‘संयोग है कि गोशाला खोलने का निर्णय तब लिया जब राजनीति गाय के इर्द​​​​-गिर्द केंद्रित है​​​​’

पत्रकारिता विश्वविद्यालयों को चढ़ा बाबागिरी का बुखार. आईआईएमसी में हवन के बाद अब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय करेगा गोसेवा.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

पत्रकारिता विश्वविद्यालयों को चढ़ा बाबागिरी का बुखार. आईआईएमसी में हवन के बाद अब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय करेगा गोसेवा.

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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय.

जिन पत्रकारिता विश्वविद्यालयों पर छात्रों को पत्रकार बनाने की ज़िम्मेदारी होती है, वे आजकल गोसेवा, हवन और राष्ट्रवाद की वजह से चर्चा में हैं. हाल ही में दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के प्रांगण में हवन करवाया गया था और छत्तीसगढ़ के पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने व मानवाधिकार हनन के आरोपी पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी का भाषण भी हुआ था.

ताजा मामला भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का है. विश्वविद्यालय ने अपने नए बन रहे परिसर में अगले साल जुलाई तक गोशाला बनाने की योजना बनाई है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीके कुठियाला ने समाचार एजेंसी भाषा को बताया, हम विश्वविद्यालय के बिसनखेड़ी स्थित निर्माणाधीन परिसर में लगभग दो एकड़ भूमि में गोशाला बनाना चाहते हैं. इस गोशाला को चलाने हेतु इच्छुक संस्थाओं से हमने पहले ही अभिरुचि प्रस्ताव आमंत्रित कर लिए हैं.

इसे दूध एवं गोबर प्राप्त करने के लिए बनाया जा रहा है, ताकि विश्वविद्यालय के छात्रावास और परिसर में रहने वाले कर्मचारियों के लिए पैदा की जाने वाली साग-सब्जियों के लिए गोबर की खाद बन सके एवं बायोगैस संयंत्र का निर्माण हो सके. उन्होंने कहा, हम अगले साल जुलाई तक गोशाला खोलना चाहते हैं.

विश्वविद्यालय का कहना है कि नया परिसर 50 एकड़ का है. इसमें पांच एकड़ जगह खाली है. कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा का कहना है नए कैंपस में लगभग पांच एकड़ जमीन खाली हैं, जिसमें से दो एकड़ में गौशाला बनाई जाएगी और बाकी में सब्जी उगाने का काम किया जाएगा.

विश्वविद्यालय के इस फैसले की विपक्षी दलों ने आलोचना की है. मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि कुलपति अपने आरएसएस के गुरुओं को खुश करने का प्रयास कर रहे हैं. पत्रकारिता विश्वविद्यालय में गोशाला बनाने का क्या मतलब है? छात्र विश्वविद्यालय में पत्रकारिता सीखने के लिए आएंगे या गोसेवा करने. मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी विश्वविद्यालय में गोशाला खोलने पर सवाल उठाए हैं.

कुलपति बीके कुठियाला ने आज तक से कहा, अगर छात्र गोसेवा करना चाहेंगे और गोशाला का प्रबंधन सीखना चाहेंगे तो विकल्प भी उनके लिए उपलब्ध रहेगा. गोशाला शुरू करने के समय पर सवाल पूछे जाने पर कुठियाला ने कहा, ‘हम किसी एक्स या वाई विचारधारा का अनुसरण नहीं करते. ये सिर्फ संयोग है कि गोशाला खोलने का फैसला ऐसे समय में लिया गया जब देश में राजनीति गाय के इर्दगिर्द केंद्रित है. हमारे लिए नया परिसर बनाया जा रहा है और उसमें अतिरिक्त ज़मीन है.’

आजतक के अनुसार, जब कुलपति कुठियाला से सवाल किया गया कि गोशाला से उन छात्रों का क्या भला होगा जो मीडिया में अपना करिअर बनाना चाहते हैं?  इस पर उनका जवाब था, ‘पहली बात तो गोशाला से शुद्ध दूध, घी, मक्खन मिलेगा जिसे हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को बांटा जाएगा. अगर छात्रों को बांटने के बाद भी दूध बचेगा तो उसे परिसर में रहने वाले स्टाफ सदस्यों को बांटा जाएगा. इसके अलावा ऑर्गेनिक खेती भी की जाएगी जिसमें गाय का गोबर खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा. ये सबके फायदे वाली स्थिति होगी.’

गौरतलब है कि पांचजन्य के 14 मई, 2017 के अंक में कुठियाला ने ‘नारद सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक एवं आदर्श पत्रकार’ शीर्षक से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने ‘विष्णु के परम भक्त’ नारद को ‘आदि पत्रकार’ बताया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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