एनआरसी सूची जारी होने के डेढ़ साल बाद एनआरसी समन्वयक ने हाईकोर्ट से कहा- फाइनल सूची आनी बाक़ी

असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए थे. अब एनआरसी समन्वयक हितेश शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में दायर एक हलफ़नामे में कहा है कि वह सप्लीमेंट्री सूची थी और उसमें 4,700 अयोग्य नाम शामिल हैं.

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Guwahati: An official checks the documents submitted by people at an National Register of Citizens (NRC) Seva Kendra in Guwahati, Friday, Aug 30, 2019. The NRC with the final list of citizens will be published tomorrow on August 31, 2019. Chief Minister of Assam Sarbananda Sonowal has asked people not to panic, and has directed all Government agencies of Assam to cooperate with people. (PTI Photo)(PTI8_30_2019_000055B)
(फोटोः पीटीआई)

असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए थे. अब एनआरसी समन्वयक हितेश शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में दायर एक हलफ़नामे में कहा है कि वह सप्लीमेंट्री सूची थी और उसमें 4,700 अयोग्य नाम शामिल हैं.

Guwahati: An official checks the documents submitted by people at an National Register of Citizens (NRC) Seva Kendra in Guwahati, Friday, Aug 30, 2019. The NRC with the final list of citizens will be published tomorrow on August 31, 2019. Chief Minister of Assam Sarbananda Sonowal has asked people not to panic, and has directed all Government agencies of Assam to cooperate with people. (PTI Photo)(PTI8_30_2019_000055B)
(फोटोः पीटीआई)

गुवाहाटी: असम राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने के करीब डेढ़ साल बाद असम के एनआरसी समन्वयक हितेश शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट को बताया है कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा एनआरसी की अंतिम सूची अभी जारी की जानी बाकी है.

बुधवार को हासिल हलफनामे की प्रति के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट में बताया गया है कि 3 दिसंबर को दाखिल इस हलफनामे में शर्मा ने कहा है कि आरजीआई अंतिम सूची के प्रकाशन पर चुप्पी साधे थे.

उन्होंने 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित सूची को सप्लीमेंट्री (पूरक) एनआरसी करार दिया और कहा कि इसमें 4,700 अयोग्य नाम शामिल हैं.

बता दें कि सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में प्रकाशित एनआरसी की सूची 31 अगस्त, 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 1,906,657 लोगों के नाम नहीं थे. कुल 33,027,661 आवेदकों में से 31,121,004 लोगों के नाम शामिल किए गए थे.

राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, सूची में जिन 19 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं हुए थे उसमें 5.56 लाख हिंदू और 11 लाख मुस्लिम थे.

एक प्रेस बयान में तत्कालीन एनआरसी राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने इसे अंतिम सूची कहा था.

हालांकि, असम सरकार ने अगस्त 2019 की सूची को गलत माना था और एक त्रुटिपूर्ण एनआरसी बनाने के लिए हजेला को दोषी ठहराया था. राज्य सरकार के साथ उनके संबंध बिगड़ने के बाद उन्हें पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से बाहर कर दिया था.

इस साल सितंबर में असम सरकार ने कहा था कि वह 2019 में आई एनआरसी में शामिल नामों का 10 से 20 फीसदी दोबारा सत्यापन कराने की अपनी मांग पर अडिग है.

तब से एनआरसी प्रक्रिया रुकी हुई है और अभी एनआरसी कार्यालय को बाहर रहे 19 लाख व्यक्तियों को अस्वीकृति के आदेश (रिजेक्शन ऑर्डर) जारी करने बाकी हैं.

यह ऑर्डर प्राप्त होने के बाद ही ये लोग विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) में उनके बाहर रहने के खिलाफ अपील कर सकते हैं.

हलफनामे में शर्मा ने जवाब दिया कि प्रकाशित एनआरसी में उनके द्वारा ज्ञात सभी विसंगतियों को इस वर्ष फरवरी में आरजीआई को सूचित किया गया था.

इसके अलावा उन्होंने एक त्रुटि मुक्त एनआरसी के हित में सुधारात्मक उपायों के लिए आवश्यक दिशानिर्देश मांगे थे जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि एनआरसी सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से संबंधित है.

हालांकि आरजीआई ने विसंगतियों से निपटने के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया है.

उन्होंने लिखा, ‘इसके बजाय एनआरसी के अपडेशन की अस्वीकृत पर्चियों और संचालन के समापन के लिए निर्देश प्राप्त हुए हैं. भारत का रजिस्ट्रार जनरल भी एनआरसी के अंतिम प्रकाशन पर चुप है, जो इस कार्रवाई करना एकमात्र अथॉरिटी है और आज तक भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के तहत नियमों के क्लॉज 7 के अनुसार अंतिम एनआरसी प्रकाशित किया जाना बाकी है.’

