दिल्ली के पुनर्विकास के लिए मिली पर्यावरणीय अनुमतियां कई सवाल खड़े करती हैं

परियोजना को मिली स्वीकृतियां स्पष्ट दिखाती हैं कि इसके लिए गुड गवर्नेंस के कई सिद्धांतों से समझौता किया गया है.

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परियोजना को मिली स्वीकृतियां स्पष्ट दिखाती हैं कि इसके लिए गुड गवर्नेंस के कई सिद्धांतों से समझौता किया गया है.

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नौरोजी नगर में प्रस्तावित दिल्ली का पहला वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (फोटो साभार: एनबीसीसी/यूट्यूब)

दिल्ली उच्च न्यायालय के कदमों पर चलते हुए, जिसने शहर की एक ‘पुनर्विकास परियोजना’ के लिए विशाल स्तर पर पेड़ों की कटान पर रोक लगायी, 2 जुलाई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी 19 जुलाई को होने वाली अपनी अगली सुनवाई तक पेड़ों की कटान को रोक दिया था.

नागरिकों के लगातार चल रहे पेड़ बचाओ अभियान के कारण, आवास और शहरी विकास मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि परियोजना की पुनः समीक्षा और रूपरेखा में बदलाव किया जायेगा जिसमें सात सरकारी आवास कॉलोनियों का विशाल वाणिज्यिक और आवासीय सुविधाओं के रूप में निर्माण करना शामिल है. पूरा हो जाने पर, पहले जिसे हम नौरोजी नगर के नाम से जानते थे, वहां दिल्ली का पहला विश्व व्यापार केंद्र (वर्ल्ड ट्रेड सेंटर) बनेगा.

यह पहली बार नहीं है जब एनजीटी में इस तरह की परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटान का मुद्दा उठा है. सितंबर 2017 में, एनजीटी ने परियोजना को चुनौती देने वाले केस को यह कहकर बर्खास्त कर दिया था कि वे संबंधित स्वीकृतियों और 1:10 के अनुपात में क्षतिपूरक पौधारोपण जैसी अनिवार्य सावधानियों के साथ काम को आगे बढ़ा सकते हैं.

अब, ऐसा लगता है जैसे कि एक चक्र पूरा करने के लिए यह मामला वापस एनजीटी में आ गया है और इस बार स्वीकृतियां देने वाली कई एजेंसियों और सरकारों पर सवाल उठा है.

एनजीटी का दबाव?

12 सितंबर, 2016 को पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने एनजीटी के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार को एक पत्र लिखा. यह पत्र केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा परियोजना को मंज़ूरी दिए जाने के तुरंत बाद लिखा गया. इस पत्र में उन्होंने निम्नलिखित चिंताएं व्यक्त कीं:

‘यह सातों कॉलोनियां हरी-भरी हैं, यहां पुराने पेड़ हैं जिनमें आयुर्वेदिक वनस्पतियां और दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ भी हैं, इन कॉलोनियों के पुनर्विकास से ऐसे 1, 86, 378 पेड़ और अन्य पौधे नष्ट हो जाएंगे, जो मानव जीवन के भाग्य में नहीं हैं और ऐसा करना भारत में ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण बनेगा.’

उन्होंने यह भी कहा:

‘एनबीसीसी का तर्क कि गिराए गए पेड़ों की दोगुनी संख्या में पेड़ लगाये जायेंगे, यह गलत है. इन पेड़ों को बढ़ने में 40-50 साल लगेंगे. और अगर एनजीटी उनकी इस बात से सहमत होती है, तो यह मूर्खता होगी.’

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रघुनाथ झा द्वारा एनजीटी को लिखा गया पत्र

एक महीने से भी कम समय में, 10 अक्टूबर, 2016 के दिन एनजीटी ने इस मुद्दे को 2016 की संख्या OA. 553 के नाम से सूचीबद्ध किया और शहरी विकास मंत्रालय, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और एनबीसीसी को नोटिस भेजे.

ट्रिब्यूनल ने अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया. इसके एक माह बाद, दिल्ली सरकार और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को भी नोटिस भेजे गए.

फरवरी 2017 तक, केवल एनबीसीसी ने (काउंसिल पिनाकी मिश्रा और मनोज कुमार दास के माध्यम से) अपना जवाब फाइल किया था. किसी भी अन्य एजेंसी ने जवाब फाइल नहीं किये और ट्रिब्यूनल ने दूसरी तारीख तय करते हुए केंद्रीय सरकार की तीनों एजेंसियों को अंतिम चेतावनी भी दी.

