दिल्ली की एक अदालत को बताया गया कि दंगों संबंधित मामले में नासिर अहमद नाम के व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज केस की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है और यहां तक कि प्राथमिकी में नामजद लोगों से पूछताछ भी नहीं हुई है. इस पर कोर्ट ने को फटकारा. बीते कुछ समय में अदालत दिल्ली दंगों के विभिन्न मामलों से निपटने के तरीके को लेकर पुलिस पर कई बार सवाल उठा चुकी है.
नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने दंगा मामले में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के महीनों बाद भी जांच में कोई प्रगति नहीं दिखने पर मंगलवार को पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि ‘यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने यह टिप्पणी तब की जब उन्हें अवगत कराया गया कि नासिर अहमद नामक व्यक्ति की शिकायत पर जून 2021 में दर्ज मामले की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है और यहां तक कि प्राथमिकी में नामित व्यक्तियों से पूछताछ भी नहीं की गई है.
न्यायाधीश ने कहा, ‘यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.’ उन्होंने कहा कि न तो दिल्ली पुलिस आयुक्त और न ही दंगा मामलों की जांच की निगरानी के लिए नवगठित विशेष जांच प्रकोष्ठ (एसआईसी) का इस मामले पर ध्यान गया.
उन्होंने कहा कि पुलिस दावा कर रही है कि फरवरी 2020 में दंगों के दौरान और उसके बाद के चार सप्ताह तक परिस्थितियां कठिन थीं, इसके बाद एक महामारी आई, जिसके कारण वह मामलों की ठीक से जांच नहीं कर सकी.
उन्होंने अभियोजक को सुनवाई की अगली तारीख पर पुलिस द्वारा की गई जांच के बारे में अदालत को बताने का निर्देश दिया और आदेश की प्रति पुलिस आयुक्त को उनके संदर्भ के लिए भेजने व उचित कदम उठाने के लिए कहा.
दिल्ली के भागीरथी विहार इलाके के निवासी नासिर अहमद ने दावा किया कि वह 24 और 25 फरवरी को सांप्रदायिक दंगे के दौरान गोकुलपुरी टोल-टैक्स के पास दंगा कर रहे 200-250 लोगों की भीड़ में से विभिन्न व्यक्तियों को पहचानते हैं.
उन्होंने दावा किया है कि 24 फरवरी को भीड़ ने लाउडस्पीकर से दूसरे समुदाय के लोगों के घरों और दुकानों में तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी का आह्वान किया. साथ ही उन्होंनेदावा किया कि पुलिस भीड़ के साथ थी.
उनका यह भी दावा है कि भीड़ ने कथित तौर पर उस इलाके से गुजरने वाले लोगों को रोका और अगर वे दूसरे समुदाय के पाए गए, तो उन्हें पीट-पीटकर घायल कर दिया तथा उनके वाहनों को जला दिया. 25 फरवरी को भीड़ ने उनके गोदाम और तीन बाइकों में आग लगा दी. दोनों तारीखों पर उन्होंने कई बार पुलिस को फोन किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
अहमद ने इसके बाद पुलिस से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्हें धमकियां भी मिलीं, जिसके बाद जिले की गवाह सुरक्षा समिति ने पुलिस से उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने को कहा.
अदालत ने कहा कि निसार अहमद ने पहली बार 4 मार्च, 2020 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. जब पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अहमद ने 18 मार्च को मुस्तफाबाद के ईदगाह राहत शिविर में दूसरी शिकायत दर्ज कराई. फिर उन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य होना पड़ा, जहां पहली बार अभियोजक ने कहा कि उनकी 18 मार्च की शिकायत को दो अलग-अलग मामलों के साथ जोड़ दिया गया है जिसमें किसी आरोपी का नाम नहीं था.
इसके बाद, अहमद ने अपने मामले में एक अलग प्राथमिकी दर्ज करने और अपनी शिकायत को किसी अन्य मामले में शामिल नहीं होने देने के लिए जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया.
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने 26 अक्टूबर को उसकी याचिका को स्वीकार कर लिया और पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया.
पुलिस ने उस आदेश को चुनौती दी, जिसे 26 अप्रैल को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने खारिज कर दिया. उन्हें एक अलग प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कहा गया, जो अदालत के निर्देशों के लगभग दो महीने बाद जून में दर्ज की गई. हालांकि प्राथमिकी में आरोपों की अभी तक कोई जांच नहीं हुई है.
अदालत ने विशेष अभियोजक को निर्देश दिया कि वह पुलिस द्वारा की गई जांच के बारे में अगली सुनवाई की तारीख पर अदालत को सूचित करें. अदालत अब 22 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करेगी.
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली पुलिस को दंगों की जांच के लिए अदालतों ने फटकार लगाई है. दिल्ली दंगों के विभिन्न मामलों से निपटने के तरीके को लेकर पुलिस पर अदालत हाल के दिनों में कई बार सवाल उठा चुकी है.
बीते 22 सितंबर को अदालत ने फरवरी 2020 में हुए दंगों के दौरान दुकानों में कथित रूप से लूटपाट करने के दस आरोपियों के खिलाफ आगजनी का आरोप को हटाते हुए कहा था कि पुलिस एक खामी को छिपाने का और दो अलग-अलग तारीखों की घटनाओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.
बीते 17 सितंबर को दिल्ली की एक अदालत ने ‘लापरवाही भरे रवैये’ को लेकर पुलिस को फटकार लगाई थी और कहा था कि पुलिस आयुक्त और अन्य शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने 2020 के दंगा मामलों के उचित अभियोजन के लिए सही कदम नहीं उठाए हैं.
बार-बार बुलाए जाने के बावजूद अभियोजक के अदालत में नहीं पहुंचने और जांच अधिकारी के बिना पुलिस फाइल पढ़े देरी से अदालत पहुंचने और सवालों का जवाब नहीं दे पाने को लेकर मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने उक्त टिप्पणी की थी.
इससे पहले दो सितंबर को दंगों के एक आरोपी गुलफाम के खिलाफ आरोप तय करने की सुनवाई के दौरान एक अन्य एफआईआर से बयान लेने पर पुलिस को फटकार लगाई थी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विनोद यादव ने कहा था कि यह समझ से परे है कि अभियोजन पक्ष ने एफआईआर संख्या 86/2020 के तहत गवाह के बयान लिए और उन्हें एफआईआर संख्या 90/2020 के तहत मामले की सुनवाई में इस्तेमाल किया.
दिल्ली की एक अदालत ने बीते दो सितंबर को कहा था कि जब इतिहास विभाजन के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो उचित जांच करने में पुलिस की विफलता लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी.
अदालत ने यह भी कहा था कि मामले की उचित जांच करने में पुलिस की विफलता करदाताओं के समय और धन की ‘भारी’ और ‘आपराधिक’ बर्बादी है.
बीते 28 अगस्त को अदालत ने एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि दिल्ली दंगों के अधिकतर मामलों में पुलिस की जांच का मापदंड बहुत घटिया है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा था कि पुलिस आधे-अधूरे आरोप-पत्र दायर करने के बाद जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने की बमुश्किल ही परवाह करती है, जिस वजह से कई आरोपों में नामजद आरोपी सलाखों के पीछे बने हुए हैं. ज्यादातर मामलों में जांच अधिकारी अदालत में पेश नहीं नहीं हो रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)