विदेशी प्रकाशनों की ख़बरें प्रकाशित करने से पहले सत्यापित करें अख़बार: भारतीय प्रेस परिषद

25 नवंबर को जारी एक मीडिया एडवाइज़री में भारतीय प्रेस परिषद ने कहा कि स्रोत दिए जाने के बावजूद भारतीय अखबारों में प्रकाशित विदेशी अख़बारों के कंटेंट के लिए रिपोर्टर, संपादक और प्रकाशक को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.

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(फोटो: पीटीआई)

25 नवंबर को जारी एक मीडिया एडवाइज़री में भारतीय प्रेस परिषद ने कहा कि स्रोत दिए जाने के बावजूद भारतीय अखबारों में प्रकाशित विदेशी अख़बारों के कंटेंट के लिए रिपोर्टर, संपादक और प्रकाशक को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.

Vendors arrange different vernacular newspaper before delivering it to customers during the nationwide lockdown in Guwahati. PTI Photo
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विदेशी सामग्री के अनियमित सर्कुलेशन को गैरजरूरी बताते हुए भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने कहा है कि भारतीय अखबार विदेशी प्रकाशनों के जिन हिस्सों को प्रकाशित करना चाहते हैं उसे पहले सत्यापित कर लें.

25 नवंबर को जारी एक मीडिया एडवाइजरी में पीसीआई ने कहा कि यह फैसला विदेशी सामग्री प्रकाशित करने में भारतीय समाचार पत्रों की जिम्मेदारी के बारे में सरकार के विभिन्न विभागों से प्राप्त अनुरोधों पर आधारित है.

एडवाइजरी में आगे कहा गया कि स्रोत दिए जाने के बावजूद भारतीय अखबारों में प्रकाशित कंटेंट के लिए रिपोर्टर, संपादक और प्रकाशक को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स और द इकोनॉमिस्ट सहित विदेशी प्रकाशनों के संपादकीय अक्सर भारतीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किए जाते हैं.

जैसा कि द वायर  ने पहले भी रिपोर्ट किया है, हाल के दिनों में बड़ी संख्या में विदेशी प्रकाशन नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते रहे हैं.

जहां पीसीआई एडवाइजरी भारतीय अखबारों के लिए है, वहीं मोदी सरकार ने विदेशी पत्रकारों और प्रकाशनों पर लगाम लगाने के लिए कई नियम बनाए हैं. उदाहरण के तौर पर जे-वीजा धारक (पत्रकारों के लिए) बिना किसी स्पष्टीकरण के गृह मंत्रालय के वीजा धारकों की उस सूची का हिस्सा नहीं थे, जिन्हें कोविड-19 की अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान भारत में प्रवेश दिया जा रहा था. इस खबर के प्रकाशित होने के बाद इस नियम को बदला गया.

इसके साथ ही हाल ही में मोदी सरकार ने डिजिटल मीडिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी निर्धारित कर दी है.

इसके कारण ही भारतीय संस्करण चलाने वाले कई विदेश प्रकाशनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और यही कारण है कि इसी हफ्ते हफपोस्ट इंडिया ने भारत में काम बंद कर दिया.

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