भारतीय विज्ञान संस्थान आतंकी मामले में गिरफ़्तार शख़्स चार साल बाद रिहा

मार्च 2017 में गिरफ़्तार किए गए ड्राइवर हबीब मिया पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2005 में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान पर हमले से पहले और बाद में एक प्रमुख आरोपी सबाउद्दीन अहमद को बांग्लादेश पार करने में मदद की थी. अहमद को 2008 की शुरुआत में नेपाल से पकड़ा गया था.

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बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस. (फोटो साभार: iken.iisc.ac.in)

मार्च 2017 में गिरफ़्तार किए गए ड्राइवर हबीब मिया पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2005 में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान पर हमले से पहले और बाद में एक प्रमुख आरोपी सबाउद्दीन अहमद को बांग्लादेश पार करने में मदद की थी. अहमद को 2008 की शुरुआत में नेपाल से पकड़ा गया था.

बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस. (फोटो साभार: iken.iisc.ac.in)
बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस. (फोटो साभार: iken.iisc.ac.in)

बेंगलुरु: 2005 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में एक आतंकवादी हमले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में अगरतला से गिरफ्तार किए जाने के चार साल बाद एक 40 वर्षीय ड्राइवर हबीब मिया को पिछले हफ्ते एनआईए की विशेष अदालत द्वारा यह कहते हुए रिहा कर दिया गया कि पुलिस उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रहा था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 28 दिसंबर, 2005 को हुए इस हमले में दिल्ली के एक विजिटिंग प्रोफेसर एमसी पुरी की मौत हो गई थी.

मार्च 2017 में गिरफ्तार किए गए हबीब मिया पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने हमले से पहले और बाद में एक प्रमुख आरोपी सबाउद्दीन अहमद को बांग्लादेश पार करने में मदद की थी. अहमद को 2008 की शुरुआत में नेपाल से पकड़ा गया था.

आरोप तय करने से पहले हबीब मिया द्वारा दायर आरोपमुक्त करने की याचिका को स्वीकार करते हुए एनआईए की विशेष अदालत ने अपने 14 जून के आदेश में अहमद के बयान का हवाला दिया कि हबीब मिया ने उसे सीमा पार करने में मदद की थी.

अदालत ने पाया कि आरोपी नंबर 1 (सबाउद्दीन अहमद) के पूरे बयान को ध्यान से देखने से यह पता चलता है कि इन बयानों के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चलता है कि आरोपी नंबर 7 (हबीब मिया) को पता था कि आरोपी नंबर 1 एक आतंकवादी है या वह आतंकवादियों से धन प्राप्त कर रहा है और उसने बेंगलुरु में आतंकवादी कृत्य करने की योजना बनाई है.

अदालत के अनुसार, आरोपी नंबर 1 के बयान से पता चलता है कि आरोपी नंबर 1 ने आरोपी नंबर 7 (हबीब मिया) के सामने अपना असली नाम तक नहीं बताया और न ही बताया कि वह बांग्लादेश क्यों जा रहा है.

अदालत ने कहा कि पुलिस यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं लाई है कि हबीब मिया को इस बात की जानकारी थी कि फर्जी पहचान का इस्तेमाल कर हबीब मिया से संपर्क करने वाला अहमद लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य है और आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए हथियार और गोला-बारूद प्राप्त कर रहा है.

विशेष जज डॉ. कसानप्पा नाइक ने कहा, ‘मैंने पाया कि आरोपी नंबर 1 के बयान में आरोपी नंबर 7 (हबीब मिया) को अपराध में फंसाने के लिए कुछ भी नहीं था. यह देखा गया है कि आरोपी संख्या 7 की गिरफ्तारी और उसका बयान दर्ज किए जाने के बाद अपराध में आरोपी संख्या 7 की संलिप्तता को साबित करने के लिए कोई और सबूत एकत्र नहीं किया गया है.’

अदालत ने कहा कि अगरतला में दो अन्य लोगों को ट्रैक करने का कोई प्रयास नहीं किया गया, जिनके बारे में बताया जाता है कि उन्होंने हमले के बाद अहमद को सीमा पार करने में मदद की थी.