वहीं, असम सरकार बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में 20 प्रतिशत नाम और बाकी हिस्से में 10 प्रतिशत नामों के पुन: सत्यापन यानी रीवेरिफिकेशन की मांग पर कायम है.

इससे पहले असम के संसदीय कार्य मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने इस साल अगस्त में विधानसभा में बताया था कि राज्य सरकार ने इस बारे में उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया है.

शर्मा ने लिखा कि अगस्त 2019 में एनआरसी के प्रकाशन के बाद एनआरसी प्रक्रिया से जुड़े कुछ जिला प्रमुखों नागरिक रजिस्टर के जिला पंजीयक (डीआरसीआर) ने तत्कालीन राज्य समन्वयक से कुछ लोगों परिणामों में परिवर्तन की मांग की थी.

कुल 10,199 अनुरोध किए गए थे जिनमें से 5,404 रिजल्ट को ’रिजेक्ट’ से एक्सेप्ट ’में बदलने के लिए थे और 4,795 रिजल्ट को’ एक्सेप्ट ’से रिजेक्ट’ में बदलने के लिए थे.

4,795 अनुरोधों में से 1,032 नाम हटाने के लिए थे क्योंकि वे घोषित विदेशियों (डीएफ), डाउटफुल वोटर (डीवी), विदेशी ट्रिब्यूनल (पीएफटी) पर लंबित मामलों वाले व्यक्तियों और इन श्रेणियों के वंशजों की श्रेणी में आते थे. शेष 3,763 अनुरोध अन्य कारणों के कारण नाम हटाने के लिए थे.

शर्मा ने पहले ही अक्टूबर में एनआरसी के जिला प्रभारियों को 1,032 नामों को हटाने के लिए लिखा था. शर्मा ने लिखा था कि 3,763 नामों पर कार्रवाई की भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा अनुमोदन के आगे सत्यापन के बाद विचार किया जाएगा.

वेरीफिकेशन प्रक्रिया शुरू के लिए भारत के रजिस्ट्रार जनरल के अनुमोदन की आवश्यकता है और यदि सहमति हो तो ऐसे सत्यापन के लिए भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा धन की आवश्यक स्वीकृति आवश्यकता होगी.

हलफनामे में शर्मा ने विस्तार से समझाने की कोशिश की है कि हजेला के कार्यकाल के दौरान किस तरह से एनआरसी प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में किस तरह से खामियां थीं. जैसे कि श्रेणी में न होने के बावजूद लोगों को मूल निवासी की श्रेणी में डाल दिया गया, सत्यापन कदमों को उचित परिश्रम के साथ निष्पादित नहीं किया गया, सत्यापन अधिकारियों में से कुछ की अखंडता संदेह से परे नहीं थी और अन्य के साथ शीर्ष अधिकारियों द्वारा गुणवत्ता की जांच में कमी.

गौरतलब है कि 2019 में एनआरसी की सूची के प्रकाशन के बाद से ही इस पर सवाल उठते रहे हैं. सवाल उठाने वालों लोगों में सबसे पहले राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा रही थी.

31 अगस्त को अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद भाजपा ने कहा था कि वह एनआरसी की अपडेट हुई सूची पर भरोसा नहीं करती हैं.

भाजपा असम के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास द्वारा एक संवाददाता सम्मेलन में कहा गया था कि एनआरसी की अंतिम सूची में आधिकारिक तौर पर पहले बताए गए आंकड़ों की तुलना में बाहर किए गए लोगों की बहुत छोटी संख्या बताई गई है.

इसके बाद राज्य के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने भी कहा था कि एनआरसी की अंतिम सूची में कई ऐसे लोगों के नाम शामिल नहीं हैं जो 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए थे.

इसके बाद एक अन्य अवसर पर उन्होंने कहा था, ‘भारतीय जनता पार्टी को इस पर भरोसा नहीं है क्योंकि जो हम चाहते थे उसके विपरीत हुआ. हम सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि भाजपा इस एनआरसी को खारिज करती है. यह असम के लोगों की पहचान का दस्तावेज नहीं है.’

इस एनआरसी की अंतिम सूची से नाखुश लोगों में असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) नाम का गैर-सरकारी संगठन भी है, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के तहत असम में एनआरसी को अपडेट करने के लिए शीर्ष न्यायालय में मूल याचिकाकर्ता था.

एपीडब्ल्यू  का कहना था कि अंतिम एनआरसी सूची की प्रक्रिया को दोषपूर्ण तरीके से पूरा किया गया था. इस साल की शुरुआत में भी एनआरसी समन्वयक शर्मा ने कहा था कि इस सूची में अयोग्य लोगों के नाम जुड़ गए हैं.

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