पर्यावरण मंत्रालय की बेवक्त प्रक्रिया

मार्च-जुलाई 2017 के बीच, यह मामला आठ बार स्थगित हुआ. इस बीच के किसी भी आदेश से पता नहीं चलता कि लंबित जवाब फाइल किये गए या फिर जवाब मांगने के लिए कोई कड़े निर्देश दिए गए या नहीं.

इस बीच, परियोजना संबंधित गतिविधियां पर्यावरण मंत्रालय में स्थानांतरित हो गयीं. अप्रैल 2017 में, एनबीसीसी ने मंत्रालय से पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन यानी एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) के टर्म्स ऑफ रेफरेन्स (टीओआर) के लिए मंत्रालय को लिखा और ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन किया.

यह सात में से दो सबसे बड़ी परियोजनाओं- नेताजी नगर और नौरोजी नगर, के लिए किया गया था. विशेषज्ञ मूल्यांकन कमेटी यानी एक्सपर्ट अप्रैज़ल कमेटी (ईएसी) ने इस परियोजना पर चर्चा को स्थगित कर दिया क्योंकि ‘परियोजना एनजीटी में लंबित’ थी और ‘कमेटी के लिए इस पर तब तक विचार करना संभव नहीं होगा जब तक कि एनजीटी में मामला पूरा न हो जाये.’

12 जून, 2017 को एनबीसीसी ने फिर से वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को टीओआर के लिए लिखा और कहा कि ट्रिब्यूनल ने कोई अंतरिम आदेश पास नहीं किया है.

उन्होंने एनजीटी में चल रहे मामले के बारे में विस्तृत नोट जमा किया, जिसमें आरोप था कि रघुनाथ झा द्वारा लिखे गए पत्र, जिस पर केस की सुनवाई हो रही थी, में सही जानकारी नहीं है और वह समयपूर्व है.

अगले ही दिन, एनजीटी ने मामले की सुनवाई कर दी और मामले को 18 जुलाई, 2017 तक स्थगित कर दिया.

लेकिन ईएसी एनबीसीसी की बहस से संतुष्ट थी और उनका अनुरोध मान लिया. ईएसी ने 29 जून, 2017 को नेताजी नगर और नौरोजी नगर, दोनों के ईआईए के लिए एक मानक टीओआर तय कर दीं.

उन्होंने इस बीच एनबीसीसी का एक और विशेष अनुरोध मान लिया और उन्हें अप्रैल-जून 2017 के बीच इकट्ठे किये गए मूल आंकड़ों के आधार पर ही ईआईए पूरा करने की इजाज़त दे दी.

नेताजी नगर के लिए एनबीसीसी के सलाहकार एबीसी टेक्नो लैब्स ने ईआईए के लिए मूल आंकड़े इकट्ठे करने शुरू कर दिए, जबकि अभी ट्रिब्यूनल और मंत्रालय, दोनों से निर्णय आना बाकी था.

संदर्भ की शर्तें देने वाले आधिकारिक पत्र अगस्त के महीने में जारी किये गए, जबकि एनजीटी में अभी सुनवाई चल ही रही थी.

एक तरह से, पर्यावरण मंत्रालय ने एनबीसीसी को पर्यावरण मंजूरियों के लिए कदम लेने की इजाज़त दे दी थी, यह जानते हुए भी कि एनजीटी संभवतः पेड़ों की कटान के कारण परियोजना के लिए इजाज़त न दे.

A women tie banners on trees during "Save The Tree Campaign" in New Delhi, India, June 26, 2018. REUTERS/Adnan Abidi
दिल्ली में पुनर्विकास के लिए पेड़ों के काटे जाने के विरोध में ‘सेव द ट्री’ अभियान चलाया गया है. (फोटो: रॉयटर्स)

स्वीकृतियों की सौगात

कई महीनों से चली आ रही धीमी चाल के बाद एनजीटी ने 31 जुलाई, 2017 को निर्देश दिया. अध्यक्ष की पीठ ने दिल्ली वन विभाग को निर्देश दिया कि वे रिपोर्ट जमा करें और ‘कानून के मुताबिक’ कार्यवाही करें.

वन विभाग ने जवाब देने में एक महीने से ज़्यादा लगा दिए, जिस बीच रघुनाथ झा मामले के अंतिम आदेश के आधीन, अगस्त 17 और 21 को नेताजी नगर और नौरोजी नगर के प्रभाव आकलन के लिए संदर्भ की शर्तें जारी कर दी गयीं.

सितंबर आते-आते, एनजीटी ने झा केस को ख़त्म कर दिया, जिसमें शर्त थी कि उन्हें काटे हुए पेड़ों के बदले 1:10 के अनुपात में पौधारोपण करना होगा.