अदालत ने कहा, ‘यह साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र सबूत नहीं है कि आरोपी नंबर 7 (हबीब मिया) ने आरोपी नंबर 1 को कोई आपराधिक और गैरकानूनी काम करने में मदद की. यदि आरोपी नंबर 7 ने अवैध रूप से बांग्लादेश जाने के लिए सीमा पार करने में आरोपी नंबर 1 की सहायता की थी, तो इस संबंध में मुकदमा चलाने का काम त्रिपुरा की संबंधित पुलिस का है और इस मामले (हमले) में उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.’

रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय विज्ञान संस्थान में आतंकवादी हमले  का मामला लगभग तीन वर्षों तक अनसुलझा रहा, लेकिन मूल रूप से बिहार के दरभंगा के रहने वाले आरोपी नंबर 1 सबाउद्दीन अहमद की गिरफ्तारी के बाद इसे सुलझा लिया गया. अहमद पर आरोप है कि उसने बेंगलुरु में अपने कॉलेज के पास एक कमरे में हमलावर अबू हमजा को पनाह दी थी. अबू हमजा पर पाकिस्तान भाग जाने का आरोप है.

पुलिस को दिए गए अहमद के बयान के अनुसार, मई 2005 में उसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के हैंडलर अब्दुल अजीज उर्फ वली उर्फ रेहान ने बेंगलुरु में एक आतंकी हमले की योजना को अंतिम रूप देने के लिए बांग्लादेश जाने के लिए कहा था.

अहमद ने पाया कि अगरतला बांग्लादेश में प्रवेश के लिए निकटतम स्थानों में से एक था, इसलिए उसने त्रिपुरा की यात्रा की. वह दावा करता है कि हबीब मिया से अगरतला की एक मस्जिद में मुलाकात हुई और अब्दुल अजीज से मिलने के लिए बांग्लादेश की यात्रा करने में उसकी मदद मांगी.

अहमद ने पुलिस को बताया, ‘उसने मुझे बताया कि उसका मामा बांग्लादेश के कोमिला में रह रहा था. उसने मुझे यह भी बताया कि वह बिना पासपोर्ट के बांग्लादेश जाता है. मैंने एक आगंतुक के रूप में बांग्‍लादेश जाने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की. वह मान गया और सीमा पार करने में कोई समस्या नहीं थी.’

बयान के मुताबिक, अहमद ने हबीब मिया से कहा कि उसे एक अंकल से मिलने ढाका जाना है. ढाका में अब्दुल अजीज के साथ अपनी मुलाकात के बा अहमद को हबीब मिया द्वारा वापस अगरतला ले जाया गया.

एक पाकिस्तानी आतंकवादी अबू हमजा को कथित तौर पर भारतीय विज्ञान संस्थान में हमले के लिए दिसंबर 2005 में नेपाल के रास्ते भारत भेजा गया था. अहमद पर हमले के लिए कश्मीर से एक एके-56 और हथगोले लाने का आरोप है.

हमले के बाद बिहार भागे अहमद ने फरवरी, 2006 में त्रिपुरा के रास्ते बांग्लादेश जाने का प्रयास किया. उसने हबीब मिया की मदद मांगी, जिसने कथित तौर पर उसे बताया कि वह शहर से बाहर है और उसे अपने भतीजे पप्पू को इस काम की जिम्मेदारी दे दी

हबीब मिया के भतीजे ने अहमद को अगरतला के एक अन्य निवासी सैफ उल इस्लाम से मिलवाया जिसने कथित तौर पर उसे ढाका की यात्रा में मदद की.

दिसंबर 2006 में जब लश्कर-ए-तैयबा के एक कमांडर ने अब्दुल अजीज से भारत के संचालन को संभालने वाले मुजम्मिल को बुलाया, तब उसने अहमद को बांग्लादेश के रास्ते काठमांडू की यात्रा करने का निर्देश दिया और अहमद ने कथित तौर पर हबीब मिया की फिर से मदद मांगी.

उसने पुलिस को बताया, ‘मैंने हबीब को फोन किया और वह मुझसे मिलने कोमिला (बांग्लादेश में) आया. लेकिन सुरक्षा कड़ी किए जाने का दावा करते हुए हबीब मिया ने अहमद की मदद करने से इनकार कर दिया.’

सुनवाई के दौरान हबीब मिया के वकील मोहम्मद तहरीर ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ मामला कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है.

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