झारखंडः भाजपा के विरोध के बीच भीड़ हिंसा के ख़िलाफ़ विधेयक पारित, दोषी पाए जाने पर होगी उम्रक़ैद

झारखंड में मॉब वायलेंस और मॉब लिंचिंग बिल, 2021 के क़ानून बनने पर भीड़ हिंसा के दोषी पाए जाने वालों के लिए जुर्माने और संपत्तियों की कुर्की के अलावा तीन साल से लेकर उम्रक़ैद तक की सज़ा का प्रावधान है. पश्चिम बंगाल और राजस्थान के बाद इस तरह के विधेयक को पारित करने वाला तीसरा राज्य बन गया है.

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हेमंत सोरेन. (फोटो: पीटीआई)

झारखंड में मॉब वायलेंस और मॉब लिंचिंग बिल, 2021 के क़ानून बनने पर भीड़ हिंसा के दोषी पाए जाने वालों के लिए जुर्माने और संपत्तियों की कुर्की के अलावा तीन साल से लेकर उम्रक़ैद तक की सज़ा का प्रावधान है. पश्चिम बंगाल और राजस्थान के बाद इस तरह के विधेयक को पारित करने वाला तीसरा राज्य बन गया है.

हेमंत सोरेन. (फोटो: पीटीआई)

रांचीः झारखंड विधानसभा ने मॉब लिंचिंग के मामलों से सख्ती से निपटने के लिए मंगलवार को मॉब वायलेंस और मॉब लिंचिंग बिल, 2021 को ध्वनिमत से पारित कर दिया.

यह विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद कानून बन जायेगा, जिसके तहत इस तरह की हिंसा में शामिल और इसके साजिशकर्ताओं को तीन साल से आजीवन कारावास की सजा होगी.

इस विधेयक को भाजपा के विरोध के बावजूद ध्वनिमत से पारित किया गया.

पश्चिम बंगाल और राजस्थान के बाद इस तरह के विधेयक को पारित करने वाला तीसरा राज्य बन गया है.

इस विधेयक के कानून बनने पर भीड़ हिंसा के दोषी पाए जाने वालों के लिए जुर्माने और संपत्तियों की कुर्की के अलावा तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है.

इसके अलावा यह कानून शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाने वालों के लिए भी तीन साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान करता है.

शत्रुतापूर्ण वातावरण की परिभाषा में पीड़ित, पीड़ित के परिवार के सदस्यों, गवाह या गवाह/पीड़ित को सहायता प्रदान करने वाले किसी भी व्यक्ति को धमकी देना या उसके साथ जबरदस्ती करना शामिल है.

इतना ही नहीं नये कानून में पीड़ित परिवार को आर्थिक मुआवजा देने की भी व्यवस्था की गई है.

विधेयक के पक्ष में सरकार ने कहा कि भीड़ हिंसा रोकने के लिए यह विधेयक लाया गया है. इस कानून के तहत गैर जिम्मेदार तरीके से किसी सूचना को साझा करना, पीड़ितों और गवाहों के लिए शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने पर भी जिम्मेदार लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाएगी.

सदन में विधेयक को पेश करते हुए संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने कहा, ‘इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को प्रभावी सुरक्षा प्रदान कराना, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना और भीड़ हिंसा की रोकथाम करना है.’

विधेयक पर बहस के दौरान मुख्य विपक्षी भाजपा ने अनेक संशोधन पेश किये जिन्हें सरकार ने ध्वनिमत से दरकिनार कर दिया.

भाजपा के नेता एवं पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह ने राज्य सरकार पर जल्दबाजी में अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए यह विधेयक लाने का आरोप लगाया.

झारखंड में वैसे तो भीड़ हिंसा के अनेक मामले सामने आते रहे हैं लेकिन राज्य में मॉब लिंचिंग 2019 में तब खासी चर्चा में आई जब 24 वर्षीय तबरेज अंसारी को बकरी चोरी के संदेह में सरायकेला खरसावां जिले में भीड़ ने रस्सी से बांधकर इतना पीटा कि बाद में उनकी मौत हो गई.

झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भीड़ की हिंसा की घटनाओं की निंदा की थी और इसके खिलाफ कानून लाने का वादा किया था.

इस वर्ष की शुरुआत में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाली सरकार ने हाईकोर्ट से फटकार के बाद ऐसे मामलों से निपटने के लिए जिला स्तरीय समितियों के गठन का फैसला किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)