कृषि क़ानून पर बनी सुप्रीम कोर्ट की समिति के सदस्य ने कहा- मोदी सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष और विवादित कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक सदस्य अनिल जे. घानवत ने कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी क़दम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना. समिति सदस्यों ने यह भी कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट उनके द्वारा मार्च में सौंपी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता है तो वे कर देंगे.

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सिंघू सीमा पर कृषि कानून वापस लिए जाने के निर्णय पर जश्न मनाते किसान. (फोटो: पीटीआई)

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष और विवादित कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक सदस्य अनिल जे. घानवत ने कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी क़दम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना. समिति सदस्यों ने यह भी कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट उनके द्वारा मार्च में सौंपी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता है तो वे कर देंगे.

सिंघू सीमा पर कृषि कानून वापस लिए जाने के निर्णय पर जश्न मनाते किसान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विवादित कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक अहम सदस्य ने शुक्रवार को कहा कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने का सरकार का फैसला ‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’ है क्योंकि इस ‘राजनीतिक कदम’ से किसानों का आंदोलन खत्म नहीं होगा और इससे भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों में मदद नहीं मिलेगी.

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल जे. घानवत ने कहा कि आंदोलनकारियों ने आगामी विधानसभा चुनावों तक प्रदर्शन की योजना बनाई थी. केंद्र तब नहीं झुका, जब आंदोलन चरम पर था और अब उसने अपने घुटने टेक दिए हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार को कानूनों को निरस्त करने के बजाय इस मुद्दे से निपटने के लिए अन्य नीतियां अपनानी चाहिए थी. अगर सरकार ने संसद में विधेयक पारित करने के दौरान इन पर उचित तरीके से चर्चा की होती तो ये कानून बच सकते थे.

मालूम हो कि इसी साल के जनवरी महीने की 12 तारीख को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी.

साथ ही न्यायालय ने इन कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसके सदस्य भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी थे.

हालांकि किसान संगठनों के विरोध के चलते भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था.

कमेटी बनने के बाद किसानों ने कहा था कि वे इस समिति के सामने पेश नहीं होंगे. उनका कहना था कि कोर्ट की समिति के सदस्य सरकार के समर्थक है, जो इन कानूनों के पक्षधर हैं. इसी को लेकर मान पीछे हट गए थे.

उल्लेखनीय है कि गुरु नानक जयंती पर शुक्रवार सुबह देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तीन कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए थे, लेकिन ‘हम सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद किसानों के एक वर्ग को राजी नहीं कर पाए.’

उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की और कहा कि एमएसपी के मसले पर एक समिति गठित की जाएगी.

सरकार के इस फैसले पर नाखुशी जताते हुए घानवत ने कहा कि इस फैसले से आंदोलन भी खत्म नहीं होगा क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानून का रूप देने की उनकी मांग अभी बाकी है और इस फैसले से भाजपा को राजनीतिक रूप से भी फायदा नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है. किसानों को थोड़ी आजादी दी गई लेकिन अब उनका शोषण किया जाएगा क्योंकि ब्रिटिश शासन या आजादी के बाद से ही उनका शोषण किया गया है.’

उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों में किसानों को पहली बार ‘विपणन में थोड़ी आजादी’ दी गई थी, लेकिन अब उन्हें निर्यात प्रतिबंध और भंडार सीमाओं जैसी पाबंदियों का सामना करना होगा.

घानवत ने कहा कि सरकार को आंदोलन से निपटने के लिए कुछ अन्य नीतियां अपनानी चाहिए थी ‘लेकिन अब वह आंदोलनकारियों के दबाव के आगे झुक गई है. हमें उम्मीद नहीं है कि अब कुछ अच्छा होगा.’

इसे राजनीतिक फैसला बताते हुए समिति के सदस्य ने कहा, ‘वे (केंद्र) तब नहीं झुके, जब आंदोलन चरम पर था लेकिन उन्होंने अब अपने घुटने टेक दिए क्योंकि वे उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव जीतना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी को एक बार फिर चुनाव जीताने के लिए उन्होंने पीछे हटने का फैसला किया. यह अच्छा नहीं है.’

उन्होंने कहा कि दरअसल आंदोलनकारियों ने आगामी विधानसभा चुनावों तक आंदोलन जारी रखने की योजना बनाई है. नए कानूनों के कुछ प्रावधानों की स्थिति पर उन्होंने कहा कि पहले दो कानूनों को ज्यादातर राज्यों में लागू किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए एपीएमसी के बाहर कृषि उत्पादों को बेचना. अब 21 राज्यों में यह कानून लागू किया जा रहा है. खेती राज्य सूची का विषय है और यह राज्यों पर निर्भर है कि वह इस प्रावधान को जारी रखें या नहीं.’

उन्होंने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को शुक्रवार को पीछे ले जाने वाला कदम बताया.

घानवत ने कहा, ‘यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी कदम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना. हमारी समिति ने तीन कृषि कानूनों पर कई सुधार और समाधान सौंपे, लेकिन गतिरोध दूर करने के लिए इसका उपयोग करने के बजाय मोदी और भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) ने कदम पीछे खींच लिए. वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं और कुछ नहीं.’

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष घानवत ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय में हमारी सिफारिशें सौंपने के बावजूद अब ऐसा लगता है कि सरकार ने इसे पढ़ा तक नहीं. कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला पूरी तरह राजनीतिक है, जिसका मकसद आगामी महीनों में उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव जीतना है.’

उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले ने ‘खेती और उसके विपणन क्षेत्र में सभी तरह के सुधारों का दरवाजा बंद कर दिया है. भाजपा के राजनीतिक हितों पर किसानों के हित त्याग दिए गए हैं.’

घानवत ने कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने इसी तरह के सुधारों पर जोर दिया था, लेकिन राजनीतिक कारणों से उन्होंने बाद में इन कानूनों का विरोध किया.

उन्होंने कहा, ‘किसान संगठन होने के नाते हम इस मुद्दे पर लोगों को जागरूक करते रहेंगे.’

इस बीच समिति के अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कहा, ‘सरकार ने कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया और यह उसकी इच्छा है. समिति ने उच्चतम न्यायालय में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. हो सकता है कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार को इन कानूनों को निरस्त करने या कुछ और सलाह दी हो. यह किसानों के लिए अच्छा है. वे अब चैन की सांस ले सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने पर विचार करते हुए आगामी चुनावों पर भी ध्यान में रखा गया होगा.

घानवत और गुलाटी के अलावा कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद जोशी उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के तीसरे सदस्य हैं. समिति ने 19 मार्च को शीर्ष न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.

समिति ने कहा कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य अब खत्म हो गया है और अगर उच्चतम न्यायालय इसे सार्वजनिक नहीं करता है तो वह इसे सार्वजनिक करेगी.

शेतकारी संगठन के अध्यक्ष ने कहा कि समिति की रिपोर्ट ‘किसानों के पक्ष’ में थी और वह रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर अगले हफ्ते फैसला लेंगे. उन्होंने कहा, ‘…अगर उच्चतम न्यायालय इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता है तो मैं इसे सार्वजनिक कर दूंगा.’

उन्होंने कहा कि समिति ने इस रिपोर्ट को तैयार करने में तीन महीने लगाए. उन्होंने कहा, ‘यह कूड़े के डिब्बे में नहीं जानी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए. मैं इसे सार्वजनिक कर दूंगा.’

घानवत ने कहा, ‘अन्य सदस्य विद्वान और पेशेवर हैं तथा उनका किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मैं एक किसान नेता हूं. मुझे किसानों का ध्यान रखना होगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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