कृषि क़ानूनों के विरोध के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का कोई रिकॉर्ड नहीं: केंद्र सरकार

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने तीन कृषि क़ानूनों के बारे में किसानों की आशंकाओं का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं कराया है, पर केंद्र ने किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने तीन कृषि क़ानूनों के बारे में किसानों की आशंकाओं का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं कराया है, पर केंद्र ने किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ वर्ष 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को संसद को यह जानकारी दी.

तोमर ने यह भी कहा कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों के बारे में किसानों के मन में आशंकाओं का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं कराया है.

तीन कानूनों के विरोध में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान आठ महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं. इनमें से 200 किसानों का एक छोटा समूह अब विशेष अनुमति मिलने के बाद मध्य दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को वर्ष 2020 के बाद से कृषि कानून के विरोध के दौरान मारे गए किसानों की कुल संख्या के बारे में पता है, तोमर ने कहा, ‘भारत सरकार के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है.’

गौरतलब है कि बीते मई महीने में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक, तब तक किसान आंदोलन में विभिन्न कारणों से 470 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पंजाब सरकार ने राज्य के किसानों और खेत मजदूरों की 220 मौतों की पुष्टि की है और 10.86 करोड़ रुपये का मुआवजा भी दिया है.

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे ज्यादा किसानों/खेत मजदूरों की मौत संगरूर जिले में हुई है, जहां पिछले आठ महीनों में ऐसी 43 मौतें हुई हैं. सरकार ने प्रत्येक मामले में 5 लाख रुपये मुआवजे की मंजूरी दी है. जिले में ऐसे परिवारों को कुल 2.13 करोड़ रुपये पहले ही दिए जा चुके हैं.

इस तरह की मौतों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या बठिंडा जिले से सामने आई जहां 33 ऐसी मौतें हुईं और सरकार ने इन मृतक किसानों के परिजनों को कुल 1.65 करोड़ रुपये मंजूर किए.

इसके अलावा मोगा में 27, पटियाला में 25, बरनाला में 17, मानसा में 15, मुक्तसर साहिब में 14, लुधियाना में 13 मौतों की पुष्टि हुई है.

फाजिल्का, फिरोजपुर और गुरदासपुर में क्रमश: सात, छह और पांच लोगों की मौत हुई है, जबकि अमृतसर और नवांशहर में चार-चार मौतें हुई हैं. मोहाली और तरणतारण में क्रमशः तीन और दो मौतें हुईं, जालंधर और कपूरथला में एक-एक मौत दर्ज की गई.

राज्यसभा में अपने लिखित उत्तर के दौरान तोमर ने कहा कि हालांकि, केंद्र सरकार ने किसान संघों के साथ चर्चा के दौरान उनसे अपील की थी कि उस समय की ठंड और कोविड​​​​-19 की स्थिति को देखते हुए बच्चों और बुजुर्गों, विशेषकर महिलाओं को घर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.

रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा लगभग दो दर्जन और मृतक किसानों और खेत मजदूरों का विभिन्न जिलों में सत्यापन चल रहा है और उनमें से लगभग सभी को इस सूची में शामिल किया जा सकता है.

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हाल ही में कहा था कि उनकी सरकार ऐसे मृतक के परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी भी उपलब्ध करा रही है और इसके लिए प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है.

किसान संगठन भी अपने स्तर पर ऐसी मौतों का विवरण एकत्र कर रही हैं और उनके अनुसार अब तक दिल्ली में विरोध प्रदर्शन के दौरान 500 से अधिक किसान/खेत मजदूर मारे गए हैं, जिनमें से लगभग 85 प्रतिशत केवल पंजाब के हैं.

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक अलग जवाब में कहा, ‘इन कृषि कानूनों के कारण किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं के कारणों का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं कराया गया है. हालांकि, केंद्र ने किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं.’

यह कहते हुए कि सरकार किसानों के मुद्दों के प्रति गंभीर और संवेदनशील है, मंत्री ने कहा कि केंद्र किसान संघों के साथ सक्रिय चर्चा में लगा हुआ है.

उन्होंने कहा कि मुद्दों को सुलझाने के लिए अब तक सरकार और आंदोलनकारी किसान संघों के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है.

उन्होंने कहा कि सभी दौर की चर्चाओं में सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि कानूनों को निरस्त करने पर जोर देने के बजाय, किसान संघों को विशिष्ट खंडों पर अपनी चिंताओं के बारे में चर्चा करनी चाहिए ताकि उनके मुद्दों का समाधान किया जा सके.

उन्होंने कहा, ‘विभिन्न दौर की चर्चाओं के दौरान, सरकार ने लगातार किसान संघों से कृषि कानूनों के प्रावधानों पर चर्चा करने का अनुरोध किया, ताकि यदि किसी प्रावधान पर आपत्ति हो, तो उनके समाधान की दिशा में प्रगति की जा सके. लेकिन किसान संघों ने केवल कृषि कानूनों को रद्द करने पर जोर दिया.’

सरकार और यूनियनों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शन के तहत  ट्रैक्टर परेड  के दौरान व्यापक हिंसा के बाद बातचीत फिर से शुरू नहीं हुई है.

उच्चतम न्यायालय ने तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है .मसले का समाधान खोजने के लिए न्यायालय ने एक समिति का गठन किया था जिसकी रपट मिल चुकी चुकी है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में आठ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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