22 सितंबर को, ट्रिब्यूनल ने इस आदेश में जोड़ा कि स्थल पर ही या फिर किसी भी अन्य उपलब्ध जगह पर लंबे पेड़ लगाने होंगे, और पेड़ों की कटान के बदले, उन्हें दोबारा लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा,

‘पेड़ों का रोपण उनकी कटान से पहले, शर्त के रूप में किया जाना चाहिए.’

निर्देशों में यह भी जोर दे कर कहा गया,

‘अगर किसी स्थिति में आदेश का पालन नहीं किया गया, तो परियोजना निर्माता को पर्यावरणीय मुआवज़ा देना पड़ेगा और हम परियोजना रोकने का आदेश भी दे सकते हैं.’

ट्रिब्यूनल का विश्वास कि पेड़ों को काटकर उसकी भरपाई कहीं और पेड़ लगा कर की जा सकती है, यह वन विभाग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे कोर्ट के आग्रह पर फाइल किया गया. यह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है.

सितंबर में ही एनबीसीसी ने तीन महीने के मूल आंकड़ों के आधार पर पर्यावरण प्रभाव आकलन की रिपोर्ट को भी अंतिम रूप दिया और पर्यावरण मंत्रालय को जमा कर दी.

13 अक्तूबर, 2017 को मंत्रालय की विशेषज्ञ आकलन कमेटी (बुनियादी ढांचे और तटीय विनियमन क्षेत्र) ने एक ही बैठक में इस परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी की सिफारिश पारित कर दी.

नेताजी नगर और नौरोजी नगर, दोनों के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी उसी दिन स्वीकृत कर दी गयी, यानी 27 नवंबर, 2017 को.

पेड़ों की कटान की अनुमति में देरी

पेड़ों की कटान की अनुमति से संबंधित दस्तावेज़ नागरिक अभियान के दौरान सोशल मीडिया और दिल्ली उच्च न्यायालय में कौशलकांत मिश्रा द्वारा दर्ज की गयी जनहित याचिका के ज़रिये सामने आये.

यह दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि सचिव (पर्यावरण एवं वन) ने दिल्ली पेड़ संरक्षण अधिनियम, 1994 के अंतर्गत नौरोजी नगर परियोजना के लिए 15 नवंबर, 2017 को छूट अधिसूचना जारी की. इसके साथ, एनबीसीसी विश्व व्यापार केंद्र के लिए निर्माण शुरू कर सकता था.

लेकिन, नेताजी नगर में पेड़ काटने की अनुमति संबंधित दस्तावेजों से पता चलता है कि 17 फरवरी, 2017 को एनबीसीसी ने पेड़ काटने की अनुमति का आवेदन दर्ज किया, ये जानते हुए भी कि यह मामला एनजीटी में लंबित है, जहां उन्होंने खुद जवाब भी फाइल किया था. इसके बाद क्या हुआ, इसका कोई रिकॉर्ड सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध नहीं है.

इस संबंध में जो अगला सार्वजनिक दस्तावेज़ उपलब्ध है, वो 14 महीने बाद, 23 अप्रैल, 2018 का है, जब इसी तरह की छूट अधिसूचना जारी की गयी थी.

इसे दिल्ली पेड़ संरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 29 के अंतर्गत जारी किया गया, जिसमें निर्धारित पेड़ अधिकारी को एनबीसीसी के आवेदन पर 60 दिनों के अंदर जवाब देने की अनिवार्यता पर छूट दे दी गयी, जो न दिए जाने पर आवेदन स्वीकृत मान लिया जाता है.

एक सप्ताह के अंदर, 1 मई को पेड़ अधिकारी एनबीसीसी को अनुमति के बारे में सूचना देता है, जिसमें कोई ब्यौरा नहीं है कि उन्होंने कब और कैसे जांच की. यह अनुमति जांच के बाद ही दी जा सकती है.

टूटता विश्वास

यह सर्कुलर और परियोजनाओं को मिली स्वीकृतियों के समय इस पूरी प्रक्रिया में कई कमियों को दिखाता है. लेकिन अभी तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह तो स्पष्ट है कि अनिवार्य रूप से कानूनी प्रक्रियाओं का नहीं, गुड गवर्नेंस के कई सिद्धांतों से समझौता किया गया है.

पूरी सच्चाई शायद वर्तमान में चल रहे कोर्ट केसों से बाहर आ सकेगी. इस बीच, नागरिकों के जो समूह प्रस्तावित कंस्ट्रक्शन साइट के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए रात को गश्त लगा रही हैं, वे इस मामले में शामिल सभी सरकारों से विश्वास खो चुकी हैं.

मंजू मेनन और कांची कोहली सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली में पर्यावरणीय शोधार्थी हैं.

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. निधि अग्रवाल द्वारा हिंदी में अनूदित.

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