मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के चलते राज्य में आ रहे वहां के नागरिकों को मानवीय आधार पर शरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है.
आइजोल: मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने म्यांमार से अवैध माइग्रेशन पर रोक लगाने और शरणार्थियों का तेजी से प्रत्यर्पण सुनिश्चित करने के केंद्र सरकार के आदेश को ‘अस्वीकार्य’ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्हें मानवीय आधार पर शरण देने का अनुरोध किया है. एक अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी.
म्यांमार में पिछले महीने सैन्य तख्तापलट के बाद से कई पुलिसकर्मियों समेत सैंकड़ो शरणार्थी मिजोरम आ चुके हैं.
जोरमथांगा ने कहा कि चूंकि उनके राज्य के लोगों के म्यांमार के चिन समुदाय के शरणार्थियों के साथ जातीय संबंध रहे हैं, लिहाजा उनकी दुर्दशा से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि जोरमथांगा ने 18 मार्च को मोदी को पत्र लिखकर राजनीतिक शरणार्थियों को मानवीय आधार पर शरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है.
उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 10 मार्च को मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर को जारी की गई एडवायजरी उनके राज्य को स्वीकार्य नहीं है.
पीटीआई के अनुसार, जोरमथांगा ने पत्र में लिखा, ‘यह (गृह मंत्रालय की एडवायजरी) मिजोरम को स्वीकार्य नहीं है. मैं समझ सकता हूं कि विदेश नीति से जुड़े विभिन्न मुद्दे होते हैं, जिनपर भारत को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होता है. बहरहाल, हम इस मानवीय संकट को नजरअंदाज नहीं कर सकते.’
सत्तारूढ़ एमएनएफ भाजपा की अगुवाई वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का हिस्सा है, लेकिन राज्य में इसका भाजपा से गठबंधन नहीं है.
उन्होंने आगे कहा, ‘म्यांमार के मिजोरम से सटे सीमाई इलाकों में चिन समुदाय के लोग रहते हैं जो भारत की आज़ादी के बहुत पहले से राज्य के लोगों के साथ जातीय संबंध साझा करते हैं और उनके करीबी हैं.
जोरमथांगा ने कहा कि म्यांमार में बहुत बड़े स्तर पर तबाही हो रही है और जिस सेना को रक्षा करनी चाहिए, वही निर्दोष नागरिकों को मार रही है. हर रोज म्यांमार के डरे हुए नागरिक शरण और सुरक्षाकी तलाश में मिजोरम आने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
पत्र में आगे कहा गया है, ‘इसलिए मिजोरम उनके दुख और कष्टों से अछूता नहीं रह सकता. भारत हमारे ही सामने हो रही इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी को लेकर आंखें नहीं मूंद सकता.’
अमर उजाला के अनुसार, राज्य के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से दिल्ली में मुलाकात की थी और म्यांमार से आए शरणार्थियों की मदद करने और उन्हें वापस न भेजने का अनुरोध किया था.
इस प्रतिनिधिमंडल में लोकसभा सांसद सी. लालरोसांगा, राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना, एमएनएफ नेता एच. राममावी और एमएनएफ के सलाहकार रोसांगजुला शामिल थे.
इनका कहना था कि म्यांमार के मौजूदा हालात में उन्हें वापस भेजना संभव नहीं है और भारत को म्यामांर में लोकतंत्र बहाली के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए.
मिजोरम से राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना में समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि अब तक राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के नागरिकों की संख्या हजार से ऊपर पहुंच चुकी है.
हालांकि राज्य के एक सीआईडी के अधिकारी ने बताया कि 1 फरवरी को म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से आधिकारिक तौर पर 547 नागरिक भारत में आए हैं.
अधिकारी के अनुसार, ‘असल में यह संख्या और ज्यादा हो सकती है क्योंकि राज्य के कई नागरिकों ने बिना प्रशासन को सूचना दिए हुए म्यांमार के नागरिकों को शरण दे रखी है. वहां से आए अधिकतर नागरिक आठ जिलों में पहुंचे हैं और उन्हें स्थानीय एनजीओ संभाल रहे हैं.’
कई संगठन, जिनमें राज्य का सबसे बड़ा संगठन मिज़ो जिरलाई पॉल भी शामिल है, इन शरणार्थियों की मदद के लिए चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं.
म्यांमार के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर की लंबी सीमा लगती है. इस सीमा की रखवाली की जिम्मेदारी असम राइफल्स के पास है.
गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने बीते एक फरवरी को तख्तापलट कर आंग सान सू ची और अन्य नेताओं को नज़रबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.
म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.
सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.
पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.
इसके बाद से वहां बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन और हिंसा होने की खबरें आई हैं. 14 मार्च सबसे हिंसक दिनों में से एक रहा था. इस दिन प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में कम से कम 38 लोगों की मौत हुई.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)