महिला सुरक्षा पर केंद्र का राज्यों को परामर्श: बलात्कार के मामले में दो महीने में पूरी हो जांच

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी यह परामर्श हाथरस में एक ​दलित युवती के कथित गैंगरेप और मौत मामले में राष्ट्रव्यापी रोष के बाद आई है. परामर्श में कहा गया है​​ कि बलात्कार के मामलों में मौत के समय दिए गए बयान को केवल इसलिए ख़ारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज नहीं किया गया.

(फोटोः पीटीआई)

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी यह परामर्श हाथरस में एक दलित युवती के कथित गैंगरेप और मौत मामले में राष्ट्रव्यापी रोष के बाद आई है. परामर्श में कहा गया है कि बलात्कार के मामलों में मौत के समय दिए गए बयान को केवल इसलिए ख़ारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज नहीं किया गया.

(फोटोः पीटीआई)
(फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों से निपटने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को परामर्श (एडवाइजरी) जारी की किया है.

केंद्र सरकार ने परामर्श जारी कर कहा है कि बलात्कार के मामलों में जांच कानूनों के अनुरूप दो महीने के भीतर पूरी हो जानी चाहिए.

इसके साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता की कि मजिस्ट्रेट ने पीड़िता का बयान दर्ज नहीं किया है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी तीन पेजों की यह विस्तृत परामर्श हाथरस में 19 साल की दलित युवती के कथित गैंगरेप और हत्या मामले में राष्ट्रव्यापी रोष के बाद आया है.

गृह मंत्रालय ने परामर्श में कहा है कि सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराध की स्थिति में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है और नियमों के पालन में पुलिस की असफलता पीड़ितों के लिए न्याय की राह में रोड़ा होगी.

परामर्श में कहा गया कि अगर महिला के यौन उत्पीड़न सहित अन्य संज्ञेय अपराध किसी पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है तो कानून में जीरो एफआईआर (थाने की सीमा से बाहर अपराध का होना) दर्ज करने का भी प्रावधान है.

परामर्श के मुताबिक, ‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का पालन करने में असफल होती है तो इससे विशेष रूप से महिला सुरक्षा के संदर्भ में, देश की न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होगी.’

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जारी किए गए परामर्श में कहा गया, ‘गौर करने पर इस तरह की कमियों की जांच करने की जरूरत है और इसके लिए जिम्मेदार संबंधित अधिकारियों के खिलाफ त्वरित एवं सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है.’

गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को बताया, ‘सीआरपीसी की धारा 173 में बलात्कार से जुड़े मामलों की जांच दो महीनों में करने का प्रावधान है. सीआरपीसी की धारा 164ए के अनुसार बलात्कार या यौन शोषण के मामले की सूचना मिलने पर 24 घंटे के भीतर पीड़िता की सहमति से एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा मेडिकल जांच की जानी चाहिए.’

परामर्श में कहा गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत मृत व्यक्ति के लिखित या मौखिक बयान को जांच में अहम तथ्य माना जाएगा.

परामर्श के अनुसार, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सात जनवरी 2020 के अपने आदेश में निर्देश दिया कि एक ऐसा विशेष बयान जिसे कोई मरणासन्न शख्स दर्ज करा रहा है और जो न्यायिक जांच की सभी जरूरतों को पूरा कर रहा है उसे इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसे मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज नहीं किया गया है और बयान दर्ज कराते समय पुलिस अधिकारी ने वहां मौजूद किसी अन्य शख्स से सत्यापन नहीं कराया है.’

इसके मुताबिक, यह अनिवार्य है कि प्रत्येक यौन उत्पीड़न के मामले की जांच में यौन उत्पीड़न सबूत संग्रहण (एसएईसी) किट का इस्तेमाल किया जाए जिसके लिए गृह मंत्रालय नियमित तौर पर सबूतों को एकत्र करने, संरक्षित करने और फॉरेंसिक सबूतों की कड़ियों को जोड़ने का प्रशिक्षण और प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षक (टीओटी) कार्यक्रम पुलिस, अभियोजक और चिकित्सा अधिकारियों के लिए चलाता है.

गृह मंत्रालय ने कहा कि यौन उत्पीड़न मामलों के लिए ऑनलाइन पोर्टल इन्वेस्टिगेशन ट्रैकिंग सिस्टम फॉर सेक्सुअल ऑफेंसेस (आईटीएसएसओ) पर मामलों की निगरानी करने का अनुरोध किया जाता है.

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी जाती है कि वे लगातार यौन अपराध में लिप्त अपराधियों की पहचान और उन्हें ट्रैक करने के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस का इस्तेमाल करें.

गृह मंत्रालय ने महिलाओं के खिलाफ अपराध मामलों को लेकर जांच के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के संदर्भ में 16 मई 2019 और पांच दिसंबर 2019 को भेजे गए पिछले परामर्श का भी उल्लेख किया.

परामर्श में कहा गया, ‘भारत सरकार ने महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ यौन अपराध की घटनाओं से निपटने के लिए विधायी प्रावधान को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं.’

परामर्श में आगे कहा गया, ‘राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आग्रह किया जाता है कि वे कानून के प्रावधानों के साथ इन नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर सकते हैं. इसके साथ ही आईटीएसएसओ पर मामलों की निगरानी करने का भी आग्रह किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानून के अनुरूप समय से दोषियों के खिलाफ चार्जशीट के लिए उपयुक्त कार्रवाई की जा सके.’

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)