ओर से जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से केंद्रशासित प्रदेश और राज्यों को निर्देश देने को कहा है कि कोरोना के अलावा किसी अन्य बीमारी के इलाज के लिए इमरजेंसी में आने वाले लोगों को चिकित्सकीय उपचार से वंचित नहीं रखा जाए.

इन रिपोर्टों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर मामले की विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है, जिसमें दोषी डॉक्टरों और अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, इसका ब्योरा भी मांगा गया है.

आयोग ने कहा कि अगर महिलाओं के प्रति चिकित्सकीय उदासीनता की ये समाचार रिपोर्ट सही हैं तो यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि राज्य सरकार अपने नागरिकों के लिए जीने और चिकित्सा के अधिकार सुनिश्चित कराने में असफल रहा है.

एनएचआरसी का कहना है कि यह समझने योग्य है कि कोरोना वायरस प्रसार के बीच में बड़ी संख्या मे मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है लेकिन मरीज को इलाज से महरूम रखना चिंता का विषय है.

आयोग राज्य सरकार से यह जानना चाहता है कि क्या सरकार की ओर से मौजूदा स्थिति को देखते हुए अस्पतालों को किसी तरह के निर्देश जारी किए गए हैं. अगर हां, तो सभी संबद्ध लोगों से सख्ती से इसका पालन करने को कहा जाएगा ताकि कोरोना वायरस से इतर अन्य बीमारियों के इलाज के लिए आपात स्थिति में आ रहे लोगों की जिंदगियां बचाई जा सके.

इसके अलावा आयोग ने इन प्रेस रिपोर्ट की क्लिपिंग केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को भी भेजी है ताकि इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उचित दिशानिर्देश जारी किए जा सके कि कोरोना से इतर बीमारियों के इलाज के लिए आपात स्थिति में अस्पताल आ रहे लोगों को मेडिकल इलाज से वंचित नहीं रखा जाए.

बता दें कि बीते पांच जून को नोएडा में कम से कम आठ अस्पतालों ने कोरोना संक्रमित होने के संदेह में आठ माह की एक गर्भवती महिला को प्रसव के लिए भर्ती करने से इनकार कर दिया. करीब 13 घंटे तक ऑटो और एंबुलेंस से तकरीबन आठ अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद आखिरकार महिला ने नोएडा के एक अस्पताल के बाहर एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया.

महिला के परिवार का कहना था कि अस्पताल में बिस्तर नहीं मिलने की वजह से वे लोग उन्हें लेकर 13 घंटे तक अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे पर समय से इलाज नहीं मिलने पर एंबुलेंस में ही उनकी मौत हो गई.

नोएडा में ही हुई एक दूसरी घटना में 26 वर्षीय महिला को सेक्टर 30 स्थित नोएडा जिला अस्पताल में दाखिल करने से कथित रूप से इनकार कर दिया गया और उसने अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर मृत बच्ची को जन्म दिया.

यह महिला एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी हैं, जिसे लेबर पेन के बाद बीते गुरुवार रात साढ़े नौ बजे जिला अस्पताल लाया गया. उनके पति ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रशासन ने इसलिए उसे भर्ती करने से मना कर दिया क्योंकि वह पहले दाई के पास गई थी.

महिला के परिवार वालों का आरोप है कि अगर उसे समय पर उपचार मिल जाता तो बच्ची बच जाती.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)